For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सामाजिक न्याय दिवस पर दोहे

सामाजिक न्याय दिवस (२० फरवरी) पर

जाति  धर्म  के  फेर  से, मुक्त  नहीं  जब देश
तब सामाजिक न्याय का, मिले कहाँ परिवेश।।
*
कत्ल अपहरण  रेप की, बलशाली को छूट
है सामाजिक न्याय की, यहाँ आज भी लूट।।
*
चन्द यहाँ खुशहाल है, शेष सभी गमगीन
सामाजिक समता नहीं, देश भले स्वाधीन।।
*
धनवानों को न्याय हित, घर आता आयोग
न्याय न्याय चिल्ला मरे, लेकिन निर्धन लोग।।
*
सज्जन को करना क्षमा, एक बार है न्याय
दुर्जन को बस दण्ड ही, केवल शेष उपाय।।
*
है सामाजिक न्याय का, नारा बहुत अपंग
जब तब देखो हाकते, इस को लोग दबंग।।
*
बेबस निर्धन जेल में, बिन सुनवाई बन्द
अपराधों के बाद भी, बलशाली निर्द्वन्द।।
*
अपराधी  लड़  कैद से, जाता  जीत  चुनाव
पीड़ित सबको गिर करे, राजनीति का भाव।।
*
व्यापारी तो  कर्ज  ले, भागें  आज विदेश
राहत नहीं किसान को, कैसा यह परिवेश।।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

Views: 919

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 24, 2022 at 9:32am

आ. भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 24, 2022 at 9:31am

आ. भाई अमीरुद्दी जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति, प्रशंसा और त्रुटि की ओर ध्यान दिलाने लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 23, 2022 at 9:27pm

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by Aazi Tamaam on February 23, 2022 at 3:22pm

वाह आ धामी सर बेहद खूबसूरत दोहे हुए वाह वाह

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on February 22, 2022 at 1:11pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, अच्छी दोहावली हुई है, हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

"बेबस निर्धन जेल में, बिन सुनवाई बन्द

 अपराधों के बाद भी, बलशाली निर्द्वन्द"   

मेरे जानकारी में इस दोहे का अंतिम शब्द सही अक्षरी "निर्द्वन्द्व" है, देखियेेगा।  सादर। 

Comment by Chetan Prakash on February 22, 2022 at 7:24am

खुब सूरत दोहे लिखे, आपने भाई लक्ष्मण सिंह धामी मुसाफिर साहब, बधाई  ! 

" सज्जन को करना क्षमा, एक बार है न्याय ! / दुर्जन को बस दंड ही, केवल शेष उपाय " दोहा मेरी विशेष पसंद रहेगा! सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 21, 2022 at 9:37pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति, स्नेह एवं टंकणत्रुटि की ओर ध्यान दिलाने के लिए आभार।

Comment by Samar kabeer on February 21, 2022 at 8:44pm

जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, अच्छे दोहे लिखे आपने, बधाई स्वीकार करें ।

'चन्द यहाँ खुशहाल है, शेष सभी गमगीन'

इस पंक्ति में 'है' को "हैं" करना उचित होगा ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 20, 2022 at 8:19pm

आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।

इंगित पंक्ति को यूँ पढ़ें - " गिर सबको पीड़ित करे"

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on February 20, 2022 at 6:46pm

आदरणीय लक्ष्मणजी 

सुन्दर दोहावली हार्दिक बधाई |

पीड़ित सबको गिर करे ....... अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाया 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
58 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
14 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
14 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
14 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
15 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
20 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service