For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"इतना मान-सम्मान पाने वाली, फिर भी इनकी हथेली खुरदरी और मैली सी क्यों है?"-- हृदय रेखा ने धीरे-धीरे बुदबुदाते हुए दूसरी से पूछा तो हथेली के कान खड़े हो गए।
"बडे साहसी, इनका जीवन उत्साह से भरपूर है,फिर भी देखो ना..." मस्तिष्क रेखा ने फुसफुसा कर ज़बाब दिया।
" देखो ना! मैं भी कितनी ऊर्जा लिए यहाँ हूँ, किंतु हथेली की इस कठोरता और गदंगी से.....!" जीवन रेखा भी कसामसाई।
"अरे! क्यों नाहक क्लेष करती हो तुम तीनों? भाग्य रेखा तो तुम अपने संग लेकर ही नहीं आई, तब मैं क्या करती" हथेली से अब चुप ना रहा गया, वह ऊँचे स्वर में बोल पड़ी।
तीनों रेखाएँ अकबका कर एक दूसरे को देखने लगी।
"हुँह!... इतनी ढेर सारी कटी-पिटी रेखाएँ भी साध ली तुमने अपनी हथेली पर तो हम भी क्या करते".----तीनों फिर से अपनी कमान संभाली।
"तभी तो मैनें तुम सभी को मुट्ठी में कस, छेंनी-ह्थौडा उठा, कर्म रूपी पत्थर को तोडा , अब तक तोड़ रही हूँ। " हथेली का आत्मविश्वास छलक उठा।
कठोर, मैली, खुरदरी-सी सशक्त हथेली पर उभरती हुई मजबूत भाग्य रेखा को देख, कसी हुई हथेली में वे अपना-अपना वजूद ढूँढने लगी।

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 845

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नयना(आरती)कानिटकर on October 10, 2017 at 6:02pm

आ.राज़ नवादवी "हथेली का आत्मविश्वास छलक उठी" टंकण त्रुटी है. उसे ठीक करती हू. आभार आपका रचना सराहने के लिए

Comment by नयना(आरती)कानिटकर on October 10, 2017 at 6:00pm

आ. सुरेन्द्र जी ,आ.सलिम रजा जी,आ.समर कबीर जी,आ. नीता जी, आ
सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी. आ. मोहम्मद आरिफ़ जी, आ.उस्मानी जी आप सभी का ह्रदयतल से आभार

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 10, 2017 at 1:01pm
बहुत ही उम्दा और गहरे भावों का समावेश किया आपने आदरणीया.…हार्दिक बधाई
Comment by राज़ नवादवी on October 9, 2017 at 8:07pm

आदरणीया नयना कानिटकर जी, आदाब. प्रतीकों में कही गई इस सुन्दर लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई. "हथेली का आत्मविश्वास छलक उठी" वाक्य में 'उठी' को 'उठा' कर लें, आत्मविश्वास शब्द पुल्लिंग है. सादर. 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 8, 2017 at 6:51pm
आपकी इस प्रतीकात्मक रचना के लिए सादर हार्दिक बधाई आदरणीय नयना 'आरती' कानिटकर जी।
Comment by Mohammed Arif on October 8, 2017 at 7:38am
आदरणीया नयना आरती जी आदाब, रेखाओं का मानवीकरण करके बहुत ही उम्दा लघुकथा कही गई पने । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by नाथ सोनांचली on October 8, 2017 at 4:40am
आद0 नयना जी सादर अभिवादन, बेहतरीन लघुकथा, बधाई र्आपको
Comment by Nita Kasar on October 7, 2017 at 7:50pm
सारगर्भित कथा के लिये बधाई आद० नयना जी ।
Comment by Samar kabeer on October 7, 2017 at 7:11pm
मोहतरमा नयना जी आदाब,बहुत अच्छी लघुकथा है, बधाई स्वीकार करें ।
Comment by SALIM RAZA REWA on October 7, 2017 at 7:09pm
नयना जी,
ख़ूबसूरत लघुकथा हस्तरेखा (लघुकथा) के लिए बधाई,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service