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(1) सूखा हुआ किसान को दाना बना दिया ,
फिर ख़ुदकुशी का एक बहाना बना दिया ,
अब कहते अन्नदाता उसे शर्म आती है ,
भूख और मुफ़लिसी का तराना बना दिया ।
(2) अरमानों को कफ़न में सजाता किसान है,
अब ख़ुद ही अपनी लाश उठाता किसान है,
गोली पुलिस की खाए कि फ़ाकों से वो मरे,
मय्यत का रोज़ जश्न मनाता किसान है ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment by Mohammed Arif on July 5, 2017 at 8:10am
आपकी हौसला अफज़ाई और सराहना का बहुत-बहुत आभार आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी ।
Comment by नाथ सोनांचली on July 5, 2017 at 5:52am
आद0 मोहम्मद आरिफ जी सादर अभिवादन, बेहद उम्दा मुक्तक, किसानों की दुर्दशा को बेहतरीन शब्दो मे उतारा है आपने। अनन्त बधाइयाँ आपको
Comment by Mohammed Arif on July 4, 2017 at 7:40am
आदरणीय विजय निकोर जी आदाब,आपकी उत्साहजनक और हौसला अफ़ज़ाई वाली टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ। हार्दिक आभार ।
Comment by vijay nikore on July 4, 2017 at 2:43am

किसानों की वर्तमान स्थिति का वर्णन करती इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय भाई मोहम्मद आरिफ़ जी।

ऐसे ही और लिखते रहें। 

सादर,

विजय निकोर

Comment by Mohammed Arif on July 3, 2017 at 6:43pm
आदरणीय नरेंद्र सिंह जी आपका बहुत-बहुत आभार ।
Comment by Mohammed Arif on July 3, 2017 at 6:42pm
बहुत-बहुत आभार आदरणीय सुशील सरना जी । लेखन सार्थक हुआ ।.
Comment by Mohammed Arif on July 3, 2017 at 6:40pm
आदरणीय आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,आपकी उत्साह जनक टिप्पणी,इस्लाह और रचना के सही मूल्यांकन से लेखन को संबल मिला । बहुत-बहुत शुक्रिया ।
Comment by narendrasinh chauhan on July 3, 2017 at 5:06pm

खूब सुन्दर रचना 

Comment by Sushil Sarna on July 3, 2017 at 4:02pm

वाह वर्तमान को जीवंत करे इन मुक्तकों के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय। 

Comment by Samar kabeer on July 3, 2017 at 12:35pm
जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,मुल्क में आज जो किसानों की हालत है उसको आपके मुक्तक बख़ूबी बयान कर रहे हैं,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
पहले मुक्तक की तीसरी पंक्ति में 'है' शब्द लिखने से रह गया है,देखियेगा ।

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