1.
शमअ देखी न रोशनी देखी ।
मैने ता उम्र तीरगी देखी ।
देखा जो आइना तो आंखों में,
ख़्वाब की लाश तैरती देखी ।
टूटे दिल का हटाया मलबा तो,
आरज़ू इक दबी पड़ी देखी ।
एक इक पल डरावना सा लगा,
इतने पास आ के ज़िन्दगी देखी ।
मैने इंसानियत रह ए हक़ पर,
दो कदम चल के हांफती देखी
2.
आप ने क्या कभी परी देखी ।
मैने यारो अभी अभी देखी ।
उसकी आँखों में सुब्ह सी…
ContinuePosted on July 14, 2019 at 12:30pm — 7 Comments
(2122-2122-2122-212)
मुश्किलें कितनी हैं अपने दरमियाँ गिनता रहा ।
बैठ कर मैं राह की दुश्वारियाँ गिनता रहा ।
आँखों में अश्कों का दरिया चढ़ के जब उतरा तो फ़िर,
मैं तो बस ख़्वाबों की डूबी कश्तियाँ गिनता रहा ।
और करता भी तो क्या वो नौजवां बेरोज़गार,
दी हैं कितनी नौकरी कीअरज़ियाँ गिनता रहा ।
राजनेता को न था मतलब किसी इंसान से,
वो तो केवल धोतियाँ और टोपियाँ गिनता रहा ।
वो रहे गिनते मुनाफ़ा कारख़ाने का उधर,…
ContinuePosted on July 8, 2018 at 7:50am — 17 Comments
Posted on November 4, 2017 at 11:30am — 12 Comments
Posted on November 2, 2017 at 1:30pm — 9 Comments
आदरणीय गुरप्रीत सिंह जी, आप नई चर्चा आरम्भ कर सकते हैं किन्तु ग़ज़ल के सम्बन्ध में "ग़ज़ल की कक्षा" और "ग़ज़ल की बातें" में पूर्व से ही कई चर्चाएँ चल रही है. जहाँ तक मुझे लगता है उन चर्चाओं में ग़ज़ल के लगभग सभी पहलुओं पर चर्चा हुई है और सतत हो रही है. अतः जिस विषय पर चर्चा पूर्व में ही आरम्भ हो चुकी है उसे आप निरंतर कर सकते है. वहीं अपने प्रश्न भी पूछ सकते हैं. गुनीजन स्वमेव ही उत्तर के साथ वहां उपस्थित हो जायेंगे. सादर
आपका अभिनन्दन है.
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