"मुझे हमेशा लगता है कि कोई मुझे जान से मारने की कोशिश कर रहा है!"
"मुझे हमेशा लगता है कि कोई मुझे जड़ से ख़त्म करने की कोशिशें कर रहा है!"
"मुझे हमेशा लगता है कि कोई मुझे अपनी नौकरी से हटाने के की कोशिश कर रहा है या फिर मेरा तबादला कराने की कोशिशें कर रहा है!"
"हां, मुझे तो हमेशा यह भी लगता है कि मेरे अपनों को सता-सता कर या मुझे ब्लैकमेल कर मुझे दिग्भ्रमित करने की कोशिशें की जा रही हैं!"
दुनिया के मंच पर भिन्न-भिन्न किरदारों की अदायगी देख कर 'ईमानदारी' ने आंसू बहाते हुए चीख-चीख कर चारों ओर स्वर मुखरित करते हुए कहा।
पास ही मौजूद 'बेईमानी' ने मुस्कराते हुए कहा - "मुझे भी तो हर पल यही लगता है! आजकल भी यही सब कहने को मन होता है! लेकिन तुम में और मुझ में एक अंतर तो है!"
"अच्छा! वह अंतर क्या है?" ईमानदारी ने चौंककर पूछा।
"मुझे मुसीबतों से छुटकारा पाने के लिए हज़ारों हम जैसों का सहारा तुरंत ही मिल जाता है! उन्नति ही पाकर हम शान से जिये चले जाते हैं और तुम हो कि हर पल परेशां रहती हो, मर-मर के जीती हो; क्योंकि तुम्हें तुम्हारे जैसे हज़ारों या तो दगा दे जाते हैं या फिर बिक जाते हैं!" बेईमानी ने ठहाके लगा कर कहा।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर समय देकर इतना प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब डॉ. आशुतोष मिश्रा जी, जनाब विजय निकोरे साहिब और जनाब बृजेश कुमार'ब्रज'जी।
बहुत उम्दा और सटीक लेखन...
आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी बिलकुल सही कहा है आपने इमानदारी की राह पर चलने वाले बहुत बिवश हैं ..इस रचना के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर
वाह, क्या अनोखा प्लाट है आपकी लघु कथा का ... बहुत ही प्रभावशाली व्यंग भी है। इस सशक्त लघु कथा के लिए दिल से बधाई, भाई शैख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब ।
रचना पर समय देकर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब और आदरणीया नीलम उपाध्याय जी।
आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी । सच है, हर तरफ बेईमानी का ही बोलबाला है । कटाक्ष करती हुयी बेहतरीन रचना । बधाई ।
जनाब शेख़ शहज़ाद साहिब ,बेहतर संदेश देती सुन्दर लघुकथा हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।
अपने विचार और राय यहां साझा करने, अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब, जनाब समर कबीर साहिब, जनाब तेजवीर सिंह साहिब और जनाब श्याम नारायण वर्मा साहिब।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,
ईमानदारी और बेईमानी को आधार बना बहुत ही कटाक्षपूर्ण प्रतीकात्मक लघुकथा । आजकल बेईमानी का ही। तो बोलबाला है । सच दबा कुचला और दुर्दिन अवस्था में जीवन बिता रहा है । वह समाज से नकार दिया गया है । लगता है जैसे बेईमानी को सामाजिक मान्यता मिल गई है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस सशक्त रचना पर ।
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