For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गेटप्रेम (लघुकथा)

पहली दिल्ली यात्रा के दौरान गन्तव्य की ओर जाते समय टैक्सी इण्डिया गेट के नज़दीक़ पहुंची ही थी कि वहां दर्शकों की भीड़ देखकर उसने टैक्सी चालक से कहा - "यह तो इण्डिया गेट है न! ग़ज़ब की भीड़ है! देखने लायक ऐसा क्या है यहां? लोग तो फोटो भर उतार रहे हैं, सेल्फी ले रहे या खाने-पीने में भिड़े हुए हैं?"


"यह मॉडर्न देशप्रेम है साहब! शहीदों के नामों और कामों से कोई मतलब नहीं इन्हें! ये तो बस लोकेशन और गेटप्रेम है!" टैक्सी-चालक ने उसकी तरफ़ मुड़कर कहा -"वैसे आप कहां ठहरेंगे? आप कहें तो एक बढ़िया सी लॉज में ठहरवा दूं आपको!"


"बढ़िया जगह ही जा रहा हूं, जहां भाई-चारा और देश-प्रेम दिखता है और मिलता भी है!"


"कहां पर!" टैक्सी-चालक ने चौंककर पूछा।


"मैं यहां के मशहूर गुरूद्वारे की बात कर रहा हूं!"


"लेकिन आप पंजाबी या सिख तो नहीं लग रहे! कौन जात हो आप?"


"हिन्दुस्तानी मुसलमान हूं भाई! सुना है कि गेट से ही प्रेम बंटने लगता है यहां।" गुरूद्वारे पहुंचने पर उसने कहा।


(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 688

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 14, 2018 at 10:06pm

आदरणीय मंच/ पाठकगण मेरी उपरोक्त रचना में अंतिम पंक्ति के बाद यदि यह संवाद जोड़ दिया जाए, तो क्या समापन और बेहतर हो सकेगा? :

"सुना तो सही है आपने, लेकिन आप ख़ुद को 'हिन्दुस्तानी मुसलमान' कहने के बजाय केवल 'हिन्दुस्तानी' कहते, तो सुनकर हमें भी अच्छा लगता साहब!" टैक्सी वाले ने मुस्करा कर कहा।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 14, 2018 at 10:02pm

रचना पर समय देकर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी और आदरणीय   सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी। 

Comment by नाथ सोनांचली on February 7, 2018 at 6:45pm

बहुत बढ़िया बात कहीं उस्मानी साहब। लाख टके की बात। बहुत बेहतरीन लघुकथा पर मेरी दिली मुबारकबाद आपको। सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 7, 2018 at 6:30pm

बहुत ही सार्थक विषय की अच्छी प्रस्तुति की है आदरणीय..सादर

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 6, 2018 at 6:51pm

रचना पर समय देकर अपने विचार साझा करने, अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया राजेश कुमारी जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 6, 2018 at 6:31pm

आपकी बात काफी हद तक सही है गुरुद्वारों में फिर भी अमन भाईचारा कायम रहता है उनकी नजरों में सब इंसान हैं बस बहुत बहुत बधाई इस उम्दा लघु कथा पर आद० शहजाद उस्मानी जी 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 6, 2018 at 4:23pm

मेरी इस रचना पर समय देकर अनुमोदन और स्नेहिल हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरमा रक्षिता सिंह साहिबा, मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब, जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब, जनाब समर कबीर साहिब, जनाब तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब, जनाब सलीम रज़ा 'रीवा' साहिब और जनाब डॉ. विजय शंकर साहिब ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 6, 2018 at 6:58am

सुन्दर ! बधाई ! आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी , सादर।

Comment by SALIM RAZA REWA on February 5, 2018 at 7:50pm
वाह वाह... आपकी लघुकथा ने दिल को छू लिया मुबारक़बाद उस्मानी साहिब...
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 5, 2018 at 9:35am

जनाब उस्मानी साहिब आदाब , कामयाब लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
4 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
21 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
21 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service