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ग़ज़ल -- ख़बर कहाँ थी मुझे पहले इस ख़ज़ाने की ( दिनेश कुमार )

1212--1122--1212--22


ख़बर कहाँ थी मुझे पहले इस ख़ज़ाने की
ग़मों ने राह दिखाई .........शराबख़ाने की

चराग़े--दिल ने की हसरत जो मुस्कुराने की
तो खिलखिला के हँसी आँधियाँ ज़माने की

मैं शायरी का हुनर जानता नहीं ....बेशक
अजीब धुन है मुझे क़ाफ़िया मिलाने की

वजूद अपना मिटाया किसी की चाहत में
बस इतनी राम कहानी है इस दिवाने की

वो घोसला भी बनाएगा बाद में ...अपना
अभी है फिक्र परिन्दे को आबो-दाने की

मैं अश्क बन के गिरा हूँ खुद अपनी नज़रों से
कहाँ मिलेगी जगह मुझको सर.....छुपाने की

अनाथ बच्चों की आहें सवाल ...करतीं हैं
ख़ुदा को क्या थी ज़रूरत जहाँ बनाने की

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by दिनेश कुमार on May 5, 2016 at 1:30pm
शुक्रिया आ. धर्मेंदर जी।
Comment by दिनेश कुमार on May 5, 2016 at 1:29pm
शुकिया आ. चौहान साहब।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 19, 2016 at 5:44pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय दिनेश जी, दाद कुबूल करें।

Comment by narendrasinh chauhan on April 19, 2016 at 5:06pm

लाजवाब रचना 

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