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मैंने कुछ पंख जोड़ रखे हैं

मैंने कुछ पंख जोड़ रखे हैं 
कुछ रंगीन कुछ बदरंगे हैं
ज़रा हलके से हैं ये थोडे से 
फूलों के संग ही मोड़ रखे हैं

मेरे पंखों में खुशबू फूलों की
उड़ेंगे संग में सुरभि की तरह
मन की उड़ान से अब क्या होगा
सच में उड़ना है बोल सच्चे हैं

कोई कहता है ज्ञान सागर है 
मगर चिंतन में डुबकियां ही नहीं
कोई उड़ता है हवा बाजों सा
कहीं बैसाखियों में दम ही नहीं

अब तो इजाद है करना मुझको
हींग या फिटकरी नहीं चहिए
दूरियां हैं बहुत आसान नहीं
आज शब्दों की मात मत कहिये

जाने कितनी गजल तराने बने
पर हकीकत है ये नावाकिफ से
भूख की शक्ल में जो इन्सां है
भेड़ियों की तरह अब गाफिल है

कितनी बातें लिखी किताबों में
कहाँ होती हैं मुक्कम्मल बोलो 
एक रोटी जो खाई कल उसने
तोल कर वजन पंख से बोलो ,

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Comment

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Comment by SUMAN MISHRA on January 9, 2013 at 3:38pm

विनय सर आपको ये पंक्तियाँ अची लगी ,,,बहुत बहुत आभार

Comment by vijay nikore on January 8, 2013 at 7:01pm

सुमन जी,

  • मैंने कुछ पंख जोड़ रखे हैं
    कुछ रंगीन कुछ बदरंगे हैं
    ज़रा हलके से हैं ये थोडे से
    फूलों के संग ही मोड़ रखे हैं 

अति सुन्दर भाव। बधाई।

विजय निकोर

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