आदरणीय साथिओ,
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नवीन ने पुरातन की जगह ले ली तो पुरातन को दर्द होगा ही गाँव का सुन्दर चित्र खींचा है उस पर बूढ़े बीमार दादा जी का दर्द बहुत अच्छे से उभर कर आया है लघु कथा में बहुत बहुत बधाई आद० विनय कुमार जी .
बहुत बहुत आभार आ राजेश कुमारी जी आपकी उत्साह बढ़ाने वाली टिपण्णी के लिए
बहुत बहुत आभार आ वीर मेहता जी
बहुत बहुत आभार आ कल्पना भट्ट जी
आ० विनय जी , बुजुर्गों को अपनी पुरानी चीजों से व्यामोह्होता ही है और उसकी उपेक्षा उन्हें अवसाद देती है , अच्छी कथा हुयी है , सादर .
बहुत बहुत आभार आ डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी
मुह्तरम जनाब विनय कुमार साहिब ,प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुंदर लघु कथा
हुई है , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ - -
बहुत बहुत आभार आ जनाब तस्दीक़ अहमद खान साहब
विधवा जीवन (लघुकथा) :
"तुमने अपने ग़रीब पिता का नाम तो ससुराल में रोशन किया लेकिन शायद मैं तुम्हारे पिता से किया वादा पूरी तरह नहीं निभा सकी!" सविता के सिर पर हाथ फेरते हुए उमा जी ने कहा- "ज़िन्दगी हमें अब इस मोड़ पर ले आई है! अब क्या होगा तुम्हारा?"
"जो होगा, ठीक ही होगा, ठीक ही तो होता आया है!" माँ जैसी अपनी सास का सिर गोदी में रखते हुए सविता ने कहा।"
"तुम हमेशा संतुष्ट होने का अहसास कराती रही हो, लेकिन मैं जानती हूँ मेरी तरह तुमने भी अब तक सिर्फ़ दौलत और सुविधायें ही देखीं हैं, बस ! जाने से पहले जानना चाहती हूँ कि अब क्या सोचा है तुमने अपने लिए ? कम उम्र में अकेले विधवा जीवन कब तक?"
उमा जी को बीच में ही टोक कर सविता ने कहा- "मैं अब भी यही कहूंगी कि न तो मैं विवाह करूँगी, न बिगड़ैल बेटे के साथ रहूंगी और न ही किसी भाई को अपना दुखड़ा सुनाउंगी !"
" अफ़सोस है... दौलत के नशे में न तो मेरा बिगड़ा बेटा तुम्हारी क़द्र कर सका और न ही तुम्हारा बेटा ! "
"कुछ मर्दों की अपनी ही दुनिया रहती है ! लेकिन मुझे ख़ुशी है कि अपने विद्यालय में मेरी क़ाबीलियत का सही इस्तेमाल आपने किया ! आपके बिना मेरा क्या वजूद ?" सविता बहुत भावुक हो गई।
"बेटी, मेरे मरने के बाद तुम्हारा क्या होगा !"
"मम्मी, मुझे अब भी तुम्हारी ज़रूरत है, हौसला रखिए, आप हमेशा अपनी गंभीर बीमारियों तक को हराती आई हैं, आपको सेन्चुरी पूरी करनी है न !" इतना कहकर सविता खड़े होते हुए बोली- "सच है कि एक दिन तुम भी चली ही जाओगी ये सब दौलत, मकान और विद्यालय ... सब कुछ मुझे सौंप कर !"
"पर ये सब हैं तो क़िले और क़िलेबंदियां जैसे ही ! कैसे संभालोगी तुम अकेले इन्हें और ख़ुद को !"
"जैसे आपने विधवा रहकर अपनी प्रतिभा से संभाला ! आपके विद्यालय की सृजन स्थली में ख़ुद को खपा दूंगी !"
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[मौलिक व अप्रकाशित]
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