नियम : ३२ वर्ण लघु बिना मात्रा के ८,८,८,८ पर यति प्रत्येक चरण में .
प्रणय पवन बह, रस मन बरसत
बढ़त लहर जस, तन मन गद गद
चमक दमक बस, चलत नगर घर
पग पग हर पल, रहत मदन मद
मन भ्रमर चलत, उड़त गगन तक
इत उत भटकत, उठत बहत रह
प्रणय ललक वश, बहकत सम्हरत
चरफर महकत, चटक मटक रह
- बृजेश नीरज
Comment
आदरणीय बृजेश नीरज जी सादर, सुन्दर डमरू घनाक्षरी रची है बहुत बहुत बधाई स्वीकारें. बिना मात्रा के छंद रचना बहुत जटिल कार्य है. आपने प्रशंसनीय छंद रचा है. दुसरे छंद में "सम्हरत" शायद उचित ना हो.गुरुजनों से अवश्य जानकारी कर लें.सादर.
आदरणीया कुन्ती जी आपका आभार!
बहुत सुंदर , फिर वो दिन याद आ गये.नीरज जी . सादर / कुंती .
आदरणीय मनोज भाई आपका आभार!
आदरणीय प्रदीप जी, आपका आभार! आपकी टिप्पणी सदैव मेरे लिए ऊर्जा का स्रोत होती है।
आदरणीय ब्रजेश जी
सुन्दर भाव से सजी रचना हेतु हार्दिक बधाई,
सस्नेह
आदरणीया कल्पना जी आपका हार्दिक आभार!
बहुत सुंदर ....
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