For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- "दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है" ( दिनेश )

2122--1212--22

ग़ज़ल .....

ज़िन्दगी क्या है औ'र क़ज़ा क्या है
कौन जाने ये माजरा क्या है

एक जलता हुआ चराग़ हूँ मैं
मुझको मालूम है... हवा क्या है

हक़-परस्ती गुनाह था मेरा
मैं हूँ हाज़िर..बता सज़ा क्या है

दर्दे-जाँ ने भी आज पूछ लिया
ज़ब्त की तेरे इंतेहा क्या है

नाव साहिल प आके डूब गई
इसमें तूफ़ान की ख़ता क्या है

झूट लालच फ़रेब चालाकी
देख इन्सान में बचा क्या है

तेरी मरज़ी से कुछ नहीं होगा
तू दिनेश इतना सोचता क्या है

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 600

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जयनित कुमार मेहता on February 3, 2017 at 8:52pm
आदरणीय दिनेश जी, बहुत खूबसूरत ग़ज़ल पेश की है आपने। और आदरणीय समर कबीर जी की मूल्यवान प्रतिक्रिया भी आपको मिल चुकी है। सभी शेर बेहतरीन हैं, अगर आपके पांचवे शेर को यूं कहा जाए तो इसकी खूबसूरती बढ़ जाएगी-
"झूट लालच फरेब चालाकी
और इन्सान में बचा क्या है"

सादर!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 3, 2017 at 6:27pm

आदरणीय दिनेश भाईजी, चचा ग़ालिब की ज़मीन पर उम्दा ग़ज़ल कही है आपने.  बहुत बहुत बधाई. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 3, 2017 at 10:12am

आदरणीय दिनेश भाई , खूब सूरत ग़ज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2017 at 12:19pm

बहुत खूब ... हार्दिक बधाई .

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 1, 2017 at 9:07pm
वाह क्या खूबसूरत ग़ज़ल हुई..बेहतरीन
Comment by narendrasinh chauhan on February 1, 2017 at 6:17pm

खूब सुन्दर रचना 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 31, 2017 at 9:00pm
वाह आ. दिनेश भाई ग़ालिब साहब की ज़मीन पर अच्छी ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई
Comment by Gurpreet Singh jammu on January 31, 2017 at 5:56pm
वहवाह दिनेश जी बहूत ही अच्छी ग़ज़ल कही है आपने.
Comment by दिनेश कुमार on January 31, 2017 at 6:14am
आदरणीय समर साहब। हौसला अफ़ज़ाई और सुधार के लिए तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ। नवाज़िश।
Comment by Samar kabeer on January 30, 2017 at 10:39pm
जनाब दिनेश कुमार 'दानिश' साहिब आदाब,ग़ालिब की ज़मीन में उम्दा ग़ज़ल कही आपने ,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।

मतले के सानी मिसरे में 'माज़रा' को "माजरा" कर लें ।


"हक़-परस्ती गुनाह था मेरा
मैं हूँ हाज़िर..मेरी सज़ा क्या है"

इस शैर के सानी मिसरे को यूँ करें तो बहतर होगा :-

"मैं हूँ हाज़िर,बता सज़ा क्या है"

क्यूँकि एक शैर में तीन बार एक ही तरह के शब्द 'मेरा','मैं हूँ','मेरी' की तकरार अच्छी नहीं लगती ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, बेह्तरीन ग़ज़ल से आग़ाज़ किया है, सादर बधाई आपको आखिरी शे'र में…"
1 hour ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीया ऋचा जी बहुत धन्यवाद"
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी, आपकी बहुमूल्य राय का स्वागत है। 5 में प्रकाश की नहीं बल्कि उष्मा की बात है। दोनों…"
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी। आप की मूल्यवान राय का स्वागत है।  2 मय और निश्तर पीड़ित हृदय के पुराने उपचार…"
2 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय महेंद्र कुमार जी नमस्कार। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु बधाई।"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी ।सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए। अच्छी ग़ज़ल हेतु आपको हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए।  ग़ज़ल हेतु बधाई। कंटकों को छूने का.... यह…"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीया ऋचा यादव जी ।सादर नमस्कार।ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु बधाई।गुणीजनों के इस्लाह से और निखर गई है।"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय euphonic amit जी आपको सादर प्रणाम। बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय त्रुटियों को इंगित करने व…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी से हर बात बताने समझाने कनलिये सुधार का प्रयास…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय, अमित जी, आदाब आपने ग़ज़ल तक आकर जो प्रोत्साहन दिया, इसके लिए आपका आभारी हूँ ।// आज़माता…"
4 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय DINESH KUMAR VISHWAKARMA आदाब ग़ज़ल के उम्द: प्रयास पर बधाई स्वीकार करें। मुश्किलों की आँधी…"
4 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service