For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आग जला कर जग-जगती की  
धूनी तज कर
साँसें लेलें ! 
खप्पर का तो सुख नश्वर है 
चलो मसानी, रोटी बेलें !!
 
जगत प्रबल है दायित्वों का 
और सबलतम 
इसकी माया 
अँधियारे का प्रेम उपट कर 
तम से पाटे 
किया-कराया 
 
उलझन में चल
काया जोतें 
माया का भरमाया झेलें ! 
 
जस खाते,
तस जीते हैं सब 
खाते-जीते 
पीते भी हैं 
और भभकते औंधेमुँह के
बखत उपासे बीते भी हैं 
 
इन कंधों पर बरतन-बहँगी 
लेकर आओ 
जग में हेलें ! 
 
इस मिट्टी ने जीव जगाया 
और सजायी
मिलजुल दुनिया 
बहुत अभागे अलग कातते  
खुद की तकली, 
खुद की पुनिया 
 
कहो निभे क्यों आपसदारी ?
अगर दिखा कुछ..  
चाहा लेलें ! 
***
सौरभ
 
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1048

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 28, 2018 at 9:50pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपसे मिला अनुमोदन सुखदायी है. 

हार्दिक धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 28, 2018 at 9:49pm

आदरणीय अजय तिवारी जी, आपने तो प्रस्तुति के मर्म पर ही हाथ रख दिया है. तथा जिस विश्वास के साथ आपने रचनाकर्म की विशिष्टता को परिलक्षित किया है वह आपकी तार्किक संवेदनशीलता का ही परिचायक है. 

रचना को अनुमोदित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद

शुभ-शुभ

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 28, 2018 at 9:46pm

आदरणीय हरिहर झा जी, आप द्वारा मिली अनुशंसा भावमय कर रही है. वस्तुतः, प्रस्तुत नवगीत के कथ्य के इंगितों पर आप जैसे सुधी पाठक से तथ्यपरक सुनने की उत्कंठा बलवती हो उठी है. 

अनुमोदन के लिए हार्दिक धन्यवाद

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on August 22, 2018 at 7:24pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर अभिवादन नवगीत पढ़कर हमें आनन्द की अनुभूति हुई आपको दिल से बधाई 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 22, 2018 at 12:22pm

आपकी भाषा, शैली, कथ्य और उनको जीवंत रूप दे देने की असीम क्षमता, कोई जान बूझ कर उपेक्षित कर दे तो अलग बात है लेकिन उसकी रचनाधर्मिता ऐसे ही प्रयास के लिए लोभ से युक्त हो ही जाती होगी, कदाचित चल रहे समय में कोई दूसरा तो नहीं दिखता, हिंदी-भाषा मे ऐसे चित्र गढ़ने वाला साहित्यकार। आपको सादर प्रणाम

एक छोटा सा दोष है, रचना में; सम्भवतः यह दोष मेरी क्षुद्र-बुद्धि का भ्रम हो?

उलझन में
चल काया जोतें 
माया का भरमाया झेलें ! 
चलो मसानी, रोटी बेलें.....
चल और चलो?????
 

Comment by Neelam Upadhyaya on August 20, 2018 at 3:56pm

आदरणीय सौरभ पाण्डे जी, नमस्कार ।   बहुत ही सूंदर गीत की रचना।  प्रस्तुति पर  हार्दिक बधाई स्वीकार करें  ।

Comment by Samar kabeer on August 20, 2018 at 2:35pm

जनाब सौरभ पाण्डेय साहिब आदाब, बहुत समय बाद आपका नवगीत पढ़ने का मौक़ा मिला है,हमेशा की तरह भाषा का उत्तम प्रयोग देखने को मिला,गीत का प्रवाह भी दर्शनीय है,बहुत ख़ूब वाह, इस उम्दा प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें।

और हाँ, मंच के नियमानुसार आपने मौलिक व अप्रकाशित नहीं लिखा?

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 20, 2018 at 12:59pm

अदभुत गीत का सृजन हुआ है आदरणीय, आनंद आ गया 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 20, 2018 at 6:43am

आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन । उत्तम गीत के लिए हार्दिक बधाई ।

Comment by Ajay Tiwari on August 19, 2018 at 9:22am

आदरणीय सौरभ जी,

शब्दों के प्रयोग में अधिकतम कंजूसी और गीत के आधार के तौर पर चौपाई का खुबसूरत इस्तेमाल बहुत अच्छा लगा.

'इन कंधों पर बरतन-बहँगी 
लेकर आओ 
जग में हेलें !'
ये पंक्तियां कोई ऐसा कवि ही लिख सकता है जिसकी भाषाई जड़े बहुत गहरी हों और जिसका ज़िन्दगी से ज़मीनी रिश्ता हो.
एक और प्रभावी गीत-प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई.
सादर   

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service