For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल "एक दिन मिल जायेगा सब ख़ाक में"

*२१२२ २१२२ २१२*

हर जगह रहता है अपनी धाक में।
ख़ासियत देखी ये उस चालाक में।।

चीज कोई मुफ़्त में कैसे मिले।
लोग रहते आजकल इस ताक में।।

आदमी करता गुमाँ किस बात का।
एक दिन मिल जायेगा सब ख़ाक में।।

ख़ुद-ब-ख़ुद सम्मान मिलता आजकल।
आप हो जब कीमती पोशाक में।।

जब न मोबाइल किसी के पास था।
लोग लिखते हाल अपना डाक में।।

डर हमेशा उस ख़ुदा से ही लगे।
मैं नहीं रहता किसी की धाक में।।

बस यही ख्वाहिश रही "इंसान" की।
वो बिखर जाए वतन की ख़ाक में।।

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 661

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 11, 2018 at 9:36pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है भाई, बधाई 

Comment by surender insan on April 11, 2018 at 9:26pm

आदरणीय अजय तिवारी साहब सादर नमन जी। इस बेहद सार्थक टिप्पणी के लिये बहुत बहुत शुक्रिया जी। ओस पर विचार करूँगा जी।

Comment by surender insan on April 11, 2018 at 9:21pm

   

आदरणीय तेजवीर सिंह जी सादर नमन जी।  बहुत बहुत शुक्रिया और आभार जी। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 1, 2018 at 4:41pm

आ. भाई नवीन जी, अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 30, 2018 at 2:29pm

बढ़िया रचना के लिए ह्रदय से बधाई आदरणीय सादर 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 29, 2018 at 8:45pm

अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय..

Comment by Ajay Tiwari on March 29, 2018 at 5:34pm

आदरणीय सुरेन्द्र जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है.हार्दिक बधाई.

जैसे गैर जरूरी शब्द शेर को कमजोर करते है वैसे ही गैर जरूरी शेर ग़ज़ल को कमजोर करते है. पांचवे शेर पर इस नज़रिए से सोचियेगा. काफिये के बारे में आदरणीय समर साहब कह चुके हैं.

सादर 

Comment by TEJ VEER SINGH on March 29, 2018 at 11:05am

हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेन्द्र जी। बेहतरीन गज़ल।

बस यही ख्वाहिश रही "इंसान" की।
वो बिखर जाए वतन की ख़ाक में।।

Comment by surender insan on March 29, 2018 at 9:46am

जी सुरेन्द्र भाई आदरणीय समर साहब की टिप्पणी का तो इंतजार रहता है । उसे अपनी तरफ से दरुस्त किया है।ग़ज़ल को पसंद करने और हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आपका।

Comment by नाथ सोनांचली on March 29, 2018 at 8:27am

आद0 सुरेन्दर इंसान जी सादर अभिवादन। बढिया ग़ज़ल कही आपने। शैर दर शैर बधाई कुबूल करें।

आली जनाब आद0 समर साहब की बातों को संज्ञान लीजियेगा। सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service