( ग़ज़ल )
जहाँ का दर्द समाया सभी की आह में है।
तमाम शहर का मंज़र मेरी निगाह में है।।
जिसे भी कमियों से उसकी किया ज़रा आगाह।
बड़ा सा दाग़ दिखाता वो शख़्स माह में है।।
तमाम ख़ार में इक आध गुल कहीं दिखता।
बहार गर्दिश-ए-सहरा की ज्यूँ पनाह में है ।
बचा रहा है बशर ख़ुद को हक़ बयानी से ।
के ख़ौफ़ इतना है जैसे वो क़त्ल गाह में है।।
नहीं है कुछ भी ख़बर रोज़-ए-हस्र क्या होगा।
फँसा हर एक बशर शौक से गुनाह में है।।
जो कर रहीं हैं सभी साँस की लहरों पे…
ContinuePosted on November 21, 2018 at 5:55pm — 6 Comments
कौन है देख लें रो रहा कौन है
कौन है उस पे हँसता हुआ कौन है
कौन है लूट कर बन गया ज़िन्दगी
ज़िन्दगी ऐ तुझे भा गया कौन है
कौन है जिसका इक बार टूटे न दिल
दिल मुकम्मल जहाँ में बचा कौन है
कौन है ढूंढ़ता इक बशर बेखता
बेखता आज कल दिख रहा कौन है
कौन है आशना जो मिटा डाले ग़म
ग़म से रब के सिवा आशना कौन है
कौन है देखलूँ हू ब हू फूल सा
"फूल सा मुस्कुराता हुआ कौन है"
कौन है जान लें 'राज़' का…
ContinuePosted on March 4, 2016 at 8:30pm — 5 Comments
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