कुंडलिया छंद
पत्नी लागी दाँव पर, गए युधिष्ठिर हार,
महासमर के वार का, धर्म बना आधार |
धर्म बना आधार, द्रोपदी चीर हरण का,
कृष्ण बने मझधार, तन पर बढ़ते चीर का
दुशासन मढ़े दोष, देखे न खुद की करनी, ,
जोश में न खो होश ,लगा न दाँव पर पत्नी|
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Comment
सही कह रहे है आप श्री जवाहर सिंह जी, हम सभी जो आँखे मूंदे है, दोषी है | आखिर सरकार हम्मरे द्वारा ही बनती है
फिर भी रचना धर्मी का कर्तव्य जागरूकता के लिए लिखते रहना है | हम निराश होकर आँख बंद कर बैठ नहीं सकते |
कभी तो जनता, समाज और सरकार जागेगी, यह आशा संजोये रखनी है | आपका हार्दिक आभार
आदरणीय लड़ीवाला जी, सादर अभिवादन!
आपको भाव पसंद आये श्री राजेश कुमार झा साहब, क्रपुआ आभार स्वीकारे
आदरणीय श्री गणेशजी बागी जी, और श्री अशोक रक्ताले जी, आप दोनों द्वारा दिए गए दिशा निर्देश के लिए हर्र्दिक आभार
संशोधन के बाद एक बार कृपया पुनः अवलोकन कर बतावे सुधार कर पाया क्या ? सादर
आदरणीय लड़ी वाला जी
वाह सर जी शानदार भाव उक्त रचना हेतु सादर बधाई
वाह-वाह आदरणीय लड़ीवाला जी, शिल्प पर मैं बहुत ही कच्चा हूं किंतु जिस भाव को लेकर आपने लिखा है वे बहुत अच्छे लगे, सादर
रचना के भाव पसंद करने के लिए हार्दिक आभार मेडम उषा तनेजा जी, सादर
कुंडलिया छंद के भाव पसंद कर उत्स्सह्वर्धन दे लिए हार्दिक आभार श्री सुरेन्द्र कुमार शुक्ला "भ्रमर" भाई, जय श्री राम
आदरणीय लड़ीवाला साहब सादर, आप भाव प्रवाह में शिल्पगत त्रुटियों को नजरंदाज करेंगे तो अच्छे भले भाव भी निराश करेंगे. कुण्डलिया को गुरु गुरु से ही शुरू करें और उसी प्रथम शब्द पर ही अंत करें. सादर.
श्री हनुमान जयंती की शुभकामनाए .....कुंडलिया सुन्दर लगी,...आदरणीय लक्ष्मण जी ....जय श्री राधे
रोला का पदांत लघु से होता है क्या ?
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