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वो दिन---

"तुम रातभर बैचेन थी। हो सके तो आज आराम करो। मैंने चाय बनाकर थर्मस में डाल दी हैं। मैं नाश्ता, खाना आफ़िस में ही ली लूँगा, तुम बस अपना बनवा लेना। आफ़िस से छुट्टी ले लो।"
पास तकिए पर रखे कागज को पढा और चूमकर सीने पर रख लिया। आफ़िस में इस एक दिन के अवकाश की लड़ाई लड़ी और जीती भी थी।
चाय का कप लेकर बालकनी में आई तो सहज ही प्लास्टिक की पन्नियाँ बीनती उन लड़कियों पर नजर गयी। उफ्फ, ये लोग क्या करती होंगी इन दिनों? कप हाथ में लिए-लिए ही झट नीचे आयी। उन्हें आवाज लगाकर अपने पास बुलाया " कितने साल की हो तुम लोग, महावारी आती है? जब आती है तब क्या करती हो?"
पहले तो वे सकुचाई मगर उनमें से एक धीरे-धीरे खुल गयी। झोपडे में ही रहते है कभी राख या मिट्टी...जो उन्होंने बताया वो मेरे लिए "आँख खोलने वाली बात थी।" पैड इत्यादि की इतनी सुविधाओं में भी हम ऑफिस के कर्मचारी अपने लिए लड़कर क्या साबित करते है। नारी सशक्तिकरण बातें अब बेमानी लगने लगी थी.

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Mahendra Kumar on September 27, 2017 at 7:45pm

एक अलग विषय पर कलम चलाकर समाज की विसंगति को सफलतापूर्वक उभारने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आ. नयना जी. सादर.

Comment by Nita Kasar on September 27, 2017 at 7:25pm
स्वच्छ भारत ,स्वस्थ्य भारत सार्थक संदेश देती कथा है।आज भी गाँवों में स्थिति बेहद तकलीफदायक है ।क्योंकि जनजागरूकता का अभाव है ।बधाई कथा के लिये आद० नयना जी ।
Comment by vijay nikore on September 27, 2017 at 5:51am

सुन्दर अभिव्यक्ति।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 26, 2017 at 7:28pm
शीर्षक बहुआयामी संकेत देने वाला होने के कारण पहले तो पाठक का ध्यान आकृष्ट कराता है रचना की ओर और फिर झकझोरते हुए विचार करने को छोड़ देता है।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 26, 2017 at 7:25pm
सबका साथ सबका विकास का सार्थक आह्वान करती बेहतरीन विचारोत्तेजक रचना के लिए सादर हार्दिक बधाई आदरणीय नयना 'आरती' कानिटकर जी। यहां आपकी लेखनी का नवीनतम व तीखा रूप हमें देखने को मिला।
Comment by Samar kabeer on September 26, 2017 at 3:28pm
मोहतरमा नयना जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
Comment by नयना(आरती)कानिटकर on September 26, 2017 at 3:15pm

प्रतिभा दीदी बहुत-बहुत धन्यवाद. रचना पर त्वरित टिप्पणी वे इसका मर्म समझने के लिए.

Comment by pratibha pande on September 26, 2017 at 1:15pm
सबसे पहले इस विषय पर कलम चलाने के लिये साधुवाद लीजिये आदरणीया नयना जी। अंतिम पंक्ति झंकझोरती है और हमारे गढे हुए आधुनिक समाज के आडंबरों की पोल खोलती है।

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