इधर-उधर की न कर, बात दिल की कर साक़ी
सुहानी रात हुआ करती मुख़्तसर साक़ी ||
खिला-खिला है हर इक फूल दिल के सहरा में
तुम्हारे इश्क़ का कुछ यूँ हुआ असर साक़ी ||
अजीब दर्दे-मुहब्बत है ये शकर जैसा
जले-बुझे जो सितारों सा रातभर साक़ी ||
उतार फेंक हया शर्म के सभी गहने
कि रिस न जाए ये शब, हो न फिर सहर साक़ी ||
है बरकरार तेरा लम्स* मेरे होंठों पर
कि जैसे ओंस की इक बूँद फूल पर साक़ी ||
ख़ुदा से और न दरख़ास्त एक…
ContinueAdded by आशीष नैथानी 'सलिल' on April 30, 2014 at 11:00pm — 21 Comments
ताँका पाँच पंक्तियों और 5,7,5,7,7= 31 वर्णों के लघु कविता
1.हर चुनाव
बदले तकदीर
नेताओं का ही
सोचती रह जाती
ये जनता बेचारी ।।
2.लूटते सभी
सरकारी संपदा
कम या ज्यादा
टैक्स व काम चोर
इल्जाम नेता सिर ।।
3.उठा रहे है
नजायज फायदा
चल रही है
सरकारी योजना
अमीर गरीब हो ।।
4.जनता चोर
नेता है महाचोर
शर्म शर्माती
कदाचरण लगे
सदाचरण सम ।।
5.जल भीतर
अटखेली करती…
Added by रमेश कुमार चौहान on April 30, 2014 at 11:00pm — 4 Comments
गंगा हमारी
भव ताप हारक, पाप नाशक, धरा उतरी गंग।
निर्मल प्रवाहित, प्रेम सरसित, करे मन जल चंग।।
सुंदर मनोरम, घाट उत्तम, देख कर मन दंग।
शिव हरि उपासक, साधु साधक, जपे सुर मुनि संग।१।
…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on April 30, 2014 at 10:30pm — 13 Comments
निष्प्राण कभी लगता
जीवन
निर्मम समय-प्रहारों से
सूख-बिखरते,बू खोते
सुरभित पुष्प अतीत के.
निश्चेत 'आज' भी होता
भावी शीतल-शुष्क
हवाओं की आहट पाने को.
फिर भी कुछ अंश
जिजीविषा के रहते
गतिमान रखें जो तन को
निरा यंत्र-सा.
जो हेतु बने
दाव,हवन,होलिका के
या अस्तित्व मिटाती
झंझावर्तों में
चिनगारी...
वही एक नन्हीं सी.
द्युतिमान रहूँ मैं भी
हों तूफान,थपेड़े
या…
Added by Vindu Babu on April 30, 2014 at 10:30pm — 30 Comments
मतदाता बन तो गए किया ना मत प्रयोग
मत की महिमा जान लो चुनावी बना योग
चुनावी बना योग समय की कीमत जानो
करो सोच मतदान मत का मोल पहचानो
करना मत तुम लोभ करो जो मन को भाता
पहचानो अधिकार बन निर्भीक मतदाता
..............सरिता
............मौलिक व अप्रकाशित.............
Added by Sarita Bhatia on April 30, 2014 at 8:00pm — 11 Comments
२२११ २२१२ २२१२ १२
कैसी ये मुलाकात है कोई गिला नहीं
पहले वो कभी आज तक ऐसे मिला नहीं
हाँ बात वो कुछ और थी जब साथ हम भी थे
अब सिर्फ इत्तेफ़ाक है, अब सिलसिला नहीं
वो…
ContinueAdded by sanju shabdita on April 30, 2014 at 6:00pm — 17 Comments
मजदूर
---------
चौक में लगी भीड़
मै चौंका , कहीं कोई घायल
अधमरा तो नहीं पड़ा
कौतूहल, झाँका अन्दर बढ़ा
वापस मुड़ा कुछ नहीं दिखा
'बाबू' आवाज सुन
पीछे मुड़ा
इधर सुनिये !
उस मुटल्ले को मत लीजिये
चार चमचे साथ है जाते
दलाल है , हराम…
Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 30, 2014 at 5:00pm — 22 Comments
कौन करे है ?
देश में भ्रष्टाचार,
हमारे नेता,
नेताओं के चम्मच
आम जनता
शासक अधिकारी
सभी कहते
हाय तौबा धिक्कार
थूक रहे हैं
एक दूसरे पर
ये जानते ना कोई
नही नही रे
मानते नही कोई
तुम भी तो हो
मै भी उनके साथ
बेकार की है बात ।
.....................
मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on April 30, 2014 at 2:18pm — 6 Comments
1)
सोने की चिड़िया कभी, कहलाता था देश
नोच-नोच कर लोभ ने, बदल दिया परिवेश।
बदल दिया परिवेश, खलों ने खुलकर लूटा।
भरे विदेशी कोष, देश का ताला टूटा।
हुई इस तरह खूब, सफाई हर कोने की,
ढूँढ रही अब…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on April 30, 2014 at 11:30am — 14 Comments
Added by Dr Ashutosh Mishra on April 30, 2014 at 11:19am — 9 Comments
कुडंली छंद
छंद-लक्षण: जाति त्रैलोक लोक , प्रति चरण मात्रा २१ मात्रा, चरणांत गुरु गुरु (यगण, मगण), यति ११-१०।
अँखियों से झर रहे,बूँद-बूँद मोती,
राधा पग-पग फिरे,विरह बीज बोती|
सोच रही काश मैं ,कान्हा सँग होती,
चूम-चूम बाँसुरी,अँसुवन से धोती|
मथुरा पँहुचे सखी ,भूले कन्हाई,
वृन्दावन नम हुआ ,पसरी तन्हाई|
मुरझाई देखता ,बगिया का माली,
तक-तक राह जमुना ,भई बहुत काली|
खग,मृग, अम्बर, धरा,हँसना सब…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 30, 2014 at 11:00am — 31 Comments
मेरी आँखों से
सपनीली दुनियाँ मेँ यारों सपनें खूब मचलते देखे
रंग बदलती दूनियाँ देखी ,खुद को रंग बदलते देखा
सुबिधाभोगी को तो मैनें एक जगह पर जमते देख़ा
भूखों और गरीबोँ को तो दर दर मैनें चलते देखा
देखा हर मौसम में मैनें अपने बच्चों को कठिनाई में
मैनें टॉमी डॉगी शेरू को, खाते देखा पलते देखा
पैसों की ताकत के आगे गिरता हुआ जमीर मिला
कितना काम जरुरी हो पर उसको मैने टलते देखा
रिश्तें नातें प्यार की…
ContinueAdded by Madan Mohan saxena on April 29, 2014 at 1:00pm — 6 Comments
कभी जिस जगह हम मिले थे
जहाँ फूल मुहब्बत के खिले थे
मैं आज भी खड़ा हूँ उसी मोड़ पर
जहाँ तुम गये थे मुझे छोडकर
हँसी से कोई ऱिश्ता नहीं है
खुशी से दूर तक वास्ता नहीं है
जमाने की कितनी परवाह थी मुझे
अब जमाने की भी कोई परवाह नहीं है
गुजरते हैं लोग इस चौरेहे से
तेरी चर्चा करते हुये
मैंने बहुत को देखा है
तेरे लिये आह भरते हुये
लेकिन उनकी आह भरने पर
मुझे तरस जरूर आता है
किआज भी हर कोई शख्स
तुझे…
ContinueAdded by umesh katara on April 29, 2014 at 8:05am — 15 Comments
सारे नेता खेलते
सारे नेता खेलते, आज चुनावी खेल।
सत्ता के इस रूप में, द्रुपद सुता का मेल।।
द्रुपद सुता का मेल, पांडु सुत लगती जनता।
नेता शकुनी दाँव, चाल वादों की चलता।
लोक लुभावन खूब, लगाते ये हैं नारे।
चौसर बिछी बिसात, खेलते नेता सारे।१।
हांथी तीर कमान तो,कहीं हाँथ का चिन्ह।
कमल घडी औ साइकिल,फूल पत्तियाँ भिन्न।।
फूल पत्तियाँ भिन्न,दराती कहीं हथोडा।
झाड़ू रही बुहार,उगा सूरज फिर थोडा।।
देख चुनावी रंग, ढंग अपनाता साथी।
मर्कट…
Added by Satyanarayan Singh on April 29, 2014 at 7:30am — 9 Comments
अमौसी हवाई अड्डे के बाहर
वह देख रहा था
पहचान-पत्र दिखाकर लोगों को जाते हुए
सुरक्षा के घेरे में.
वह स्वयं
सुरक्षा के घेरे से बहुत दूर था
अपनी ही दुनिया में –
लोग कहाँ जाते हैं
उसे क्या मालूम ?
लोगों को क्या मालूम
कि उनकी सुरक्षा के घेरे के बाहर
और भी दुनिया है !
उसने एक बार
दीवार की खिसकी हुई ईंट की जगह
आँख लगाकर देखा था
एक बड़ी सी चमचमाती चिड़िया
कोलतार के लम्बे रास्ते पर…
Added by sharadindu mukerji on April 29, 2014 at 1:30am — 4 Comments
करने लगे है वो भी हमपे ऐतबार थोडा थोडा ।
उनको भी हो गया है हमसे प्यार थोडा थोडा ॥
रहते थे जो परदो मे छुप छुप के कल तलक ।
अब होने लगा है उनका भी दीदार थोडा थोडा ॥
कहते थे वो इश्क विश्क बाते है फिजूल की ।
चढने लगा है उनपे भी ये खुमार थोडा थोडा ॥
उडी है नीँद रातो की करार छिन गया दिन का ।
अब रहने लगे है वो भी बेकरार थोडा थोडा ॥
है हक चुमना भंबरो का फूलो को बेधडक ।
हम को भी दे दो वो अधिकार थोडा…
ContinueAdded by बसंत नेमा on April 28, 2014 at 10:00pm — 2 Comments
१.
चिलचिलाती धूप सिखाती है
प्रेम करना..
तबतक वन
महुआ-पलाशों में बस
उलझा रहता है.
२.
तुम्हारी उंगलियों ने दबा कर मेरी हथेलियों को…
Added by Saurabh Pandey on April 28, 2014 at 8:00pm — 27 Comments
आज कल्पवास के आखरी दिन भी वो रोज की तरह पेड़ के नीचे बैठ चारो तरफ नजरें घुमा-घुमा कर किसी को ढूंड रही है जैसे किसी के आने की प्रतीक्षा हो उसे, पूरा दिन निकल गया शाम होने को है, सूर्य की प्रखर किरणें मद्धम पड़ चुकी हैं, पंक्षी अपने-अपने घोसलों में पहुँच गये हैं, बस् कुछ देर में ही दिन पूरी तरह रात्रि के आँचल में समा जाएगा पर अभी तक वो नही दिखा जिसका बर्षों से वो प्रतीक्षा कर रही है |
“वर्षों पहले इसी कुम्भ में कल्पवास के लिए छोड़ गया था ये कह कर की कल्पवास समाप्त होने पर आ के ले जाऊँगा पर…
Added by Meena Pathak on April 28, 2014 at 7:00pm — 21 Comments
मनहरण घनारक्षरी छंद -31 वर्ण चार चरण 8,8,8,7 पर यति चरणांत गुरू
..............................................................
झूठ और फरेब से, सजाये दुकानदारी ।
व्यपारी बने हैं नेता, आज मेरे देश में ।।
वादों के वो डाले दाने, जाल कैसे बिछायें है ।
शिकारी बने हैं नेता, आज मेरे देश में ।।
जात पात धरम के, दांव सभी लगायें हैं ।
जुवारी बने हैं नेता, आज मेरे देश में ।।
तल्ख जुबान उनके, काट रही समाज को ।
कटारी बने हैं नेता, आज मेरे देश में ।।…
Added by रमेश कुमार चौहान on April 28, 2014 at 6:30pm — 7 Comments
मैं धुँध को नहीं चीर सका तो क्या
आगे बढ़ने कि कोशिश तो की
कुछ कदम आगे मैं बढ़ा
सूरज भी कुछ कदम आगे की
मेरे सिर पर विजय मुकुट था
घटी चादर ज्योँ ही धुँध की
यह सोच गर मैं घर में रहता
धुँध बहुत हैं छायी
चलो रजाई तान कर सोएँ
बहुत सुहाबना मौसम हैं भाई
मेरे भाग्य की कलियाँ बंद होती
सूरज क्योंकर साथ मेरा देता
किसी अन्धेरे कोठरी में
मेरा नाम भी गुम गया होता
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by जगदानन्द झा 'मनु' on April 28, 2014 at 4:30pm — 4 Comments
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