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कैसा समाज // कुशवाहा//

कैसा समाज // कुशवाहा//

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जनम लेत बालिका जननी न सुहात है 

माम सुन चाहत है मात नही भात है 

कृष् काय बदन लिये तन पर नहि गात है 

चौराहे अन्न सडत कैसा सुप्रभात है 

वैभव विहीन वो जनम काली रात है 

कली न खिली अभी भंवरे मडरात हैं  

खग गगन उड़न चहे बाजों का राज है 

सखि संग खेलन गयी संझा की बात है 

मैला आंचल हुआ लुटी सगरी रात है 

दोषी भला ये क्यों अपने ही भ्रात हैं 

संस्कार विहीन ये अपराध सम्राट हैं 

दिया नहि ध्यान कभी कहाँ कहाँ जात हैं 

अपराधी बने वे करत पश्चाताप हैं 

घर में बैठ कभी करत नही बात हैं 

पैसा पैसा करत मरते दिन रात हैं 

शूल बन पथ में आज कंटक चुभत जात हैं 

संस्कृति सभ्यता ज्ञान से नहि  कुछ नात है 

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा 

२४-४-२०१३ 

मौलिक /अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 3, 2013 at 4:42pm

आदरणीय जवाहर सिंह जी 

सस्नेह आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 3, 2013 at 4:41pm

आदरणीय लड़ी वाला जी 

सादर 

प्रोत्साहन हेतु आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 3, 2013 at 4:40pm

आदरणीय अनुज श्री अशोक जी 

सस्नेह. 

अनुमोदन हेतु आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 3, 2013 at 4:39pm

आदरणीय वर्मा सर जी 

सादर 

प्रोत्साहन हेतु आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 3, 2013 at 4:39pm

प्रिय राम शिरोमणि पाठक जी 

सस्नेह आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 3, 2013 at 4:38pm

प्रिय केवल प्रसाद जी 

सस्नेह आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 3, 2013 at 4:37pm

सादर आभार 

आदरणीय भ्रमर जी 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 27, 2013 at 8:41pm

आदरणीय महोदय, सादर अभिवादन!

कड़वी  सच्चाई ऐसी सुनी नहीं जात है 
दांत काटे  जीभ  यही भीषण खुरापात है!
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 26, 2013 at 11:04am

कैसा समाज है जिसके हम सभी अंग है 

जन्मते ही करना पड़े विकृतियों से जंग है 

सुन्दर रचना जिससे मन में समाज की प्रति गुस्सा आ रहा है पर असहाय से मन मसोस रहने के सिवा कुछ नहीं कर सकते 

बधाई श्री प्रदीप सिंह कुशवाहा जी 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 26, 2013 at 7:50am

आदरणीय प्रदीप जी सादर, समाज को कलंकित करती घटनाओं और कारण पर लिखी हृदयस्पर्शी रचना के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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