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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-52 (विषय: अस्तित्व)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है, प्रस्तुत है :  
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-52
विषय: अस्तित्व 
अवधि : 30-07-2019  से 31-07-2019 
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अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं। 
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
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ढाई आखर प्रेम का'
आकाश मार्ग से भ्रमण करते हुए नारायण ने साथ चलते नारद से पूछा "  नारद ये कैसा उत्सव सा माहौल है पृथ्वी लोक मे?सब एक दूसरे को पुष्प दे रहे हैं। अपने बच्चों को प्रेममय  देखकर अच्छा लगता है।"
" प्रेम तो निश्चय ही अत्यन्त मधुर भावना है प्रभु, पर ये सब जो दिख रहा है ये हल्का फुल्का समय व्यतीत मात्र है बस।"नारद धीरे से बोले। 
'' नहीं नारद मैं नहीं मानता। '' नारायण आहत हो गए थे। 
''एक क्षण ठहरिये  प्रभु सब स्पष्ट हो जाएगा। '' नारद मन ही मन कुछ बुदबुदाने लगे। 
'' क्या कर रहे हो नारद ?'' प्रभु अधीर हो रहे थे। 
'' मैंने एक मन्त्र फेर दिया है ।  हल्का फुल्का समय व्यतीत या स्वार्थ की भावना से प्रेम दिखाने वाले के हाथ में आते ही सारे पुष्प मुरझा जाएँगे  और. '
" फिर पृथ्वीलोक की  मेरी संतानों में  कितना प्रेम बचा है इसका निर्णय हो जायगा। '' प्रभु ने नारद की बात  पूर्ण की। 
अचनाक ही पृथ्वीलोक का माहौल बदल गया। पार्क रेस्त्रां हर  जगह जोड़े झगड़ रहे थे और मुरझाये पुष्प और गुलदस्ते  एक दूसरे  पर मार रहे थे। मुरझाये पुष्पों से धरती पटने  लगी थी।
विजेता के भाव लिए नारद प्रभु से कुछ कहने ही जा रहे थे कि उनके उतरे चेहरे को देख चुप हो गये। 
'' चलिये  प्रभु घर लौटते हैं। देवी लक्ष्मी  आपकी  प्रतीक्षा में होंगी। ''  नारद हाथ जोड़कर बोले।
''क्या पता। '' प्रभु धीरे से बोले। 
" वाह  पृथ्वीलोक वासियों !  तुमने तो नारायण के मन में भी प्रेम के प्रति शंका के बीज बो दिये '.'' .नारद धीरे से बुदबुदाए । 
''देखो नारद ''  प्रभु की वाणी का उत्साह भाँप नारद उस तरफ देखने लगे ।  एक छोटा बच्चा धीरे धीरे अपने घर के एक अँधेरे कमरे की तरफ बढ़ रहा था। कमरा पुराना, उपेक्षित  और सीलन भरा था। वहाँ  पर  पलंग में पड़ी एक बूढ़ी स्त्री के पास जाकर बच्चा जमीन पर बैठ गया। 
''दादी आपके लिए फूल लाया हूँ '' बच्चे ने वृद्धा का हाथ पकड़ लिया। 
''कहाँ से लाया बिट्टू ?'' 
'' मम्मी के कमरे में ऐसे ही जमीन पर पड़े थे।  सब सूखे थे। पर अब देखो एकदम खिले हुए और सुन्दर हो गये । '' 
'' कितने ताजे और सुन्दर हैं ।  बिल्कुल  मेरे बिट्टू जैसे। '' वृद्धा ने  बच्चे को चूम लिया। 
नारायण अब आश्वस्त भाव से मुस्कुराते हुए नारद  को देख  रहे थे. 
 '' समझ गया प्रभु ! आपकी बनायी धरती में प्रेम का अस्तित्व कभी   समाप्त हो ही नहीं सकता। ' नारद ने प्रसन्नता से खड़ताल बजा दी 
मौलिक व्   अप्रकाशित        



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आदाब। सच्चे प्रेम और उसके वजूद को समझाती, हिदायतें देती बढ़िया रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया प्रतिभा जोशी पाण्डेय जी।

हार्दिक आभार आपका आदरणीय उस्मानी जी।

आदरणीय pratibha pande जी बहुत बहुत बधाई बहुत सुन्दर विश्वास सेे भरी रचना के लिये सादर।

हार्दिक बधाई आदरणीय प्रतिभा जी।बेहतरीन लघुकथा।आपका विषय चयन तो सदैव ही लाज़वाब होता है।इस बार भी आप एक अछूता विषय लाये हैं। साथ ही उसका निर्वहन तो क़माल है।वर्तमान सामाजिक ढाँचे का पौराणिक पात्रों द्वारा विश्लेष्ण कराना गज़ब की अवधारणा है।बहुत सुंदर।

इस उत्साहवर्धन करती टिप्पणी के लिये आपकी आभारी हूँ आदरणीय तेजवीर सिंह जी

हार्दिक आभार आदरणीय आसिफ जैदी जी

बहुत सुंदर रचना आदरणीय प्रतिभा जी ,बधाई आपको ,सादर 

हार्दिक आभार आदरणीया बरखा जी

आदरणीय प्रतिभा जी, फूलों की ताज़गी सा अंत लिए बहुत ही प्यारी लघुकथा। हार्दिक बधाई

 सुन्दर शब्दों मे सराहना के लिये हार्दिक आभार आदरणीया अंजली गुप्ता जी  

वाह, वाह, बहुत खूबसूरत और फूलों के खुशबू से सराबोर रचना विषय पर. सचमुच धरती प्रेम से कभी खाली हो जाए, हो ही नहीं सकता. बहुत बहुत बधाई इस बढ़िया रचना के लिए आ प्रतिभा पांडे जी

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