Added by Bhupender singh ranawat on March 25, 2020 at 2:11pm — 1 Comment
Added by Dr Ashutosh Mishra on March 25, 2020 at 1:43am — 3 Comments
कोरोनामय जग हुआ, फीका पड़ा बसन्त
माँगे खुद की खैर अब, राजा, रंक, महन्त।१।
**
जन्मा चाहे चीन में, लाये अपने लोग
जिससे सारे देश में, फैल रहा यह रोग।२।
**
विकट घड़ी में आपदा, आयी सबके द्वार
घर के बाहर आ मगर, करो नहीं सत्कार।३।
**
घर में बैठो चन्द दिन, ढककर खिड़की द्वार
कोरोना पर वार को, यही सफल हथियार।४।
**
आज चिकित्सक का कहा, थोड़ा मानव मान
घर में चुपके बैठ कर, होगा रोग निदान।५।
**
करो नमस्ते दूर से , नहीं मिलाओ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 24, 2020 at 8:04pm — 2 Comments
प्रणय-परीक्षा
सुना है कुछ ऐसा केवल
स्वप्न-लोक में
या परियों की कहानी में होता है
सात समुद्र पार से आता है
घोड़े पर सवार
सात युगों का प्यार
पर हवा-सी झूमती
शैतानी-भरी हँसी हँसती
भरे आँखों में खुमारी की लालिमा
ऐसी गुड़िया से मिलना
मेरे जीवन के रंग-मंच पर
यह कोई सपना नहीं था
काट रही थी कब से मुझको
समय की तेज़ धार
मिला हवा की लहर-सा…
ContinueAdded by vijay nikore on March 23, 2020 at 12:30pm — 2 Comments
एक ताज़ा गीत
=========
क्यों चलते औरों के पथ पर
स्वयं बनाओ अपनी राहें |
**
माँ की उँगली थाम बहुत तुम
सीख गए पाँवोँ पर चलना |
लेकिन अब काँटों के पथ पर
खुद ही गिरना और सँभलना |
जीवन-रण से बचना मुश्किल
लड़कर करनी जीत सुनिश्चित,
भाग नहीं सकता है कोई
मित्र भागना खुद को छलना |
तुम अपने जीवन के नायक
कोई काम करो अब ऐसा,
जिससे तुम पर दुनिया भर के
सब लोगों की टिके निगाहें…
ContinueAdded by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 23, 2020 at 12:00am — 2 Comments
जीवन का कर्फ्यू
रोजमर्रा की तरह टहलते हुये रामलाल उद्यान में गोपाल से मिला तो उसके चेहरे की झाईयां से झलकती खुशी कुछ और ही बयां कर रही थी।इससे पहले मैं कुछ पूछता कि उसने कहा, 'यार,कल जैसा दिन गुजारे जमाना हो गया।'
'पर यार कल तो कर्फ्यू लगा था।न किसी से मिलना-जुलना हुआ।कितना बोरियत भरा दिन था?'
'तेरे लिए था।पर इसने मेरी जिन्दगी के कर्फ्यू को हटा दिया।'
'कुछ समझा नही?'प्रश्न भरी निगाह से रामलाल ने गोपाल की तरफ देखकर कहा।
गोपाल ने पास पङी बेंच पर उससे बैठने का इशारा…
Added by babitagupta on March 22, 2020 at 11:33pm — 2 Comments
ख़ुद ही ख़ुद को निहारते हैं हम
आरती ख़ुद उतारते हैं हम
फिर भी वैसे के वैसे रहते हैं
ख़ुद को कितना सँवारते हैं हम
दूसरों का मजाक करते हैं
ख़ुद की शेखी बघारते हैं हम
सिर्फ़ अपनी किसी जरूरत में
दूसरों को पुकारते हैं हम
डाल कर दूसरों में अपनी कमी
दूसरों को विचारते हैं हम
जीतने से ज़ियादा आये मज़ा
जब महब्बत में हारते हैं हम
इस खुशी…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on March 22, 2020 at 2:02pm — 6 Comments
एक गीत
-----------
बाहर के डर से लड़ लेंगे
भीतर का डर कैसे भागे |
**
बचपन से देखा है हमने
अक्सर खूब डराया जाता |
दुःख यही है अपनों द्वारा
ऐसा क़दम उठाया जाता |
छोटी छोटी गलती पर भी
बंद किया जाता कमरे में,
फिर शाला में अध्यापक का
डण्डा हमें दिखाया जाता |
एक बात है समता का यह
लागू रहता नियम सभी पर,
निर्धन या धनवान सभी के
बच्चे रहते सदा…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 21, 2020 at 11:30am — 4 Comments
एक अवसर सा मानो हाथ आया जबरन
Added by amita tiwari on March 20, 2020 at 7:00pm — 1 Comment
रमल मुसम्मन सालिम मख़्बून महज़ूफ़ / महज़ूफ़ मुसक्किन
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़इलुन/फ़ेलुन
2122 1122 1122 112 / 22
ये सफ़र है बड़ा दुश्वार ख़ुदा ख़ैर करे
राह लगने लगी दीवार ख़ुदा ख़ैर करे [1]
इस किनारे तो सराबों के सिवा कुछ भी नहीं
देखिए क्या मिले उस पार ख़ुदा ख़ैर करे [2]
लोग खाते थे क़सम जिसकी वही ईमाँ अब
बिक रहा है सर-ए-बाज़ार ख़ुदा ख़ैर करे [3]
ये बग़ावत पे उतर आएँगे जो उठ बैठे
सो रहें हाशिया-बरदार ख़ुदा ख़ैर करे…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on March 20, 2020 at 7:00pm — 16 Comments
(221 2121 1221 212 )
बैठे निग़ाहें किस लिए नीची किये हुए
क्या बात है बताइए क्यों लब सिले हुए
**
काकुल के पेच-ओ-ख़म के हैं अंदाज़ भी जुदा
सर से दुपट्टा जैसे बग़ावत किये हुए
**
मिज़गाँ के साहिलों पे टिकी आबजू-ए-अश्क
काजल बिखेरने की जूँ हसरत लिये हुए
**
क्यों हो गए हैं आपके रुख़्सार आतशीं
जैसे कनेर लाल ख़िज़ाँ में खिले हुए
**
शेरू को ख़ौफ़ इतना है बैठा दबा के दुम
मैना के सुर भी…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 20, 2020 at 11:30am — 4 Comments
(1)
सुनी सुनाई बात पर, मत करना विश्वास ।
चक्कर में गौमूत्र के, थम ना जाए श्वास ।।
(2)
कोरोना से तेज अब, फैल रही अफ़वाह ।
सोच समझ कर पग रखो, कठिन बहुत है राह ।।
(3)
कोरोना के संग यदि, लड़ना है अब जंग ।
धरना-वरना बस करो, बंद करो सत्संग ।।
(4)
साफ सफाई स्वच्छता, सजग रहें दिन रात ।
दें साबुन से हाथ धो, कोरोना को मात ।
(5)
मुश्किल के इस दौर में, मत घबराओ यार ।
बस वैसा करते रहो, जो कहती सरकार ।।
(मौलिक एवं…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 20, 2020 at 10:00am — 4 Comments
नन्ही सी चीटी हाथी की ले सकती जान है
कोरोना ने कराया हमें इसका भान है।
हाथों को जोड़ कहता सफाई की बात वो
पर तुमको गंदगी में दिखी अपनी शान है।
बातें अगर गलत हों तो वाजिव विरोध है
सच का भी जो विरोध करे बदजुबान है।
नक़्शे कदम पे तेरे क्यूँ सारा जहाँ चले
बातों में बस तुम्हारी ही क्या गीता ज्ञान है
कोरोना की ही शक्ल में नफरत है चीन की
जिसके लिए जमीन ही सारी जहान है
मालिक के दर पे सज्दा वजू करके ही…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on March 19, 2020 at 12:30pm — 4 Comments
(221 1221 1221 122 )
क्या टूट चुका दिल है जो वो दिल न रहेगा ?
जज़्बात बयाँ करने के क़ाबिल न रहेगा ?
**
तालीम अगर देना कोई छोड़ दे जो शख़्स
क्या आप की नज़रों में वो फ़ाज़िल* न रहेगा ?(*विद्वान )
**
फ़रज़न्द के बारे में भला कौन ये सोचे
दुख-दर्द में इक रोज़ वो शामिल न रहेगा
**
दो चार अगर झूठ पकड़ लें तो न सोचें
जो खू से है मजबूर वो बातिल* न रहेगा (*झूठा )
**
आया है सज़ा काट के जो क़त्ल की उसके
धुल जाएँगे क्या पाप वो क़ातिल न रहेगा…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 19, 2020 at 12:00am — 8 Comments
१२२२ /१२२२/ १२२२ /१२२२/
*
कभी कतरों में बँटकर तो कभी सारा गिरा कोई
मिला जो माँ का आँचल तो थका हारा गिरा कोई।१।
*
कि होगी कामना पूरी किसी की लोग कहते हैं
फलक से आज फिर टूटा हुआ तारा गिरा कोई।२।
*
गमों की मार से लाखों सँभल पाये नहीं लेकिन
सुना हमने यहाँ खुशियों का भी मारा गिरा कोई।३।
*
किसी आजाद पन्छी को न थी मन्जूर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 18, 2020 at 6:17am — 7 Comments
(1222 1222 1222 1222 )
छुड़ाना है कभी मुमकिन बशर का ग़म से दामन क्या ?
ख़िज़ाँ के दौर से अब तक बचा है कोई गुलशन क्या ?
**
कभी आएगा वो दिन जब हमें मिलकर सिखाएंगे
मुहब्बत और बशरीयत यहाँ शैख़-ओ-बरहमन क्या ?
**
क़फ़स में हो अगर मैना तभी क़ीमत है कुछ उसकी
बिना इस रूह के आख़िर करेगा ख़ाना-ए-तन* क्या ?(*शरीर का भाग )
**
निग़ाह-ए-शौक़ का दीदार करने की तमन्ना है
उठेगी या रहेगी बंद ये आँखों की चिलमन क्या ?
**
अगर बेकार हैं तो काम ढूंढे या करें बेगार…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 18, 2020 at 12:00am — 6 Comments
बाँधा जो साँसों ने साँसों से धागा
आँसू में, कुछ मुस्कानों में
मिलन की वेला के सुख में मिश्रित
बिछोह की घड़ी की व्यथा अपार
डरते-मुस्कुराते चेहरे पर पाईं हमने
ढुलक आई थीं बूँदें जो भीगी पलकों से
मिला था उनमें प्राणों को प्रीति का दान
ऐसे में हृदय ने सुनी हृदय की मधुर धड़कन
मधुमय मूक स्वर उस अद्वितीय आलिंगन में
आच्छादित हुए ऐसे में ज्यों भीगे गालों पर गाल
मुझको लगा उस पावन…
ContinueAdded by vijay nikore on March 16, 2020 at 2:00pm — 6 Comments
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
(बह्र: रमल मुसम्मन महजूफ)
2122. 2122. 212.
ज़िन्दगी भर ये परेशानी रही
मेरे चारो सम्त वीरानी रही ।।
जिस के पीछे अब ज़माना है पढ़ा
वो कभी मेरी भी दीवानी रही ।।
शब मिलन की थी बहुत गहरी मगर
रात भर तारो की निगरानी रही।।
दोस्ती कर ली किताबों से मैं ने
भूलने में उसको आसानी रही ।।
- शेख़ ज़ुबैर अहमद
( मौलिक एवम अप्रकाशित )
Added by Shaikh Zubair on March 15, 2020 at 6:57pm — 2 Comments
दुल्हन ने किचन की कमान संभाली। मितव्ययिता के आकांक्षी घरवाले बड़ी बड़ी उम्मीदें पाले हुए थे कि अब कुछ बचत होगी।बजट सुख दायक होगा। अन्य कार्यों के लिए कुछ धन बचाया जा सकेगा।......
फिर कुछ दिनों के बाद जब खाने का जायका मुंह चिढ़ा ने लग,तब सास ने एक दिन राशन के बरतन देखे। देखती ही रह गई।नमक - चीनी की पहचान मुश्किल थी।चावल - दाल ग ले मिलते दिखे। जो बरतन सामने थे,वे लगभग भरे थे, पीछे वाले रिक्तप्राय।वह किचन प्रबंधन का नवीन गुर समझ गई।खाने के स्वाद की माधुर्य मिली मिर्ची मुखर हो…
Added by Manan Kumar singh on March 15, 2020 at 11:08am — 4 Comments
बहरे हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़
1 2 2 2 / 1 2 2 2 / 1 2 2
जो तेरी आरज़ू खोने लगा हूँ
जुदा ख़ुद से ही मैं होने लगा हूँ [1]
जो दबती जा रही हैं ख़्वाहिशें अब
सवेरे देर तक सोने लगा हूँ [2]
बड़ी ही अहम हो पिक फ़ेसबुक पर
मैं यूँ तय्यार अब होने लगा हूँ [3]
जो आती थी हँसी रोने पे मुझको
मैं हँसते हँसते अब रोने लगा हूँ [4]
बढ़ाता जा रहा हूँ उनसे क़ुरबत
मैं ग़म के बीज अब बोने लगा हूँ [5]
जो पुरखों की दिफ़ा…
ContinueAdded by रवि भसीन 'शाहिद' on March 15, 2020 at 1:00am — 11 Comments
2025
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2025 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |