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ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा

आँखों की बीनाई जैसा
वो चेहरा पुरवाई जैसा.
.
तेरा होना क्यूँ लगता है
गर्मी में अमराई जैसा.
.
तेरे प्यार में तर होने दे
मुझ को माह-ए-जुलाई जैसा.
.
जोबन आया है, फिसलोगे
ये रस्ता है काई जैसा.
.
साथ हैं हम बस कहने भर को
दूध हूँ मैं वो मलाई जैसा.  
.
जाते जाते उस का बोसा
जुर्म के बाद सफ़ाई जैसा.
.
ज़ह’न है मानों शह्र का एसपी  
और ये दिल बलवाई जैसा.
.
तेरा आना पल दो पल को
सरकारी भरपाई जैसा. 
.
धागे ज़ख़्मों के उधड़े हैं
कर दो कुछ तुरपाई जैसा.
.
मौलिक/ अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar yesterday

धन्यवाद आ. रवि शुक्ला जी. 
//हालांकि चेहरा पुरवाई जैसा मे ंअहसास को मूर्त रूप से साम्य   मुझे कुछ असहज उपमा लगी । //
सर! थोडा वक़्त मेरे जैसे बदचलन के साथ बिताइए..आपको भी चेहरों में पुरवाई का आभास होने लगेगा 😂😂😂
आभार 

Comment by Ravi Shukla yesterday

वाह वाह आदरणीय  नीलेश जी उम्दा अशआर कहें मुबारक बाद कुबूल करें । हालांकि चेहरा पुरवाई जैसा मे ंअहसास को मूर्त रूप से साम्य   मुझे कुछ असहज उपमा लगी । 

जाते जाते उस का बोसा
जुर्म के बाद सफ़ाई जैसा.
.
ज़ह’न है मानों शह्र का एसपी  
और ये दिल बलवाई जैसा.

ये दोनो शेर ब तौरे  ख़ास पसदं आये ज़हन एस पी और दिल बलवाई क्या कहने नयी सोच नया ख़याल बहुत खुब 

Comment by Nilesh Shevgaonkar yesterday

धन्यवाद आ. अजय जी 

Comment by अजय गुप्ता 'अजेय yesterday

बहुत बेहतरीन ग़ज़ल। एक के बाद एक कामयाब शेर। बहुत आनंद आया पढ़कर।

मतले ने समां बांध दिया जिसे आपके हर शेर ने रवानी दी है। सौरभ जी के सुझाव दुरुस्त लगे।

दूध-मलाई वाले शेर पर काफ़ी चर्चा हो चुकी है। और मेरा भी यही विचार है कि आप उसे बोलते समय बेशक़ निभा रहें होंगें पर पढ़ते हुए वो बहुत अटक पैदा कर रहा है। और कुल मिला कर ये शेर कुछ परिवर्तन माँग रहा है। और वो कर भी लेंगें।

एक बार फिर से बहुत बहुत बधाई इस शानदार सृजन के लिए।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on Wednesday

आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब 
जब मलाई लिख दिया गया है यानी किसी प्रोसेस से अलगाव तो हुआ ही है न..
दूध और मलाई की तुलना गोष्ट और नाख़ुन से नहीं हो सकती.. मटेरियल बेस अलग है ..
आप ने कह दिया, मैंने स्पष्टीकरण दे दिया .. अब जिसे जैसा सोचना है ..स्वतंत्र है 
सादर 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 9, 2025 at 7:33am

//मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक अलग तह बन के रहती है//

मगर.. मलाई अपने आप कभी दूध से अलग नहीं होती, जैसे गोश्त से नाख़ुन। हाँ मगर दोनों को अलग किया जा सकता है, जबकि क़ुदरती तौर पर तो आपस में जुड़े ही होते हैं, :-)) ...सादर।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 8, 2025 at 11:00am

धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब.
दूध और मलाई दिखने को साथ दीखते हैं लेकिन मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक अलग तह बन के रहती है 
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 8, 2025 at 10:59am

धन्यवाद आ. लक्षमण धामी जी 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 8, 2025 at 8:16am

आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, एक साँस में पढ़ने लायक़ उम्दा ग़ज़ल हुई है, मुबारकबाद।

सभी शे'र  मे'यारी हुए हैं, सिर्फ़ "दूध मलाई" वाले तक मेरी रसाई नहीं हो सकी है। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 6, 2025 at 9:23pm

आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

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