For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अच्छा लेखन क्या ? जो अर्थ से भरा हो | जो अपनी सम्पूर्णता और जीवन्तता के साथ सीधा दिल में उतर जाए, लेखन के दर्पण में पाठक को अपना चेहरा नजर आने लगे, रचना पाठक से सीधा वार्तालाप करने लगे, लेखन में प्रयुक्त बिम्ब पाठकों को अपने आसपास नजर आने लगें, चेहरे  की भाव-भंगिमाएँ रचना के उतार-चढ़ाव के साथ तारतम्य स्थापित करके बदलती रहें,  दत्तचित्त होकर पाठक तत्काल उस दस्तावेज का भरपूर रसास्वादन कर सकें|

इन सब बातों को दिल से महसूस किया जब मेरे हाथों में एक प्रखर, प्रबुद्ध रचनाकार सम्मानीय सौरभ पाण्डेय जी की काव्य कृति---इकड़ियाँ  जेबी से आई | आदरणीय योगराज जी ने इन इकड़ियों को अशर्फियाँ कहा उसमें कोई संदेह नहीं है | मैं तो इनको मणियाँ कहूँगी जो कवि ने साहित्य सिन्धु में डुबकियाँ लगाकर चुन-चुन कर हमारे सामने पेश की हैं |

भाव भावना शब्द में एक जीवन ऐसा भी रचना में कवि ने आज की चकाचौंध भरी जिंदगी, भागमभाग और मानव कर्म की व्यस्तता के इर्दगिर्द ताना-बाना बुना है जिसको पढ़कर एक चलचित्र सा आँखों के सामने दिखाई देता है और पाठक  खुद को उस स्थान पर पाता है | थका-हारा इंसान जब घर लौटता है तो अपने बच्चों को देखकर सब थकान भूल जाता है

कवि कहता है –---

 देर शाम

मैं लसर

हाशिये पे जो गिरा

शोर औ चीत्कार की धुंध से अलग हुआ

वो एक है जो मौन सी

मन के धुंए के पार से

नम आस की उभार सी

ठिठकन की गोद में पड़ी

बेबसी की मूर्त  रूप

सहम सहम के बोलती

पापा जल्दी ...

ना पापा जरूर आ जाना

ये पंक्तियाँ हृदय को द्रवित करती हैं| 

शब्द चित्र में गाँव चर्चा का हर एक परिदृश्य जाना-पहचाना लगता है, जैसे मेरे ही गाँव की बात हो रही हो

पांच अंको की आय बेटा झाँखता है

चार अंको की पेंशन बाप रोता है

अब शहर  और गाँव में यही फर्क होता है.

कुल इन तीन पंक्तियों में कवि ने गाँव से युवको का पलायनवाद, वृद्धों के प्रति उपेक्षा जैसे ज्वलंत मुद्दों को बड़ी सुलभता से दर्शा दिया है | अतिश्योक्ति नहीं होगी जो कहूँ गागर में सागर भर दिया है |   

यथार्थ चर्चा में परिचय में कवि क्या कहता है ----

यदि तुम्हारा अभिजात्य

इस परस्पर परिचय को महज एक जरिया समझता है

बेसाख्ता आगे निकल जाने का महज एक सोपान

तो अफ़सोस यार ...

शीशों मढी इस बहुरंगी तस्वीर के साथ तब

कहीं कुछ और भी दरकता है

बहुत गहरे

जिसे नहीं सुनते कोई कान

सुनती हैं तो पनियायी आँखें

और जबाब फिर नहीं देते कुछ शब्द

देती हैं उज्बुजाई आंहें

जिनकी तासीर मजाक नहीं होती कभी

मजाक नहीं होती

यह रचना कवि की संवेदनशीलता की पर्त खोलती हुई चलती है | कवि का कोमल हृदय स्वीकार नहीं करता पाता कि दोस्ती/परिचय की आड़ में कोई अपना मकसद पूर्ण कर रहा हो ! ये छल एक संवेदनशील हृदय को कदापि मंजूर नहीं हो सकता | यहाँ पाठक को ये खुद के भाव लगने लगते हैं | वो खुद से बातें करता है, यही किसी रचना की विशेषता होती है | 

गीत-नवगीत में हर रचना मनमुग्ध करती है | आपने प्रकृति के बिम्ब चुनचुन कर उनको नवरंग रूप देकर अपने गीतों में ढाला है जो उनके सौन्दर्य को दुगुना करते हैं |

आओ साथी बात करें हम –इस गीत को मैं आ० सौरभ जी के कंठ/मुखारविंद  से सुन भी चुकी हूँ, आज पढ़ कर पुनः आनंदित हूँ |

बारिश की धूप में कवि कहता है ----

राह देखती क्यों उसकी

ये पगली सांकल

रह-रह हिल कर

चुप-चुप दिखती सी पलकों में

कब से एक पता बसता है  

जाने क्यों हर आने वाला

राह बताता सा लगता है  

इन पंक्तियों को पढ़ कर कौन ऐसा होगा जो मन में उस दृश्य को साकार होते हुए महसूस न करे और खुद को वहां खड़ा न पाए ?

 

साथ तेरा वो रहना की ये पंक्तिया बरबस आकर्षित करती हैं ----

जो बीता अपना हिस्सा था

क्या मरू

क्या मृग माया  

संदेसे भेजे सदियों ने

पर्व न कोई आया

उम्मीदों में दृग कोरों का नामना

रह रह बहना

ये पंक्तियाँ कवि के हृदय में दबे जज्बात से धीमे-धीमे निकलकर आती हुई प्रतीत होती हैं जो पाठक के हृदय को भी नम कर जाती हैं |

नए साल की धूप की प्रथम चार पंक्तियाँ ही रचना पर रुकने को मजबूर कर देती हैं

आँखों के गमलों में गेंदे आने को हैं

नए साल की धूप तनिक तुम लेते आना

किसी अपने को स्मरण करते हुए हृदय में उठते हुए भावों में क्या जबरदस्त बिम्ब प्रयोग किया गया है ! यह देखते ही बनता है |

कवि की छांदस इकड़ियाँ भी अद्भुत और बहुमूल्य हैं ,दोहे ,उल्लाला छंद ,सवैये ,कुण्डलियाँ हरिगीतिका छंद ,घनाक्षरी ,

दुर्मिल सवैये की मन मुग्ध करती फुलकी जिसको पढ़कर मुख में पानी भर आएगा

देखिये क्या कहते हैं कवि---

चुपचाप से चाट रहे चुडुआ चख लोल बने घुरियावत है

हुनके मिलिगा तिसरी फुलकी ,हिन् एक लिए मुँह बावत है------वाह्ह्ह  

पढ़कर लगा है कि चाटवाले के पास हम भी खड़े हैं, तीसरी फुलकी का इन्तजार कर रहे हैं |

कवि के एक दोहे के साथ मैं अपनी बाते समाप्त करुँगी

वज्र गिरे गंगा चढ़े, या नभ उगले आग |

जिम्मेदारी कह रही, जीवन से मत भाग ||

अनुपम दोहावली का बहुत-बहुत शिक्षाप्रद दोहा है यह |

आ० सौरभ जी की इस उत्कृष्ट कृति की समीक्षा यहीं समाप्त नहीं हो जाती | यह एक अथाह सागर है जितनी डुबकियाँ लगायेंगे अलग ही अनुभूति होगी और कहने के लिए बहुत कुछ होगा | बहरहाल आ० सौरभ जी को इस काव्य संग्रह की ढेरों बधाई और उनकी आगामी कृतियों की अपेक्षा/मनोकामना रखते हुए शुभकामनायें देती हूँ |

राजेश कुमारी    

Views: 1292

Replies to This Discussion

इकड़िया जेबी से इस किताब के हर पहलू को आपने छुआ है जी हाँ आपकी ये बात सही है ये महज 112 पृष्ठो की किताब नहीं बल्कि भावनाओं का सागर है जितनी बार डुबकी लगाओ एक नई अनुभूति होती है। इस किताब को पढ़ने के एक नहीं बल्कि कई कारण हैं।

भाई शिज्जूजी, आपके कहे को मै हृदय से स्वीकार कर अनवरत सीखने की कोशिश करता रहूँगा.
शुभ-शुभ

बहुत- बहुत आभारी हूँ शिज्जू भाई आपको समीक्षा पसंद आई जो दिल से महसूस किया बस वही लिखा. 

आदरणीया राजेश कुमारीजी,
पुस्तक वाचन के बाद आयी आपकी इस प्रतिक्रिया पर मैं नत हूँ.

आपकी समीक्षा को संतुलित कहूँ तो मुझ पर आत्मश्लाघा का दोष पड़ता है. संतुलित नहीं है कहूँ तो आपके प्रयासों की हेठी होती है. ऐसे ऊहापोह में ईश्वर न करे कोई पड़े. क्योंकि मैं अपनी कमियों को जानता हूँ.

सर्वोपरि, मैं इस मंच का आभारी हूँ, आदरणीया, कि इसने मुझे ठोंक-पीट कर इस लायक बनाया कि अपनी पुस्तक को आप सभी सुधीजनों के हाथों में पा रहा हूँ. पुस्तक में आपने मार्क किया होगा कि कई रचनायें आपके-हमारे बीच की ही रचनायें हैं, जिन पर मंच के सुधी पाठकों ने अपने बेबाक मंतव्य दिये हैं.
सादर

आदरणीय सौरभ भाई , रचना कर्म के प्रति आपकी इमान दारी , आपकी निष्पक्षता और आपके स्वभाव की सरलता के सामने एक बार और मै नत हूँ  ॥ माँ सरस्वती आपको वो सब कुछ दे जिसकी आप कामना करते हैं ॥

आदरणीय एक प्रश्न अचानक दिमाग मे उभर रहा है ,  क्या बलदाउ जी कभी भगवान कृश्ण को समझ पाये थे?

सादर आभार आदरणीय सौरभ जी ,आपकी प्रतिष्ठा में मेरा ये प्रयास आपने स्वीकार किया.आप ने सही कहा ये मंच एक प्रयोगशाला की तरह है जो हमारी पीठ थपथपाता भी है और ठोक पीटता भी है किन्तु आग में तप- तप कर ही सोना निखरता है आपकी शानदार पुस्तक उसकी एक बानगी है ,आपकी बहुत से उत्कृष्ट रचनाएँ जो हमारे बीच की हैं अर्थात उन पर पहले ही बहुत समीक्षा हो चुकी है इसलिए कुछ नई रचनाओं पर अपना ध्यान केन्द्रित किया|माँ सरस्वती का वरद हस्त आपके शीश पर हमेशा बना रहे ,मेरी शुभकामनायें हैं ...और नई कृति के लिए प्रतीक्षित.     

आदरणीया राजेश जी , समीक्षा कर्म , रचना कर्म से भी गहन कर्म है , बड़ी जिम्मेदारी का कर्म है , ऐसा मेरा मानना है !! आपके इस समीक्षा कर्म के प्रयास को , उत्साह को नमन करता हूँ , प्रयास के लिये आपको बधाइयाँ प्रेषित करता हूँ ।

 

आदरणीय गिरिराज जी आपने सही कहा लिखने से पहले रचना को हर पहलु से समझना होता है उसके मूल तक डूबना होता है ,फिर उसको समझकर अपने दिल की सच्ची बात सुननी  होती है तब जाकर कलम समीक्षा के लिए चलती है हालांकि आ० सौरभ जी के साहित्यिक ज्ञान के सामने मेरा ज्ञान तो बहुत गौण है अतः ये भी एक चेलेंज की तरह था मेरे लिए फिर सोचा जो महसूस कर रही हूँ वो तो आप सबसे साझा कर ही सकती हूँ ,आपको ये प्रयास अच्छा लगा जानकर उत्साह वर्धन हुआ.आपका हृदय तल से आभार.   

आदरणीया राजेश जी 

//लेखन के दर्पण में पाठक को अपना चेहरा नजर आने लगे, रचना पाठक से सीधा वार्तालाप करने लगे, लेखन में प्रयुक्त बिम्ब पाठकों को अपने आसपास नजर आने लगें, चेहरे  की भाव-भंगिमाएँ रचना के उतार-चढ़ाव के साथ तारतम्य स्थापित करके बदलती रहें,  दत्तचित्त होकर पाठक तत्काल उस दस्तावेज का भरपूर रसास्वादन कर सकें//............

बहुत ही सटीक शब्दों में आपने 'इकड़ियाँ जेबी से' पुस्तक के परिप्रेक्ष्य में यह बात कही है.....

साथ ही 

//यह एक अथाह सागर है जितनी डुबकियाँ लगायेंगे अलग ही अनुभूति होगी और कहने के लिए बहुत कुछ होगा//...

आपके कहे से बिलकुल सहमत हूँ... कि इस पुस्तक की रचनाएं  ठहर कर पढने के लिए हैं और इनमें अनुभूतियों का विस्तार करने की सामर्थ्य है..

आपने बहुत ही संतुलित दृष्टिकोण से रचनाओं के अन्तर्निहित तत्वों को समेटते हुए इस पुस्तक की समीक्षा की है...

आपको इस सार्थक समीक्षा कर्म पर हार्दिक बधाई 

प्रिय प्राची जी पोस्ट पर आपकी उपस्थिति और अनुमोदन के शब्द पढ़कर हर्षित हूँ मेरा समीक्षा लिखने का ये तीसरा प्रयास था पाठक गण मेरे लिखे से इत्तेफ़ाक रखते हैं पढ़कर  अच्छा लगता है.आपका हार्दिक आभार.  

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. रवि शुक्ला जी. //हालांकि चेहरा पुरवाई जैसा मे ंअहसास को मूर्त रूप से…"
8 minutes ago
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"वाह वाह आदरणीय नीलेश जी पहली ही गेंद सीमारेखा के पार करने पर बल्लेबाज को शाबाशी मिलती है मतले से…"
34 minutes ago
Ravi Shukla commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई ग़ज़ल की उम्दा पेशकश के लिये आपको मुबारक बाद  पेश करता हूँ । ग़ज़ल पर आाई…"
37 minutes ago
Ravi Shukla commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय अमीरूद्दीन जी उम्दा ग़ज़ल आपने पेश की है शेर दर शेर मुबारक बाद कुबूल करे । हालांकि आस्तीन…"
41 minutes ago
Ravi Shukla commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय बृजेश जी ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिये बधाई स्वीकार करें ! मुझे रदीफ का रब्त इस ग़ज़ल मे…"
54 minutes ago
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"वाह वाह आदरणीय  नीलेश जी उम्दा अशआर कहें मुबारक बाद कुबूल करें । हालांकि चेहरा पुरवाई जैसा…"
58 minutes ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय  गिरिराज भाई जी आपकी ग़ज़ल का ये शेर मुझे खास पसंद आया बधाई  तुम रहे कुछ ठीक, कुछ…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. गिरिराज जी मैं आपकी ग़ज़ल के कई शेर समझ नहीं पा रहा हूँ.. ये समंदर ठीक है, खारा सही ताल नदिया…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. अजय जी "
2 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"बहुत बेहतरीन ग़ज़ल। एक के बाद एक कामयाब शेर। बहुत आनंद आया पढ़कर। मतले ने समां बांध दिया जिसे आपके हर…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब जब मलाई लिख दिया गया है यानी किसी प्रोसेस से अलगाव तो हुआ ही है न..दूध…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, पहलगाम की जघन्य आतंकी घटना पर आपने अच्छे दोहे रचे हैं. उस पर बहुत…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service