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पावस रुत में ....

तृण तृण भीगा
प्रीत पलों का
सावन की बौछारों में
तड़पन भीगी
तन-मन भीगा
सावन की बौछारों में
बीती रैना
भीगे बैना
सावन की बौछारों में
पावस रुत में
नैना बरसे
सावन की बौछारों में
निष्ठुर पिया को
पल पल तरसे
सावन की बौछारों में
बादल गरजे
बिजली चमकी
सावन की बौछारों में
भीगी चौली
भीगी अंगिया
सावन की बौछारों में
चूड़ी खनकी
मिलन को तरसी
सावन की बौछारों में
पावस रुत में
तृप्ति भटकी
सावन की बौछारों में
नैन मधुशाला
भीगी बाला
सावन की बौछारों में
बिन प्याले ही
पी ली हाला
सावन की बरसातों में
लाज़-शरम का
तोड़ा घूंघट
सावन की बरसातों में
अधरपाश में
अधर ले सोयी
सावन की बरसातों में

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on July 18, 2017 at 7:22pm

आदरणीय समर कबीर साहिब सृजन में निहित बौछारों के भावों को मान देने का हार्दिक आभार।  सर धीरे धीरे बौछारों ने बरसात की शक्ल अख़्तियार कर ली , इसलिए ये हुआ। .. सर ये हंसी की बात थी वैसे लिखते लिखते फ्लो में बरसात आ गयी. . बस और कुछ नहीं सर। 

Comment by Samar kabeer on July 18, 2017 at 3:23pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,सावन के रंगों में रंगी अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आधी से ज़ियादा कविता में 'सावन की बौछारों में' और अंत की पंक्तियों में 'सावन की बरसातों में' ऐसा क्यूँ ?
Comment by Sushil Sarna on July 17, 2017 at 4:41pm

आदरणीय लक्षमण धामी जी सृजन के भावों को अपने स्नेहिल शब्दों से  मान देने का दिल से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on July 17, 2017 at 4:40pm

आदरणीया कल्पना भट्ट जी सृजन आपकी मनभावन   प्रशंसा का आभारी है। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 17, 2017 at 1:43pm
आ. भाई सुशील जी इस मनमोहक गीत के लिए हार्दिक बधाई ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 17, 2017 at 12:13pm

बेहद सुंदर रचना हुई है आदरणीय सुशिल सरना जी |

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