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अंधेरों को मिटाने का इरादा हम भी रखते हैं
कि हम जुगनू हैं थोडा सा उजाला हम भी रखते हैं

अगर मौका मिला हमको ज़माने को दिखा देंगे
हवा का रुख बदलने का कलेज़ा हम भी रखते हैं 

हमेशा खामियां ही मत दिखाओ आइना बन कर
सुनो अच्छाइयों का इक खज़ाना हम भी रखते हैं


महकती है फिजायें भी चहक़ते हैं परिंदे भी
कि अपने घर में छोटा सा बगीचा हम भी रखते हैं


हमारे पास भी है अब नए फीचर का मोबाइल
अजय देखो तो मुट्ठी में ज़माना हम भी रखते हैं

 (मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 9, 2014 at 1:16pm

बहुत खूब ..शानदार ग़ज़ल के शानदार मतले के लिए विशेष लिए बधाई ..

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on August 8, 2014 at 10:06pm

दमखम . वाली ग़ज़ल दमखम के साथ कहने के लिए बधाई

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 7, 2014 at 7:15pm

आदरणीय अजय जी ..बहतओरीन ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई ..हाँ कुछ जगह काफिया का प्रयोग थोडा भ्रामक लग रहा है ..बैसे मुझे भी ज्यादा पता नहीं है बस लगा तो लिख रहा हूँ अन्यथा न लीगियेगा ..सादर 

Comment by Amod Kumar Srivastava on August 6, 2014 at 8:04pm

waaah ... वाह ॥ बहुत सुंदर ... 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 6, 2014 at 7:46pm

अंधेरों को मिटाने का इरादा हम भी रखते हैं
कि हम जुगनू हैं थोडा सा उजाला हम भी रखते हैं----बहुत ख़ूब मतला 

 

हमारे पास भी है अब नए फीचर का मोबाइल
अजय देखो तो मुट्ठी में ज़माना हम भी रखते हैं----मक्ता उससे भी खूबसूरत 

वाह्ह्ह शानदार ग़ज़ल ...दाद कबूलें 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 6, 2014 at 8:42am

वाह वाह !! आ. अजय भाई पूरी ग़ज़ल बहुत खूब कही है , हर शे र के लिये अलग अलग दाद हाज़िर है , कुबूल कीजिये ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 5, 2014 at 8:35pm

sundar I ati sundar I


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 5, 2014 at 7:22pm

वाह ! बधाई स्वीकारें आदरणीय .. .

 

इन दो विशिष्ट शेरों के लिए मैं विशेष बधाई दूँगा -

 

हमेशा खामियां ही मत दिखाओ आइना बन कर

सुनो अच्छाइयों का इक खज़ाना हम भी रखते हैं

उम्दा ! इस हौसले को सलाम !!

 

हमारे पास भी है अब नए फीचर का मोबाइल
अजय देखो तो मुट्ठी में ज़माना हम भी रखते हैं

अय-हय-हय ! ग़ज़ब-ग़ज़ब-ग़ज़ब ! 

 

Comment by Ravi Prabhakar on August 5, 2014 at 6:18pm

/अंधेरों को मिटाने का इरादा हम भी रखते हैं
कि हम जुगनू हैं थोडा सा उजाला हम भी रखते हैं

अगर मौका मिला हमको ज़माने को दिखा देंगे
हवा का रुख बदलने का कलेज़ा हम भी रखते हैं/

बुलंद इरादो को सलाम;  क्‍या ग़ज़ल कही है अजय भाई , मजा आ गया;  दस बार पढ् चुका हूं, गुनगुना चुका हूं वाह बई वाह. शुभकामनाएं स्‍वीकार करें .

Comment by भुवन निस्तेज on August 5, 2014 at 5:37pm

हमेशा खामियां ही मत दिखाओ आइना बन कर
सुनो अच्छाइयों का इक खज़ाना हम भी रखते हैं

बधाई हो आदरणीय इस  बढिया सी गज़ल के लिए....  

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