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बंधन की डोरियां - डॉo विजय शंकर

कुछ डोरियां
कच्चे धागों की होती हैं ,
कुछ दृश्य होती हैं ,
कुछ अदृश्य होती हैं ,
कुछ , कुछ - कुछ
कसती , चुभती भी हैं ,
पर बांधे रहती हैं।
कुछ रेशम की डोरियां ,
कुछ साटन के फीते ,
रंगीले-चमकीले ,फिसलते ,
आकर्षित तो बहुत करते हैं ,
उदघाट्न के मौके जो देते हैं ,
पर काटे जाते हैं।
इस रेशम की डोरी
की लुभावनी दौड़ में ,
ज़रा सी चूक ,
बंधन की डोरियां
छूट गईं या टूट गईं ,
रेशम की डोरियां
भी फिर हाथ न आईं ,
फिसल गईं ,
किसी काम न आईं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 8, 2018 at 9:52am

हृदय स्पर्शी रचना के लिए हार्दिक बधाई । आ. भाई विजय जी ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 8, 2018 at 1:35am

आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार , आप बड़े सहज भाव से कविता की तह तक पहुँच जाते हैं , विषय कोई भी हो। आपकी शानदार उपस्थिति के लिए आभार और बधाई के लिए धन्यवाद। सादर।

Comment by Samar kabeer on January 6, 2018 at 5:30pm

आली जनाब डॉ.विजय शंकर जी आदाब,इस्तिआरों की ज़बान में बात कहने का सलीक़ा बहुत कम लोगों को नसीब होता है, और उन कम लोगों में आपका भी शुमार है,बहुत उम्दा कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 6, 2018 at 6:09am

आदरणीय मोहित मिश्र ( मुक्त ) जी , हार्दिक आभार एवं बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 5, 2018 at 8:22am

आदरणीय सुरेंद्र नाथ कुशक्षत्रप जी , रचना की प्रशस्ति के लिए हार्दिक आभार , बधाई हेतु बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 5, 2018 at 8:20am

आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी , रचना को मान देने के लिए हार्दिक आभार , बधाई हेतु बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 5, 2018 at 8:19am

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी , आपको कविता पसंद आई, लेखन सार्थक हुआ। आपका ह्रदय से आभार , बधाइयों के लिए अनेक अनेक धन्यवाद , सादर।



Comment by नाथ सोनांचली on January 4, 2018 at 1:51pm

आद0 विजय शंकर जी सादर अभिवादन। एकदम तथ्यपरक बात कह दी आने। आजकल दिखावे का समय है।रिश्ते गौड़ हो गए हैं।बधाई आपको। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर। सादर

Comment by Mohammed Arif on January 4, 2018 at 12:26pm

आदरणीय विजय शंकर जी आदाब,

                        सच है आजकल उद् घाटन वाली डोरियों पर ज़ियादा ध्यान है बनिस्बत रिश्तों की डोरियों के । रिश्तों की डोर टूट भी रही और छूट भी रही है ।हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 4, 2018 at 10:11am

वाह। इशारों-इशारों में, गागर में सागर सी बेहतरीन विचारोत्तेजक सारगर्भित रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब डॉ. विजय शंकर साहिब। कुछ में भावनायें हैं, सच्चाई है... तो बहुत कुछ है औपचारिकताएं हैं, आडंबर है। सादर।

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