For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- फ़क़ीर हूँ मैं नवाब जैसा। ( दिनेश कुमार )

121 22 -- 121 22

बहिश्त के इक गुलाब जैसा
बदन वो जामे शराब जैसा

मैं उसको पढ़ता हूँ झूमता हूँ
सुख़न की वो इक किताब जैसा

न पूछो दीवानगी का आलम
सुकूँ का पल इज़्तिराब जैसा

हर एक ख़्वाहिश सराब जैसी
हर एक लम्हा अज़ाब जैसा

वो अपने चेहरे से कब है ज़ाहिर
कि उसका चेहरा नक़ाब जैसा

है इश्क़ करना गुनाह बेशक
गुनाह लेकिन सवाब जैसा

फिसलता मुट्ठी से वक़्त हर पल
ये अपना जीवन हुबाब जैसा

जो सिर्फ़ अपनी ही धुन में रहता
फ़क़ीर हूँ मैं नवाब जैसा

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 532

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by दिनेश कुमार on April 14, 2016 at 6:41am
मुझ नाचीज़ की हौसला अफ़ज़ाई के लिए आप सब सम्मानित साथियों का दिल की गहराइयों से असीम धन्यवाद्.
Comment by gumnaam pithoragarhi on April 10, 2016 at 1:37pm

वाह सर जी वाह बहुत खूब ग़ज़ल हुई है वाह ................ बधाई ................

Comment by रामबली गुप्ता on April 7, 2016 at 7:30pm
वाह वाह।
फकीर हूँ मैं नवाब जैसा।
क्या बात है आदरणीय। बहुत खूब
Comment by Samar kabeer on April 6, 2016 at 6:04pm
जनाब दिनेश कुमार जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है, शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।
Comment by narendrasinh chauhan on April 6, 2016 at 3:44pm

 बहुत ही  शानदार ग़ज़ल 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 6, 2016 at 11:11am

हर एक ख़्वाहिश सराब जैसी
हर एक लम्हा अज़ाब जैसा

फिसलता मुट्ठी से वक़्त हर पल
ये अपना जीवन हुबाब जैसा

वाह्ह  बहुत ही  शानदार ग़ज़ल कही है दिनेश जी दिली दाद कुबूलें 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 6, 2016 at 11:07am

आ0 भाई दिनेश जी. इस दिलकश ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई l

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 6, 2016 at 10:35am

हर एक ख़्वाहिश सराब जैसी
हर एक लम्हा अज़ाब जैसा....
वो अपने चेहरे से कब है ज़ाहिर
"है" उसका चेहरा नक़ाब जैसा...... शानदार 

बधाई 

Comment by दिनेश कुमार on April 5, 2016 at 8:13pm
तहे दिल से शुक्रिया आ. सरना सर जी।
Comment by Sushil Sarna on April 5, 2016 at 8:03pm

बहिश्त के इक गुलाब जैसा
बदन वो जामे शराब जैसा

मैं उसको पढ़ता हूँ झूमता हूँ
सुख़न की वो इक किताब जैसा
वाह दिनेश भाई वाह दिलकश अशआर दिल पे छा गए ... लोबान की महक से जिस्मों जां पे छा गए .... इस दिलकश ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई जैफ जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद।"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय ज़ेफ जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"//जिस्म जलने पर राख रह जाती है// शुक्रिया अमित जी, मुझे ये जानकारी नहीं थी। "
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी, आपकी टिप्पणी से सीखने को मिला। इसके लिए हार्दिक आभार। भविष्य में भी मार्ग दर्शन…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"शुक्रिया ज़ैफ़ जी, टिप्पणी में गिरह का शे'र भी डाल देंगे तो उम्मीद करता हूँ कि ग़ज़ल मान्य हो…"
7 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. दयाराम जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास रहा। आ. अमित जी की इस्लाह महत्वपूर्ण है।"
7 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. अमित, ग़ज़ल पर आपकी बेहतरीन इस्लाह व हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिय:।"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी, समयाभाव के चलते निदान न कर सकने का खेद है, लेकिन आदरणीय अमित जी ने बेहतर…"
7 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. ऋचा जी, ग़ज़ल पर आपकी हौसला-अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिय:।"
7 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. लक्ष्मण जी, आपका तह-ए-दिल से शुक्रिय:।"
7 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service