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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग-1)

साथियों,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -1) अत्यधिक डाटा दबाव के कारण पृष्ठ जम्प आदि की शिकायत प्राप्त हो रही है जिसके कारण "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2) तैयार किया गया है, अनुरोध है कि कृपया भाग -1 में केवल टिप्पणियों को पोस्ट करें एवं अपनी ग़ज़ल भाग -2 में पोस्ट करें.....

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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2)

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आ० मुनव्वर जी अच्छे शेर कहने के लिए बधाई स्वीकार करें

जनाब मुनव्वर अली ताज साहब ...क्या कमाल के अशआर कहे हैं ..तीनों मतले इस ग़ज़ल की शान हैं ...ढेर सारी दाद और मुबारकबाद कबूल कीजिये|

वाह वाह जनाब मुनव्वर साहब, बहुत ह कामयाब ग़ज़ल हुई है, चौथे और छठे शेर को तकाबुले रदीफ़ की नज़र से देख लीजियेगा, बहुत बहुत बधाई।

वाह वाह ! बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है आदरणीय मुनव्वर अली साहिब | हार्दिक बधाई| 

सद्रे महफ़िल जला गया है मुझे ।
इस्मे शम्मा दिया गया है मुझे।।

ये न कह दे चरागे़ इश्क़ कहीं ।
एक हासिद बुझा गया है मुझे ।।

मेरा साया न छू सके उसको।
तीरगी में रखा गया है मुझे ।।

देख कर लोग मुस्कुराते हैं।
वो तमाशा बना गया है मुझे ।।

बावला हो के एक परवाना।
इश्क़ क्या है बता गया है मुझे ।।

वादी ए इश्क़ मिट के महकाना ।
गुल शिकस्ता सिखा गया है मुझे।।

उसके बख़्शे ग़मों के साये में ।
"सब्र करना तो आ गया है मुझे"।।

चूम कर वो लबों से पेशानी ।
एक गौहर बना गया है मुझे ।।

अपनी कसमें खिला के मक़तल में।
बेवफा क्यों बुला गया है मुझे।।

शादमाँ दिल था जिसकी आमद पर।
हैफ़ वो हीं रुला गया है मुझे।।

रूठ कर "राज़" वो गया तो लगा।
छोड़ कर रब चला गया है मुझे।।

मौलिक/अप्रकाशित

बात बनी नहीं..... 

सदमा दिल था जिसकी आमद पर।
हैफ़ वो हीं रुला गया है मुझे।। !!!

गलती से "शादमा" की जगह "सदमा" लिख गया था.

जनाब विवेक 'राज़' साहिब आदाब,पहली बार आपकी ग़ज़ल से रूबरू हुआ हूँ ।

बहुत उम्दा और मुरस्सा ग़ज़ल कही आपने,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

इस्मे शम्मा दिया गया है मुझे'

इस मिसरे को यूँ कहें तो मुनासिब होगा:-

'इस्म शम्मा दिया गया है मुझे'

सदमा दिल था जिसकी आमद पर'

ये मिसरा बह्र में नहीं है,देखें ।

दर्द और शिक़ायती लहज़े में भावपूर्ण ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय विवेक राज साहिब।

जनाब विवेक राज साहिब,

उम्दा अश्आर निकाले आपने मुबारकबाद आपको,,

समर साहिब की मश्विरे पर गौ़र फ़रमाएँ,

लफ़्ज़ "शम्मा" सही नहीं है सही लफ़्ज़ "शम्अ" है,,


बावला हो के एक परवाना।
इश्क़ क्या है बता गया है मुझे ।।बहुत ही लाजवाब शे'र । इस शे'र में बहुत गहराई है , शायद परवाने समझ सकें ।

           शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद आदरणीय विवेक जी ।आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब की इस्लाह का संज्ञान लें ।

मेरा साया न छू सके उसको।
तीरगी में रखा गया है मुझे ।।//  वाह क्या कहने, आ. विवेक राज साहिब इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आपको

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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
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Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
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