For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-62 (विषय: मर्यादा)

आदरणीय साथियो,
सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-62 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. प्रस्तुत है:
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-62
विषय: मर्यादा
अवधि : 30-05-2020 से 31-05-2020
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फ़ॉन्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है।
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाए रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाएँ इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद ग़ायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आसपास ही मँडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया क़तई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा ग़लत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताए हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिसपर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फ़ोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
.
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 6476

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीया बबिता जी, गोष्ठी की प्रथम प्रस्तुति हेतु आभार । एक बार लघुकथा की दृष्टि से विचार कीजिये, क्या कथा पूर्ण हो सकी, आपने एक  दृश्य उत्पन्न कर जैसे छोड़ दिया लेकिन conclude नहीं हो सका। 

सादर। 

शायद।आभार आपका ध्यानाकर्षण के लिए आदरणीय सरजी। 

आदरणीया बबिता जी, हार्दिक बधाई इस सामयिक कथा के लिए।

इस गोष्ठी में आपकी प्रथम प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। इस रचना से एक सजीव चित्रण उभर कर आ रहा है। आदरणीय योगराज प्रभाकर सर ने आपकी रचना को पुनः लिखकर चार-चाँद लगा दिए हैं। इस मार्मिक रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।

गरिमा
.
" मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूँ , और सब की छोड़ मैं अम्मा तक को भुला सकता हूँ। "

रेवती ने हँसते हुए कहा, " अरे ! नौकरी मिले एक महीना भी नही हुआ हैं लगता हैं दिमाग चल गया हैं।"

गम्भीर होते हुए धीरज ने कहा, " नौकरी की ही प्रतीक्षा थी वरना कब का - - - -।"

" क्या बके जा रहे हो तुम , मेरी समझ से परे हैं आज तुम्हारी बातें "

" समझ मेरी बात , मैं तुझे प्यार करता हूँ और सारी दुनिया से टकराने के दम रखता हूँ। हमे कोई नही समझेगा , चल भाग चलते हैं। बाद में सब ठीक हो जाएगा।"

रेवती अपने पर ही विश्वास नही कर पा रही थी।दादी , चाची का उसके और धीरज के रिश्ते पर उंगली उठाना सही और मां का उन दोनों के प्रति अटूट विश्वास मिथ्या साबित हो गया था।वह अपने मे ही गुम होती जा रही थी की :

" अरे ! गूंगी क्यों हुई जा रही हैं ? ऐसा करते हैं कल बाहर कहीं मिल लेते हैं और सब प्लान कर लेते हैं।" कहते हुए हाथ गालों से फिसलते हुए कंधों से पीठ तक पहुँच गए।

अब तक वह सारी हकीकत समझ चुकी थी।शरीर पर रेंगते हुए हाथ को झटकते हुए अपना निर्णय एक झटके में सुना दिया , " स्नेहिल पवित्र रिश्ते की आड़ में भले ही मेरे शरीर पर तुम कीड़े की तरह रेंग लिए लेकिन दांत नही गड़ाने दूंगी। आज के बाद रिश्तों की गरिमा बरकरार रख पाये तब ही इस देहरी पर आइयेगा। "

मौलिक एवं अप्रकाशित

सीख और सबक सिखाती विषयांतर्गत सुन्दर रचना।बहुत-बहुत बधाई, दी।

आपका हार्दिक धन्यवाद आ. बबिता गुप्ता जी 

आपकी रचना की पंक्चुएशन थोड़ी दुरुस्त की है आ० अर्चना त्रिपाठी जी, बताइएगा सम्प्रेषण कुछ बेहतर हुआ कि नहीं.

गरिमा
.
“मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूँ, और सबकी छोड़ मैं अम्माँ तक को भुला सकता हूँ।”
रेवती ने हँसते हुए कहा, “अरे! नौकरी मिले एक महीना भी नहीं हुआ हैं लगता हैं दिमाग़ चल गया हैं।”
गंभीर होते हुए धीरज ने कहा,

“नौकरी की ही प्रतीक्षा थी वरना कब का----।”
“क्या बके जा रहे हो तुम, मेरी समझ से परे हैं आज तुम्हारी बातें”
“समझ मेरी बात, मैं तुझे प्यार करता हूँ और सारी दुनिया से टकराने के दम रखता हूँ। हमें कोई नहीं समझेगा, चल भाग चलते हैं। बाद में सब ठीक हो जाएगा।”
रेवती अपने पर ही विश्वास नहीं कर पा रही थी। दादी, चाची का उसके और धीरज के रिश्ते पर उँगली उठाना सही और माँ का उन दोनों के प्रति अटूट विश्वास मिथ्या साबित हो गया था। वह अपने में ही गुम होती जा रही थी की :
“अरे! गूँगी क्यों हुई जा रही हैं? ऐसा करते हैं कल बाहर कहीं मिल लेते हैं और सब प्लान कर लेते हैं।” कहते हुए हाथ गालों से फिसलते हुए कंधों से पीठ तक पहुँच गए।
अब तक वह सारी हक़ीक़त समझ चुकी थी। शरीर पर रेंगते हुए हाथ को झटकते हुए अपना निर्णय एक झटके में सुना दिया, “स्नेहिल पवित्र रिश्ते की आड़ में भले ही मेरे शरीर पर तुम कीड़े की तरह रेंग लिए लेकिन दाँत नहीं गड़ाने दूँगी। आज के बाद रिश्तों की गरिमा बरक़रार रख पाए तब ही इस देहरी पर आइयेगा।”
मौलिक एवं अप्रकाशित

आदाब। बहुत ख़ूब आदरणीय सर जी। बहुत-बहुत शुक्रिया हमें भी मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु।

क्षमा चाहती हूं आ. सर। पढ़ तो कल ही लिया था परंतु जवाब नही दे पाई थी।इतने उम्दा मार्गदर्शन के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद ।यह हमारी ऐसी त्रुटियां हैं जिसे हम चाहकर भी ठीक नही कर पा रहे हैं। आगे कोशिश रहेगी।

आदरणीय सर 

इस लघुकथा में सम्प्रेषण तो आ गया है परंतु इस रचना में कहीं 'तुम' और कहीं तुझे' का प्रयोग हो रहा है। क्या इस तरह से लिखना सही होता है ? 

सादर।

   आदरनीया अर्चना जी, इस सोच में उलझे जा रहा हूँ , ये रिश्ते सच में मिथ्या हैं, या जिस आधार पे हैं वो आधार ही  अब बिखर रहा है , लघुकथा के लिए बधाई हो 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
23 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
23 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
23 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
23 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
23 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
23 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आ. भाई तमाम जी, हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आ. भाई तिलकराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति , स्नेह और मार्गदर्शन के लिए आभार। मतले पर आपका…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, आपकी टिप्पणी एवं मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार। सुधार का प्रयास करुंगा।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। आ. भाई तिलकराज जी के सुझाव से यह और निखर गयी है।…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service