For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

January 2013 Blog Posts (174)

गीत

हँस-हँस कर करते हैं आँसू ,सुख दुःख का व्यापार ,

बाहर वाली चौखट दुखती , चुभते वन्दनवार !!



मुरझाकर भी हर पल सुरभित ,पात-पात साँसों का,

मन को मजबूती देता है ,संबल कुछ यादों का !

क्षण भर हँसता,बहुत रुलाता,कुछ अपनों का प्यार ,

सारी उमर बिता कर पाया,यह अद्भुत उपहार ..!!



सिहरन नस-नस में दौड़े जब,हाँथ हवा गह जाती,

गुजरी एक जवानी छोटी, बड़ी कहानी गाती !

यूँ तो गँवा चुके हैं अपनी,सज धज सब श्रृंगार ,

है अभिमान अभी तक करता,नभ झुककर सत्कार…

Continue

Added by भावना तिवारी on January 9, 2013 at 2:00pm — 8 Comments

दोहा सलिला: गले मिले दोहा यमक

दोहा सलिला:

गले मिले दोहा यमक

संजीव 'सलिल'

*

मनहर ने मन हर लिया, दिलवर दिल वर मौन.

पूछ रहा चितचोर! चित, चोर कहाँ है कौन??

*

देख रही थी मछलियाँ, मगर मगर था दूर.

रखा कलेजा पेड़ पर, कह भागा लंगूर..

*

कर वट को सादर नमन, वट सावित्री पर्व.

करवट ले फिर सो रहे, थामे हाथ सगर्व..

*

शतदल के शत दल खुले, भ्रमर करे रस-पान.

बंद हुए शतदल भ्रमर, मग्न करे गुण-गान..

*

सर हद के भीतर रखें, सरहद करें न पार.

नत सर गम की गाइये,…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on January 9, 2013 at 11:30am — 6 Comments

इंतज़ार ..

इन दिनों 

जैसे ही सूरज 
झील में पनाह लेता है 
पंछियों के झुण्ड 
और भेड़ों की रेवड़ 
अपने अपने घर 
कुछ जल्दी लौटती है 
........
सांवली सी 
कोमल 
स्निग्ध शाम  
पहाड़ों की सीढ़ियों पर 
पैर जमाये 
धीरे से  उतरती है 
कितने लम्हे 
कोहरे की चादर लपेटे  
सामने ठहरते हैं 
तुम्हारी एक  पुकार के 
इंतज़ार…
Continue

Added by rajluxmi sharma on January 9, 2013 at 8:15am — 10 Comments

नर्म से अहसास बन लें

हर तरफ हैं रंग कितने 

आओ चुन लें 

 

भाव के मोती बिछे हैं…

Continue

Added by seema agrawal on January 9, 2013 at 7:32am — 12 Comments

" खुशकर "

जिस तरह दिनकर चमकता
व्योम में,
अलविदा कहता निशा को,
बादलों के झुण्ड को
पीछे धकेले ।

काश होता एक सूरज
ख़ुशी का भी ।

कोई तापता धूप सुबह की,
कोई बिस्तर डाल देता दोपहर के घाम में ।
खुशनुमा गरमी भी होती
कम व ज्यादा,
पूष से ज्येष्ठ तक ।
और पसीना भी निकलता,
इत्र सा ।

काश कल्पा हो उठे साकार,
एक 'खुशकर' हो भी जाये
दिवाकर सा ।।

Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on January 8, 2013 at 7:30pm — 6 Comments

भौंरों के गुंजार से भी उठ रहा गहरा धुआं

पिंजड़े होकर सजग
देखते हैं आड़ से
धातुमय आवेग ताने
बढ़ रहा क्‍या भार से
एकरंगी ताल-पोखर
सांवली परछाईयां…
Continue

Added by राजेश 'मृदु' on January 8, 2013 at 11:30am — 4 Comments

ज़ख्म चेहरे से दिखाना दर्द की है ज़िद पुरानी ............

जब हुई रुसवा तरन्नुम से ग़ज़ल इस ज़िन्दगी की 

आंसुयों ने नज़्म लिखी रख दिया उनवान पानी 



आइनों से शर्त रख दी मुस्कराहट की लबों पे 

इसलिए झूठी ग़मों की कर रहा मैं तर्जुमानी 



और भी अब बढ गयी दुश्वारियां मेरे सफ़र की 

पत्थरों को ढूँढती फिरती मेरी किस्मत दीवानी 



गर ये नादाँ सब्र होती तो मुनासिब था "अजय" …

Continue

Added by ajay sharma on January 7, 2013 at 11:00pm — 3 Comments

इस आसमान पर अधिकार तुम्हारा भी है...

ईश की अनुपम कृति मानव

और उसकी जननी तुम

फिर क्यों हो प्रताड़ित , अपमानित

पराधीन, मूक , गुमसुम ?

खुश होना तो कोई पाप नहीं

मुस्कुराने की इच्छा स्वार्थ नहीं!

नए विचारों की उड़ान भरो

शिक्षा का स्वागत करो !

जीवन न जाय व्यर्थ यूँ ही...

सदियों के बंधन से मुक्ति चाहिए ?

विद्रोह तो होगा, न घबराओ

निर्भय बनो, मानसिक सबलता लाओ !

रात बहुत गहरी हो चुकी

भोर का संदेसा दे चुकी !

मुस्कुराओ, पंख फैलाओ

उड़ने को तैयार हो जाओ

क्योंकि

इस आसमान पर…

Continue

Added by Anwesha Anjushree on January 7, 2013 at 6:00pm — 5 Comments

संकल्प

हाईकू (१७ वर्ण, ५,७,५.)

भारतवर्ष

नारी देवी रुप है,

देवों में आस्था.

...........

तुम युवा हो,

माताएं व्यथित हैं,

सोना मना है,

..............

यौन शोषण,

सब संकल्प करें,

अब फांसी दो.

...........

पुलिस हा हा..

नारी असुरक्षित,

सब सुधरें.

..........

सभ्य समाज,

यह भी संभव है,

प्रण कर लें.

...............

बीता बरस,

युवा जाग गया है,

उम्मीद…

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on January 6, 2013 at 7:00pm — 9 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
रे मन करना आज सृजन वो / डॉ. प्राची

रे मन करना आज सृजन वो

भव सागर जो पार करा दे l

निश्छल प्रण से, शून्य स्मरण से

मूरत गढ़ना मृदु सिंचन से,

भाव महक हो चन्दन चन्दन

जो सोया चैतन्य जगा दे l

रे मन करना आज सृजन वो

भव सागर…

Continue

Added by Dr.Prachi Singh on January 6, 2013 at 11:00am — 59 Comments

मैंने कुछ पंख जोड़ रखे हैं

मैंने कुछ पंख जोड़ रखे हैं 

कुछ रंगीन कुछ बदरंगे हैं

ज़रा हलके से हैं ये थोडे से 

फूलों के संग ही मोड़ रखे हैं



मेरे पंखों में खुशबू फूलों की

उड़ेंगे संग में सुरभि की तरह

मन की उड़ान से अब क्या होगा

सच में उड़ना है बोल सच्चे हैं

कोई कहता है ज्ञान सागर है 

मगर चिंतन में डुबकियां ही नहीं

कोई उड़ता है हवा बाजों सा

कहीं बैसाखियों…

Continue

Added by SUMAN MISHRA on January 5, 2013 at 11:30pm — 2 Comments

वो दिन कितने प्यारे थे

वो दिन कितने प्यारे थे

गाँव गाँव और

शहर शहर में 

प्रेम पगे गलियारे थे ......

स्वार्थ नहीं

इक अपनापन था

परहित में

जीवन-यापन था

अमन चैन के

रंग में रंगे 

आलोकिक भुनसारे थे ..........

कोई बुराई

नहीं करता था 

अविश्वास

सदा मरता था 

दोस्त दोस्त से

आस लगाये 

राग द्वेष अंधियारे थे ............

इक होती थी

सबकी राय

कोई अपनी

नहीं चलाय

संग में

जब तब 

होती मस्ती …

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 5, 2013 at 3:30pm — 6 Comments

नीरज के ८९ वें जन्म दिन पर काव्यांजलि: संजीव 'सलिल'

कालजयी गीतकार नीरज के ८९ वें जन्म दिन पर काव्यांजलि:

संजीव 'सलिल'

*

गीतों के सम्राट तुम्हारा अभिनन्दन,

रस अक्षत, लय रोली, छंदों का चन्दन...

*

नवम दशक में कर प्रवेश मन-प्राण तरुण .

जग आलोकित करता शब्दित भाव अरुण..

कथ्य कलम के भूषण, बिम्ब सखा प्यारे.

गुप्त चित्त में अलंकार अनुपम न्यारे..

चित्र गुप्त देखे लेखे रचनाओं में-

अक्षर-अक्षर में मानवता का वंदन

गीतों के सम्राट तुम्हारा अभिनन्दन,

रस अक्षत, लय रोली, छंदों का…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on January 5, 2013 at 11:01am — 10 Comments

ग़ज़ल-जिंदगी हम भी समर तक आ गये

जिंदगी हम भी समर तक आ गये।
गाँव से चलकर नगर तक आ गये।।

मुस्कुराते - मुस्कुराते वो सभी …,
रास्ते के पेड घर तक आ गये।

सामने आते ही उनके यूँ हुआ,
ज़ख़्म सब दिल के नज़र तक आ गये।

खूबसूरत सी बला लगती है वो,
बाल जब सर के कमर तक आ गये।

एक जंगल में पुराना पेड हूँ,
काटने को वो इधर तक आ गये।

प्यार एहसासों से निकला इस तरह,
दिल के रिश्ते अब खबर तक आ गये।।

……सूबे सिंह सुजान

Added by सूबे सिंह सुजान on January 4, 2013 at 9:30pm — 6 Comments

एक नवगीत का प्रयास

मिर्च बुझी तेजाबी आंखें

हांक रहे चीतल,मृग, बांके

बुदबुद करते मूड़ हिलाते

वेद अनोखे बांच रहे हैं



अर्ध्‍वयु हैं पड़े कुंड में

जातवेद भी खांस रहे हैं



चमक रही कैलाशी बातें

दमक रही तैमूरी रातें

सांकल की ठंडी मजबूरी

खाप जतन से जांच रहे हैं



विविध वर्ण के टोने-टोटके

कितने सूरज फांस रहे हैं



बागड़बिल्‍लों के कमान में

पंजे, नख मिलते बयान में

पड़ी पद्मिनी भांड़ के पल्‍ले

खिलजी जमकर नाच रहे हैं



मिनरल वाटर हलक…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on January 4, 2013 at 5:06pm — 3 Comments

इंसानो की बस्ती

इंसानो की बस्ती

हर ख्वाहिश हो जाये पूरी, यहाँ किसकी ऐसी हस्ती है,

लुटता है इंसान वहाँ, जहाँ इंसानो की बस्ती है ।

इंसानियत दफन हो गई, हैवानियत सब पे भारी है,

आत्मा है गिरवी सबकी, बेईमानो कि साहूकारी है,

बहता है लहु सडको पर, पानी की बुँदे बिकती है 

लुटता है इंसान वहाँ, जहाँ इंसानो की बस्ती है ।

  

नारी ही नारी की आज, दुश्मन बन के बैठी है,

बच गई कोख मे तो, आग के हवाले…

Continue

Added by बसंत नेमा on January 4, 2013 at 4:30pm — 4 Comments

एक दिन तुम देखना

एक दिन तुम देखना 

एक दिन तुम देखना



खौफ और आतंक ऐसे

बढ़ रहा है आज कैसे

लाज लुटती राह में यूँ 

लगता अंधा राज जैसे 



संस्कृति के जो हैं भक्षक सब बनेंगे सरगना ...........................



मान मर्यादा मिटाई

नींव रस्मों की हिलाई

अपने में सीमित हुई है

आजकल की ये पढ़ाई



बदलो ये सब अब नहीं तो होगा खुद को कोसना ..............................



शून्य ही बस अंक होगा 

पोखरों में पंक होगा

शुष्क होंगे वन और पर्वत  …

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 4, 2013 at 3:58pm — 10 Comments

मंगल मय हो नूतन वर्ष - लतीफ़ ख़ान

लिख कर अनुभव पत्रिका पार क्षितिज के पुराना साल गया |

ले कर कोरे पृष्ठ सहस्त्र देखो आया है फिर साल नया |

    हों सम्बंध नए हों अनुबंध नए,

    नव निर्मित बंधों के हों तटबंध नए,…

Continue

Added by लतीफ़ ख़ान on January 4, 2013 at 3:18pm — 8 Comments

.........ग़ज़ब है.

मेरे दिलबर का जो भी ढब है.. ग़ज़ब है.

रूठ जाने का जो सबब है.. ग़ज़ब है.



ज़िंदगी से गिला बहुत है हमे, पर,

साँस लेने की जो तलब है.. ग़ज़ब है…



आम इंसान हूँ मै,तुम सा ..तुम्ही सा,

लोग कहते हैं तू अजब है…ग़ज़ब है.



वो है संग-दिल, है बेरहम, है सितमगर,

उसपे भी लखनवी अदब है.. ग़ज़ब है.



वो जिसे आज तक किसी ने न देखा,

ज़र्रे-ज़र्रे मे उसकी छब है …ग़ज़ब है.



हमने पूछा था,”चाँद, कब है अमावस?”

चाँद खुद पूछ बैठा, कब है??..ग़ज़ब…

Continue

Added by rajneesh sachan on January 4, 2013 at 3:04pm — 8 Comments

देख बहे अश्कों की धारा , जब चली गुड़िया हमारी !

अकेल शेरनी
देख बहे अश्कों की धारा , जब चली गुड़िया हमारी !
दूर अकेल रहेगी कैसे , आँखों की पुतली हमारी !
माँ बाप को घर में छोड़कर , सपने ले चली दुलारी !
यों मिलती रही कामयाबी , खिलती जाती फुलवारी !
जब कामयाब हो कर  निकली , बैरी राहों में आये !
देख कर अकेल शेरनी को , राहों में जाल बिछाए !
तडपती रही शिकार बनकर , बेबस पर  रहम न आये !
वर्मा  गयी वो इस दुनिया से , कैसे आंसू ना  आये !
श्याम नारायण वर्मा

Added by Shyam Narain Verma on January 4, 2013 at 2:31pm — 2 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
19 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
20 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service