For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मूर्ख दिवस के दोहे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर

सूँघा हमने फूल को, महज समझ कर फूल
था कागज का तो मना, अपना 'अप्रैल फूल'।१।


हम में  दस  ही  मूर्ख हैं, नब्बे  हैं  हुशियार
लेकिन ये दस कर रहे, हर दुख का उपचार।२।


मूरख कब देता भला, मूर्ख दिवस को मान
 इस पर कृपा कर रहा, सहज भाव विद्वान।३।


भोले भाले का उड़ा, खूब कुटिल उपहास
मूर्ख दिवस पर सोचते, वो हैं खासमखास।४।


दसकों से सर पर रहा, बेअक्लों  का राज
मूर्ख बने इस बात का, भान हुआ है आज।५।


रोने को दिन एक है, सहने को भर साल
मूरख ही समझे यहाँ, हर मूरख का हाल।६।


साजन  सजनी  से कहे, लाऊँ  तारे तोड़
नाम प्यार के हो रही, मूर्ख बनन की होड़।७।


सुन  निर्धनता  हर  रहे, बीते  सत्तर साल
हर मूरख का आज भी, वही पुराना हाल।८।


बेअक्लों  की   संगते,  बेअक्लों  का  राज
मूर्ख बनी जनता फिरे, सिद्ध कहाँ हो काज।९।


मूर्ख दिवस ही तो रहा, सरकारी नव साल
मूर्ख बनी फिरती तभी, यह जनता कंगाल।१०।


सुमन  बाँटते  हम  रहे, सब  से  पाकर शूल
इसीलिए जग बोलता, सदियों से हम ‘फूल”।११।


अच्छे दिन की आस में, हर घर था उल्लास
वोटर वेटर हो गया, क्या  ये  कम परिहास।१२।


मौलिक अप्रकाशित

Views: 787

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on April 2, 2018 at 12:32pm

जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, बहुत उम्दा दोहे,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 2, 2018 at 9:54am

वाह बहुत बढ़िया 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 2, 2018 at 7:26am

आ. भाई आरिफ जी, सादर अभिवादन । दोहों की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 1, 2018 at 11:15pm

आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन । दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभर ।

Comment by Mohammed Arif on April 1, 2018 at 5:35pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आदाब,

                        समसामयिकता का पुट लिए लाजवाब दोहे । दोहे सीखने वालों के लिए भी आदर्श है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Ajay Tiwari on April 1, 2018 at 5:12pm

आदरणीय लक्ष्मण जी, दोहे बहुत सामयिक, सटीक और खूबसूरत लगे. हार्दिक बधाई.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 1, 2018 at 10:31am

आ. प्रतिभाबहन, दोहों की स्नेहमयी प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 1, 2018 at 10:29am

आ. भाई शेख शहजाद जी, दोहों के अनुमोदन और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।

Comment by pratibha pande on April 1, 2018 at 10:03am

वाह वाह वाह   बहुत खूब दोहे रचे हैं आदरणीय लक्षमण जी  हार्दिक बधाई प्रेषित है

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 1, 2018 at 8:58am

बेहतरीन दिलचस्प, समसामयिक, कटाक्षपूर्ण और मार्गदर्शक सृजन। हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहिब।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service