२१२२ १२१२ २२
बात खाली मकान क्या करता
दास्ताँ वो बयान क्या करता
पंख कमजोर हो गये मेरे
लेके अब आसमान क्या करता
उसकी सीरत ने छीन ली सूरत
उसपे सिंघारदान क्या करता
रूठ जाते मेरे सभी अपने
चढ़के ऊँचे मचान क्या करता
नींव में झूठ की लगी दीमक
लेके ऐसी दुकान क्या करता
बाढ़ में ढह गये महल कितने
मेरा कच्चा मकान क्या करता
मौन सब थे निजाम की सुनकर
मैं चलाकर जुबान क्या करता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बाढ़ में ढह गये महल कितने, मेरा कच्चा मकान क्या करता..वाह ! बहुत ही खूबसूरत रचना है आदरणीया rajesh kumari जी , हार्दिक बधाई आपको ! सादर
आदरणीय सुशील सरना जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया |
बड़ी प्यारी ग़ज़ल हुई है आदरणीय राजेश दी हार्दिक बधाई आपको |
खूब सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई
पंख कमजोर हो गये मेरे
लेके अब आसमान क्या करता ...वाह!
रूठ जाते मेरे सभी अपने
चढ़के ऊँचे मचान क्या करता ...बहुत ख़ूब!
इस शानदार ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आ. राजेश मैम. सादर.
दीदी इस गजल में आप छा गईं . सादर.
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