तेरे स्नेह के आंचल की छाँह तले
पल रहा अविरल कैसा ख़याल है यह
कि रिश्ते की हर मुस्कान को
या ज़िन्दगी की शराफ़त को
प्यार के अलफ़ाज़ से
क़लम में पिरो लिया है,
और फिर सी दिया है... कि
भूले से भी कहीं-कभी
इस रिश्ते की पावन
मासूम बखिया न उधड़े
और फिर कस दिया है उसे
कि उसमें कभी भी अचानक
वक़्त का कोई
झोल न पड़ जाए।
सुखी रहो, सुखी रहो, सुखी रहो
हर साँस हर धड़कन दुहराए
स्नेह का यही एक ही आलाप ....
कि हो अब जैसे
यह मेरा एकमात्र मक़सद ही नहीं
संध्या-आरती में
प्यार का वह आलाप,
और उससे पल्ल्वित यह राग
मेरा मज़हब बन जाए
कुछ ऐसे कि अब हमारे बीच
कोई अपूर्णताएँ भी
कभी के बहे आँसुओं को बटोर कर
स्नेह का सागर बन जाएँ
और इस पर भी यदि उठे कोई वेदना
तो चूम लें हम स्नेहिल अधरो से उसको
प्यार का मज़हब हमारा उसी पल
सनातन हो जाए
झंकृत हो उठें मेरी अक्षमताएँ भी
अंतिम साँस तक दुहराते
उसी एक आलाप को
कि तुमको सुख मिले, बहुत सुख मिले
मेरे "प्यार", मेरे "प्राण-रत्न"
मेरे बाद तुम बहुत दिन जीना
रोना नहीं
तब मेरे इन गीतों को पढ़ना
और फिर भी अगर आँख नम हो जाए
तो खीँच देना कुछ लकीरें
गीली रेत में
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-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीया अंजुमन जी, सराहना के लिए आभारी हूँ।
प्रिय मित्र अरुण जी, आप कविता में लिखी मेरी भावनाओं के मर्म तक पहुँचे, यह वही कर सकता है जो स्वयं अच्छा लेखक और पाठक हो।आभारी हूँ।
भाई विजय जी , आपके लेखन में भावनाओ का उत्तम सामन्जस्य दीख पड़ता है मुझे , प्रेम को आपने करीब से देखा है व अपनत्व को खुल् के जिया है , मुझे आपकी ये रचना बहुत पसन्द आई |
आदरणीय विजय जी आदाब, बहुत ही खूबसूरत रचना, हार्दिक बधाई
आद0 विजय निकोर जी सादर अभिवादन। बेहतरीन सृजन पढ़ने को मिला,, बहुत बहुत बधाई आपको
अहा...आदणीय विजय जी...जबरजस्त...और कविता की पूर्णता जब पढ़ते हुए रोम झंकृत हो उठें...और अंतिम कुछ पंक्तियों ने रोम झंकृत कर दिए...बधाई
आ. भाई विजय जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई।
प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब, बहुत समय बाद आपकी रचना पढने का मौक़ा मिला है i
हमेशा कि तरह एक शानदार रचना से आपने मंच को नवाज़ा है, इस बहतरीन प्रस्तुति पर दिली मुबारकबाद पेश करता हूँ I
कुछ टंकण त्रुतियों की तरफ़ आपका ध्यान दिलाना चाहूँगा :-
'मेरी "प्यार", मेरी "प्राण-रत्न"----''मेरे प्यार मेरे प्राण रत्न"
खयाल --"ख़याल"
कलम --"क़लम"
बखिया -"बख़िया"
वक्त--"वक़्त"
मकसद --"मक़सद"
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