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Anjuman Mansury 'Arzoo'
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Anjuman Mansury 'Arzoo' commented on Anjuman Mansury 'Arzoo''s blog post ग़ज़ल - हैं ख़ाक फिर भी उठाकर जो सर खड़े हैं पहाड़
"मोहतरम  Zaif जी आदाब ग़ज़ल तक पहुंचने और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया"
Dec 31, 2022
Anjuman Mansury 'Arzoo' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-150
"आ जैफ जी, अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Dec 29, 2022
Anjuman Mansury 'Arzoo' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-150
"प्रिय Richa Yadav जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल के लिए दिली मुबारकबाद, चिन्हित सुधार के बाद बेहतरीन हो जाएगी"
Dec 29, 2022
Anjuman Mansury 'Arzoo' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-150
"आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, सादर नमस्ते अच्छी ग़ज़ल हुई है, हार्दिक बधाई, लेकिन आदरणीय Chetan Prakash जी से सहमत"
Dec 29, 2022
Anjuman Mansury 'Arzoo' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-150
"वज़्न - 1222 1222 1222 1222 अगर दिल में कोई उम्मीद का जज़्बा नहीं रहता तो इंसाँ गर्दिश-ए-अय्याम में ज़िंदा नहीं रहता /1 ख़ुदा के इस जहाँ में रंग सब मिलजुल के रहते हैं हरा तन्हा कहीं पर और कहीं भगवा नहीं रहता /2 अभी है वक़्त ज़ाया बिन किए कुछ कर…"
Dec 29, 2022
Zaif commented on Anjuman Mansury 'Arzoo''s blog post ग़ज़ल - हैं ख़ाक फिर भी उठाकर जो सर खड़े हैं पहाड़
"मुहतरमा आरज़ू जी, भावपूर्ण ग़ज़ल, वाह! सादर"
Dec 24, 2022
Zaif commented on Anjuman Mansury 'Arzoo''s blog post ग़ज़ल - ये बर्फीली हवाएंँ तेज़ तूफ़ाँ ये मिज़ाजी ठंड
"वाह, मुहतरमा आरज़ू जी, क्या अंदाज़ है!"
Dec 24, 2022
Samar kabeer commented on Anjuman Mansury 'Arzoo''s blog post ग़ज़ल - मैं अँधेरी रात हूंँ और शम्स के अनवर-से आप
"//मानन्द-ए-मुजस्सम" का अर्थ मूर्ति के जैसे लिया है // 'मुजस्सम' का अर्थ है ,जिस्म वाला, और 'मुजस्सम:' का अर्थ होता है मूर्ति, अब आप ख़ुद देख लें दोनों का फ़र्क़ ।"
Dec 22, 2022
Anjuman Mansury 'Arzoo' posted a blog post

ग़ज़ल - मैं अँधेरी रात हूंँ और शम्स के अनवर-से आप

2122 2122 2122 212मैं अँधेरी रात हूंँ और शम्स के अनवर-से आप शाम-सी मुझ में उदासी, सुब्ह के मंज़र-से आपजाने कैसे मिलना होगा अपना इक मे'यार पर मैं ज़मीं की ख़ाक-सी हूंँ चर्ख़ के मिम्बर-से आपजो भी आया चल दिया वो मुझ से हो कर आप तक मैं अधूरी रहगुज़र हूँ और मुकम्मल घर-से आपक्यों पसंद आये किसी को भी कभी होना मेरा मैं कि अनचाही सी बेड़ी क़ीमती ज़ेवर-से आपआपके बिन इस जहांँ में कुछ नहीं मेरा वजूद मैं हूंँ मानंद-ए-मुजस्सम और मेरे आज़र-से आपतिश्नगी सबकी मिटा कर भी रही मैं तिश्ना लब मैं कि इक प्यासी…See More
Dec 21, 2022
Anjuman Mansury 'Arzoo' commented on Anjuman Mansury 'Arzoo''s blog post ग़ज़ल - मैं अँधेरी रात हूंँ और शम्स के अनवर-से आप
"मोहतरम बृजेश कुमार 'ब्रज जी सादर नमस्ते, हौसला अफ़ज़ाई के लिए हार्दिक आभार"
Dec 21, 2022
Anjuman Mansury 'Arzoo' commented on Anjuman Mansury 'Arzoo''s blog post ग़ज़ल - मैं अँधेरी रात हूंँ और शम्स के अनवर-से आप
"मोहतरम जनाब Ravi Shukla जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया, अभी एडिट करती हूं मोहतरम।"
Dec 21, 2022
Anjuman Mansury 'Arzoo' commented on Anjuman Mansury 'Arzoo''s blog post ग़ज़ल - मैं अँधेरी रात हूंँ और शम्स के अनवर-से आप
"मोहतरम जनाब Samar kabeer साहब आदाब अपना क़ीमती वक़्त ख़र्च करके ख़ूबसूरत इस्लाह के लिए तहे दिल से शुक्रिया, मिम्बर और मानन्द की वर्तनी अभी सुधारती हूं "मानन्द-ए-मुजस्सम" का अर्थ मूर्ति के जैसे लिया है मोहतरम । बा अदब"
Dec 21, 2022
Anjuman Mansury 'Arzoo' commented on Anjuman Mansury 'Arzoo''s blog post ग़ज़ल - हैं ख़ाक फिर भी उठाकर जो सर खड़े हैं पहाड़
"मोहतरम जनाब Ravi Shukla साहब आदाब, जी ! हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया, तरमीम की कोशिश करूंगी, इंशा अल्लाह ।"
Dec 21, 2022
Anjuman Mansury 'Arzoo' commented on Anjuman Mansury 'Arzoo''s blog post ग़ज़ल - हैं ख़ाक फिर भी उठाकर जो सर खड़े हैं पहाड़
"मोहतरम जनाब  Samar kabeer साहब आदाब, तरमीम का बहुत सारा काम निकल आया, कोशिश करूंगी सुधार कर सकूं, खूबसूरत इस्लाह के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया ।"
Dec 21, 2022
Anjuman Mansury 'Arzoo' commented on Anjuman Mansury 'Arzoo''s blog post ग़ज़ल - ये बर्फीली हवाएंँ तेज़ तूफ़ाँ ये मिज़ाजी ठंड
"आदरणीय Ravi Shukla जी सादर नमस्ते, सद शुक्रिया, आपका यह आशीर्वाद बना रहे"
Dec 21, 2022
Anjuman Mansury 'Arzoo' commented on Anjuman Mansury 'Arzoo''s blog post ग़ज़ल - ये बर्फीली हवाएंँ तेज़ तूफ़ाँ ये मिज़ाजी ठंड
"मोहतरम Tapan Dubey जी आदाब, ग़ज़ल तक पहुंचने और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया"
Dec 21, 2022

Profile Information

Gender
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City State
Chhindwara
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About me
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ग़ज़ल - ये बर्फीली हवाएंँ तेज़ तूफ़ाँ ये मिज़ाजी ठंड

वज़्न -1222 1222 1222 1222

ये बर्फीली हवाएंँ तेज़ तूफ़ाँ ये मिज़ाजी ठंड

मुक़ाबिल तुमको पाकर हो गई कितनी गुलाबी ठंड

तुम्हारी याद की इक गुनगुनी सी धूप के दम पर

सुखाए कितने ग़म हमने बिताई कितनी भारी ठंड

अलावों की न थी कोई कमी उसको मगर फिर भी

ज़मीं ने देखकर सूरज को ही अपनी गुज़ारी ठंड

तुम्हारे प्यार के धागों की मैंने शॉल जब ओढ़ी

लगी है तब मुझे सारे हसीं मौसम से प्यारी ठंड

मैं अक्सर सोचती हूंँ काश फिर…

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Posted on December 11, 2022 at 9:41pm — 11 Comments

ग़ज़ल - मैं अँधेरी रात हूंँ और शम्स के अनवर-से आप

2122 2122 2122 212

मैं अँधेरी रात हूंँ और शम्स के अनवर-से आप

शाम-सी मुझ में उदासी, सुब्ह के मंज़र-से आप

जाने कैसे मिलना होगा अपना इक मे'यार पर

मैं ज़मीं की ख़ाक-सी हूंँ चर्ख़ के मिम्बर-से आप

जो भी आया चल दिया वो मुझ से हो कर आप तक

मैं अधूरी रहगुज़र हूँ और मुकम्मल घर-से आप

क्यों पसंद आये किसी को भी कभी होना मेरा

मैं कि अनचाही सी बेड़ी क़ीमती ज़ेवर-से आप

आपके बिन इस जहांँ में कुछ…

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Posted on December 8, 2022 at 6:00pm — 13 Comments

ग़ज़ल - अभी बस पर ही टूटे हैं अभी अंबर नहीं टूटा

1222 1222 1222 1222

अभी बस पर ही टूटे हैं अभी अंबर नहीं टूटा

परिंदा टूटा है बाहर अभी अंदर नहीं टूटा /1

सितारा यूंँ तो टूटा है मेरी तक़दीर का लेकिन

ख़ुदा का शुक्र है तदबीर का अख़्तर* नहीं टूटा /

हमारे ख़ैर ख़्वाहों ने बहुत चाहा मगर अब तक

हमारे दिल में है उम्मीद का जो घर नहीं टूटा /3

सियासत के सताने पर भी बोला जो हमेशा सच

वो जाने कैसी मिट्टी का है ज़र्रा भर नहीं टूटा /4

कई मख़्लूक़* की है ज़िंदगी…

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Posted on December 6, 2022 at 10:13pm — 3 Comments

ग़ज़ल - हैं ख़ाक फिर भी उठाकर जो सर खड़े हैं पहाड़

1212 1122 1212 22/112

हैं ख़ाक फिर भी उठाकर जो सर खड़े हैं पहाड़

तो हौसला रखो क्या हमसे भी बड़े हैं पहाड़ /1

है इनके दिल में नदी-सी बड़ी नमी लेकिन

मुग़ालता* है कि वालिद-से ही कड़े हैं पहाड़़/2 

पहाड़ कह के कोई तंज़ गर करे इन पर

तो आबशार बने अश्क से झड़े हैं पहाड़ /3

पहाड़ जैसी मुसीबत उठा के हम यूंँ चले

कि हम को देखते ही शर्म से गड़े हैं पहाड़ /4

हम अपने पैर गँवा कर भी चढ़ गए इन पर

हमारे जैसे…

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Posted on December 2, 2022 at 8:13pm — 6 Comments

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At 11:56am on September 30, 2021, Sheikh Shahzad Usmani said…

आदाब।.बहुत-मुबारकबाद और हार्दिक स्वागत आदरणीया अंजुमन 'आरज़ू' साहिबा। अब आपकी रचनायें अधिक सुविधा से पढ़ सकेंगे। गोष्ठियों में आपका इंतज़ार और स्वागत।

At 10:53pm on September 29, 2021, Anjuman Mansury 'Arzoo' said…
जी बहुत-बहुत शुक्रिया मोहतरम, आदाब
At 10:53pm on September 29, 2021, अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी said…

मुहतरमा अंजुमन साहिबा ओ बी ओ के मंच पर आप का स्वागत है। सादर। 

 
 
 

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