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"ये मिठाई कहाँ से आई जी ?" अपने खेत के किनारे चारपाई पर चुपचाप लेटे शून्य को निहारते हुए पति से पूछाI
"अरी, वो गुलाबो का लड़का दे गया था दोपहर को।" उसने चारपाई से उठते हुए उत्तर दियाI
"कौन? वही जो शहर में सब्ज़ी का ठेला लगाता है?"
"हाँ वही! बता रहा था कि अब उसने दुकान खोल ली है, उसकी ख़ुशी में मिठाई बाँट रहा थाI" पति ने मिठाई का डिब्बा उसकी तरफ सरकाते हुए कहाI
"चलो अच्छा हुआI" पत्नी ने चेहरे पर कृत्रिम सी मुस्कुराहट आईI
"वो बता रहा था कि उसने बेटे को भी टैम्पो डलवा दिया है, और बेटी को भी कॉलेज में भर्ती करवा दिया है।"
"अच्छा?"
"हाँ! काफी तरक्की कर गया ये लौंडा शहर जाकरI"
बेमौसम बरसात से उजड़े हुए खेत को निहार, पहाड़ जैसे क़र्ज़ और घर में बैठी दो दो कुँवारी बेटियों को याद करते हुए एक ठण्डी आह भरते हुए वह बोली :
"हमसे तो वो ही अच्छा है जी ।"

.

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by Mahendra Kumar on June 9, 2018 at 10:58am

जिसने अन्न उगाया वो वहीं रह गया और जिसने उस अन्न को बेचा वो कहाँ से कहाँ पहुँच गया. किसानों की व्यथा को कसक के माध्यम से क्या ख़ूब उभारा है आपने. मेरी तरफ़ से भी हार्दिक बधाई प्रेषित है सर. सादर.

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 4, 2016 at 4:26pm

किसानो के व्यथा बाखूबी दर्शायी है आदरणीय सर | 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 9, 2016 at 9:06pm

आ० प्रभाकर सर जी, सादर प्रणाम! समकालीन दुर्व्यवस्थाओं को उजागर करती यथार्थ कथावस्तु को नमन. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर

Comment by ram shiromani pathak on March 9, 2016 at 6:21pm
मार्मिक चित्रण आदरणीय ।।बधाई

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Comment by rajesh kumari on March 9, 2016 at 12:27pm

किसानों को हमेशा मौसम पर निर्भर रहना पड़ता है और मौसम भी उसका सगा नहीं है परेशां होकर किसान उनके बच्चे पलायन कर रहे हैं किसानों की दयनीय स्थिति को इस लघु कथा के माध्यम से बाखूबी उकेरा है आपने ..बहुत शानदार प्रस्तुति .हार्दिक बधाई आ० योगराज जी .

Comment by Nita Kasar on March 8, 2016 at 2:52pm
किसानों की पीड़ा को महसूस किया जा सकता हाै कथा के ज़रिये ये कैसी लाचारी है?अन्नदाता पर आफ़त भारी है ।बधाईयां आपके लिये आद०योगराज प्रभाकर जी ।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 7, 2016 at 9:17pm

मोहतरम जनाब योगराज  साहिब ,   गरीब किसान की सही तस्वीर लघु कथा में खिंच गयी , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं  

Comment by Sushil Sarna on March 7, 2016 at 8:58pm

किसानों की दयनीय स्थिति का बहुत ही सूक्ष्म चित्रण किया है आदरणीय सौरभ सर। सब का पेट भरने वाला स्वयं शून्यता की तपिश सह रहा है। इस मार्मिक और श्रेष्ठ लघु कथा की प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें आदरणीय। 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on March 7, 2016 at 8:57pm
कहने भर की ज़मींदारी ,हैं अनगिनत लाचारी
जमीन होने से तो अच्छा ,बेच लेते तरकारी।।
मार्मिक चित्रण।सादर नमन श्रद्धेय सर जी।
Comment by TEJ VEER SINGH on March 7, 2016 at 8:10pm

हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज भाई जी!बेहद मार्मिक और हृदय स्पर्शी प्रस्तुति!

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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