२१२२ १२१२ २२
जिन्दगी से जबाब माँगेगा
लम्हा लम्हा हिसाब माँगेगा
जिसमे लिक्खा हुआ गणित तेरा
वक़्त ऐसी किताब माँगेगा
देख तेरा खुला हुआ वो सबू
खाली प्याला शराब माँगेगा
रंग बदले भले कई मौसम
फूल अपना शबाब माँगेगा
कैद जिसके लिए किया जुगनू
कल वही माहताब माँगेगा
पाक नीयत से देखना उसको
चाँद वरना निकाब माँगेगा
कैद तेरी किताब में अबतक
अपनी खुशबू गुलाब माँगेगा
----मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
कैद जिसके लिए किया जुगनू
कल वही माहताब माँगेगा
वाह आदरणीया राजेश दी बहुत खूब
आदरणीया राजेश कुमारी जी,
खूबसूरत ग़ज़ल हुई है. शुभकामनाएं.
सादर
आ राजेश कुमारी जी बहुत ही अच्छी ग़ज़ल हुई है , हार्दिक बधाई
आ. राजेश दीदी
हमेशा की तरह अच्छी ग़ज़ल हुई है ..
मतले में एक सुझाव है ...देखिएगा
.
जिन्दगी से हिसाब माँगेगा
लम्हा लम्हा जवाब माँगेगा
.
देख तेरा खुला हुआ वो सबू... कौनसा सबू??
देख कर आप के नशीले नयन
ख़ाली.....
.
रंग बदले भले कई मौसम.... या
रंग मौसम भले कई बदले ... विचार कीजियेगा
.
चाँद वरना निकाब माँगेगा
निक़ाब.. की जगह हिजाब अधिक ठीक लगता शायद
.
आपने दोपहर में चियर्स कहा था... अधिक लिख गया होऊँ तो उसी चियर्स का असर मान कर क्षमा कर दीजियेगा
सादर
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