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April 2013 Blog Posts (245)

'बदलाव'

उद्येश्य बदल गया-
भावों की पहरन
शब्द का
परिमाण बदल गया,
साहित्य,दर्पण समाज का
धुंधला हो गया।
प्रतिद्वंदी
तलवार का,कलम
लोकेष्णा का दास बन गया।
बाढ़ है, तो बारिश भी है
आऽज,भावेश का
बहाव बदल गया।
साहित्य का...
उद्येश्य बदल गया।
परिवेश बदल गया।।
-विन्दु
(मौलिक/अप्रकाशित)

Added by Vindu Babu on April 26, 2013 at 11:03am — 17 Comments

डमरू घनाक्षरी

नियम : ३२ वर्ण लघु बिना मात्रा के ८,८,८,८ पर यति प्रत्येक चरण में .

 

प्रणय पवन बह, रस मन बरसत

बढ़त लहर जस, तन मन गद गद

चमक दमक बस, चलत नगर घर

पग पग हर पल, रहत मदन मद

 

मन भ्रमर चलत, उड़त गगन तक

इत उत भटकत, उठत बहत रह

प्रणय ललक वश, बहकत सम्हरत

चरफर महकत, चटक मटक रह

                 - बृजेश नीरज

Added by बृजेश नीरज on April 26, 2013 at 10:25am — 10 Comments

कुछ हाइकु ...

सूरज -चंदा 
धरती हवा पानी 
आदमी गन्दा 
------
रिश्तों का खून 
पडोसी का धरम 
तेज नाखून .
----
अभी तो थी वो 
किलकारियां थमी 
रो रही थी वो !!!!!!!
--
बढ़ता धर्म 
कम होता विश्वास 
शापित कर्म 
-----
बचपन में 
खिलौने खेले कैसे 
डर मन में ...
----
अन्जाने  हाथ 
चाकलेट…
Continue

Added by AVINASH S BAGDE on April 26, 2013 at 12:01am — 8 Comments

नेता बनने के हुनर.....हास्य व्यंग

बेटा- पापा मै देश के लिये कुछ करना चाहता हूँ

बडा होकर मै नेता बनना चाहता हूँ



पापा बोले-

बेटा

नेता बनने के लिये

बहुत पापड

बेलने पडते है

उसे देश और जनता

दोनो के साथ

खेलने पडते है



उसे विरोधियो को

लताडना होगा

शेर की तरह

दहाडना होगा

एक सफल नेता

बडी चतुराई से

लोगो के कीमती वोट

माँग लेते है

क्योकी

मुरगे की तरह

बिना चूके

बडे नियम से

रोजाना बाग देते है



एक नेता को

यह… Continue

Added by manoj shukla on April 25, 2013 at 10:52pm — 14 Comments

मुझे लिखना है

मुझे लिखना है 

बहुत कुछ कोरेपन को छाटना है 
चलना है शुन्य की पगडंडियों तक 
और वहां तक जहाँ यह धरती और आकाश हो विलीन 
बिलकुल शांत निह्शब्ध स्वर हीन 
चाहता हूँ इक संगीत रचना 
चुनना है  रेट के ढेर से अनगिनत चमकते टुकड़ों को 
गिनना है आकाश में असंख्य तारा गण को  
बुनना है अपनी आदि और अंत की सीमाएं 
कुतरना है अपने अन्ताजाल को 
और फिर दीवारें लांघना है परिवर्तन की  
और फिर लौटकर…
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Added by ajay sharma on April 25, 2013 at 10:00pm — 4 Comments

गजल : कितनी भला कटुता लिखें

भर्त्सना के भाव भर, कितनी भला कटुता लिखें?

नर पिशाचों के लिए, हो काल वो रचना लिखें।  

 

नारियों का मान मर्दन, कर रहे जो का-पुरुष,

न्याय पृष्ठों पर उन्हें, ज़िंदा नहीं मुर्दा लिखें।

 

रौंदते मासूमियत, लक़दक़ मुखौटे ओढ़कर,

अक्स हर दीवार पर, कालिख पुता उनका लिखें।

 

पशु कहें, किन्नर कहें, या दुष्ट दानव घृष्टतम,

फर्क उनको क्या भला, जो नाम, जो ओहदा लिखें।

 

पापियों के बोझ से, फटती नहीं अब ये धरा

खोद कब्रें, कर…

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Added by कल्पना रामानी on April 25, 2013 at 10:00pm — 67 Comments

परेशां है समंदर तिश्नगी से - ग़ज़ल

परेशां है समंदर तिश्नगी से 

मिलेगा क्या मगर इसको नदी से



अमीरे शहर उसका ख़ाब देखे  

कमाया है जो हमने मुफलिसी से

 …

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Added by वीनस केसरी on April 25, 2013 at 10:00pm — 12 Comments

होता रहा नीलाम है ये आम आदमी

सदियों रहा गुलाम है ये आम आदमी 

होता रहा नीलाम है  ये आम आदमी 


रोता है बिलखता है जाता है  बहल फिर
 बच्चों सा ही मासूम है  ये आम आदमी …
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Added by ajay sharma on April 25, 2013 at 9:30pm — 8 Comments

नेतागिरी का कीड़ा - व्यंग्य

नेतागिरी का कीड़ा - व्यंग्य 

इस बार चुनाव लड़ने की 

हमने भी ठानी है,

हमारे अंदर नेतागिरी का कीड़ा है

यह बात हमने अभी…

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Added by Usha Taneja on April 25, 2013 at 6:30pm — 22 Comments

मै बरगद का पेड

|| मै बरगद का पेड ||

मै बरगद का पेड सयाना, चिरस्थिर खडा था आँगन मे ।

कितने मौसम आते जाते, देखे है मैने जीवन मे ।

सदीया बीती नदिया रीति, वो गाँवो का शहर बन जाना  ।

अब मै डरा सहमा सा खडा हुआ हू, इन  कंक्रीटो के वन मे

वो बडॆ प्यार से अम्मा बाबा का, मुझे धरा मे रोपना ।

वो खुद के बच्चो जैसा मेरा, लाड प्यार से पाल पोसना ।

वो पकड के मेरी बाहो को, मुन्ना मुनिया का झुला झुलना

वो चढ के मेरे कंधो पर, कटी…

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Added by बसंत नेमा on April 25, 2013 at 12:30pm — 11 Comments

पंचतंत्र की रोचक कहानियां और बच्चें

वर्तमान समय में हमारे बच्चों को मनोरंजन के अनेक साधन उपलब्ध हैं। इनमे सबसे प्रमुख है टी . वी . जिस पर प्रसारित होने वाले कार्टून बच्चों को बेहद पसंद आते हैं। पर बच्चे इनसे क्या सीखते हैं यह सोंच का विषय है।

कई कार्टून चरित्र जो बच्चों में बहुत लोकप्रिय हैं जैसे स्पाइडरमैन, बैटमैन, बेन टेन इत्यादि। बच्चे इन चरित्रों से बहुत…

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Added by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on April 25, 2013 at 11:30am — 7 Comments

शक करने का काम

शक करने का काम

 

वो शक करता है

हर मिलने-जुलने वालों पर

और अपने गुर्गों द्वारा

करता रहता पड़ताल

कहीं कोई भेदिया तो

बदल कर भेस 

घुस आया हो

उसके आभा-मंडल में....

 

वो शक करता है

अपने दरबारी, सिपहसालारों पर

चमचों-चाटुकारों पर

इसीलिये कुछ को देता रहता है सज़ाएँ

कुछ को पुरस्कार

कुछ का तिरस्कार....

 

वो शक करता…

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Added by anwar suhail on April 24, 2013 at 10:04pm — 8 Comments

कुंडलिया छंद -लक्ष्मण लडीवाला

कुंडलिया छंद 

पत्नी लागी दाँव पर, गए युधिष्ठिर  हार,

महासमर के वार का, धर्म बना आधार |

धर्म बना आधार, द्रोपदी चीर हरण का,

कृष्ण बने मझधार, तन पर बढ़ते चीर का  

दुशासन मढ़े…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 24, 2013 at 10:00pm — 16 Comments

कैसा समाज // कुशवाहा//

कैसा समाज // कुशवाहा//

-------------------------

जनम लेत बालिका जननी न सुहात है 

माम सुन चाहत है मात नही भात है 

कृष् काय बदन लिये तन पर नहि गात है 

चौराहे अन्न सडत कैसा सुप्रभात है 

वैभव विहीन वो जनम काली रात है 

कली न खिली अभी भंवरे मडरात हैं  

खग गगन उड़न चहे बाजों का राज है 

सखि संग खेलन गयी संझा की बात है 

मैला आंचल हुआ लुटी सगरी रात है 

दोषी भला ये क्यों अपने ही भ्रात हैं 

संस्कार विहीन ये अपराध सम्राट…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 24, 2013 at 4:25pm — 14 Comments

जय हो भारत , बस जग में |

छोड़ पाप मन का , सत पथ पर चल  , लफडा करना , अब छोडो  |
तज काम क्रोध को , छोड़ लोभ मद  , हरी भजन में  , मन जोड़ो |
लोग शिक्षा पायें , ज्ञान कमायें , प्रेम बढायें , हर जन में |
जहाँ लोग देखें , खुश हो जायें , बस ऐसे बन  , हर मन…
Continue

Added by Shyam Narain Verma on April 24, 2013 at 3:25pm — 4 Comments

शादी बनाम बहुमत

हास्य - व्यंग

शादी बनाम बहुमत



एक दिन श्रीमती जी का आसन डोला ,

मेरा छोटा सुपुत्र…

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Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 24, 2013 at 10:00am — 8 Comments

‘‘गजल‘‘

‘‘गजल‘‘

एक प्रयास के फलस्वरूप प्रस्तुत है।

वज्न......1222 1222 1222 1222

कुसुम को तोड़कर किसने, हसीनों को रिझाया है।

रूहानी जानकर उसने, मकानों को सजाया है।।1

जहां में और भी किस्से, सुनाया नाम पाया है।

चुराकर रात का काजल, सुनयनों को लगाया है।।2

चला है शाम से नश्तर, सितम भी खूब ढाया है।

वतन को छोड़ आफत में, बेगानों को छिपाया है।।3

यहां कातिल वहां मंजिल, बहानों से बुलाया है।

खुदा को भूल आया वो, सकीनों को रूलाया…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 24, 2013 at 9:32am — 30 Comments

पं.हरिराम द्विवेदी " हरि भइया " को साहित्य अकादमी का भाषा पुरस्कार !

                               गभग  आधी सदी से भोजपुरी बोली -  भाषा का परचम राष्ट्रीय  अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर कामयाबी के साथ फहराने वाले लोक कवि पंडित हरि राम द्विवेदी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए साहित्य अकादमी ने प्रतिष्ठित 'भाषा पुरस्कार' प्रदान करने की घोषणा की है ।…

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Added by Abhinav Arun on April 24, 2013 at 9:30am — 5 Comments

पीर की माला

फिर तुम्हारी याद में 
इक पीर की माला बनायी ...

रूठना फिर मनाना
इक रीत है
हाँ हमारे बीच
अपनी प्रीत है
इसी पूजा में रहे
हम मग्न
तो आवाज आयी
फिर तुम्हारी याद में ...

एक अद्भुत
अलौकिक संगीत है
हाँ तुम्हारी याद
मेरी मीत है
ध्यान जो तेरा धरूँ
तो आँसुओं ने
झिर लगायी
फिर तुम्हारी याद में ....

                  योगेश्वर 'राग'

Added by योगेश्वर 'राग' on April 24, 2013 at 4:44am — 14 Comments

छोटी -छोटी बातें

छोटी छोटी बातों पर 

अनायास ही अनचाहे 

मन मुटाव हो जाता है 

दुराव हो जाता है 

दूरी बढ़ जाती है 

हम तिलमिला जाते हैं 

मौन हो जाते हैं 

अहम भाग जाता है …

Continue

Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 24, 2013 at 12:09am — 12 Comments

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