आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
हार्दिक बधाई आदरणीय सीमा जी! पश्चाताप को सही मायने में चरितार्थ करती बहुत सुंदर प्रस्तुति!मनुष्य की भूल जीवन के अंत तक उसको सालती रहती है!
ह्रदय से धन्यवाद आ० तेजवीर जी.
वाह, गजब की रचना कही है आदरणीया सीमा सिंह जी, अंत में जिस तरह दृढ निश्चय को उभारा है, वो सच में काबिले तारीफ़ है| इस सृजन हेतु सादर बधाई स्वीकार करें|
आपका अनुमोदन बहुत सकारात्मक ऊर्जा देता है आ० चंद्रेश भाई. ह्रदय से आभार.
साधारण से विषय पर असाधारण कथा कोटि कोटि नमन .
आदरणीया सीमा जी प्रदत विषय को साकार करती इस सशक्त लघुकता की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। आंतरिक चोट ही प्रायश्चित का कारण बनती है। कथा की संवेदनशीलता उसमें प्राण फूंकती है। हार्दिक बधाई आदरणीया सीमा जी।
बेहद उम्दा लगुकथा लिखी है आपने आदरणीया सीमा जी। हार्दिक बधाई प्रेषित है, सादर!
आदरनीया सीमा जी, बहुत ही बढ़िया लघुकथा
क़िबला मोहतरम आली जनाब समर कबीर साहिब, ग़ज़ल तो आप मुशायरा लूट कहते ही हैं, अब क्या लघुकथा गोष्ठी भी लूटने का इरादा है? वैसे इसे ओबीओ का तिलिस्म ही कहेंगे जो एक इल्म-ए-अरूज़ के मीर से छंद भी कहलवा दिए और लघुकथा भी। बहरहाल, बाकमाल लघुकथा पेश की है साहिब! ज़मीर का बोझ किसी अपराधी को भी क्या से क्या बना दे कोई नहीं जानता। एक बलात्कारी का पीड़िता की मौत से दुखी होकर भाग जाना, फिर इसी वजह से उसका खुद को किन्नर बना लेने की बात से ही लघुकथा अपना सन्देश देने में पूरी तरह कामयाब थी लेकिन उसका राखी वाला एंगल? गज़ब गज़ब गज़ब !! कितने सारे महीन काँटे दिल में एकदम चुभ जाते हैं। मालूम होता है कि आपने लघुकथा में पंच-लाईन के महत्त्व को आपने बखूबी आत्मसात कर लिया है। इस प्यारी और मयारी लघुकथा से गोष्ठी का क़द यक़ीनन बुलंद हुआ है। प्रदत्त विषय "प्रायश्चित" के साथ पूरा पूरा न्याय हुआ है, उससे भी बढ़कर कि रचना दृश्य-चित्रण करने में भी सफल रही है जिस हेतु मेरी दिली मुबारकबाद हाज़िर है, क़बूल फरमाएँ।
जनाब योगराज प्रभाकर साहिब आदाब,"इतनी ख़ुशी मिली है कि आंसू निकल पड़े" लघुकथा के मुआमले में आप ही मेरे प्रेरणा स्त्रोत हैं ये कहने में मुझे ज़रा भी हिचकिचाहट नहीं,जो भी सीखा है ओबीओ से सीखा है । आपको लघुकथा पसन्द आई मेरा लिखना सफ़ल हुआ,आपकी प्रतिक्रया पाकर मुग्ध हूँ,आगे कुछ लिखने के लिये शब्द नहीं हैं,यह समझ लीजिये पिछले आयोजन से पहले वाले आयोजन में जो आलोचना हुई थी ये उसका ही परिणाम है और आप मेरी इसफलता में बराबर के हिस्सेदार हैं,दिल गहराइयो से आपका धन्यवाद ।
आ. समर कबीर जी ओह्ह्ह क्या कथानक चुना आपने नि:शब्द हूँ. बाकी योगराज सर की टिप्पणी आपको उँचाई पर ले गई .अब मेरी ओर से ह्रदयतल से बधाई स्विकारे
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |