For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sheikh Shahzad Usmani's Blog (338)

मुंगेरीलाल के वैक्सीन सपने (कहानी) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी :

मुंगेरीलाल और कोरोनाकाल... सबके बहुत बुरे हालचाल! लॉकडाउन पर लॉकडाउन... घर में क़ैद सब जॉब डाउन, रोज़गार डाउन! बेचारे मुंगेरीलाल ने अपनी कम्पनी की नौकरी छोड़कर बड़ी मुसीबत कर ली थी सात साल पहले। उनका काम और रुझान दिलचस्प और संतोषजनक था, फ़िर भी सपनों और दिवास्वप्नों में खोये रहने और बड़ी-बड़ी बातें फैंकने के कारण दफ़्तर, घर, बाज़ार और ससुराल सभी जगह लोग उनका मज़ाक उड़ा-उड़ा कर मौज-मस्ती कर लिया करते थे। उन सबकी बातों को मुंगेरीलाल कभी हल्के में, तो कभी बहुत गंभीरता से ले लेते थे।

एक बार…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 12, 2020 at 8:30am — 2 Comments

गार्गी की बार्बी (लघुकथा)/शेख़ शहज़ाद उस्मानी

भगवान देता है, तो छप्पर फाड़ कर देता है। लेता है, तो एक झटके में ले लेता है। देकर ले लेता है, तो हँसाने के बाद रुला-रुला कर। राजन, रंजीता और गंगा का ज़िन्दगीनामा भी यही साबित करता रहा; गार्गी और गार्गी की बार्बी का भी! बार्बी के साथ कब, क्या, कैसे और क्यूँ होगा; बार्बी ने कभी सोचा न था। सोचती भी कैसे? उसकी सोच तो उसकी मम्मी पर निर्भर थी। उसकी मम्मी ने भी तो न सोचा था वह सब। यही हाल गार्गी का था। गार्गी के साथ कब, क्या, कैसे और क्यूँ होगा; गार्गी ने कभी सोचा न था। सोचती भी कैसे? उसकी सोच तो…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 10, 2020 at 8:30am — 4 Comments

दिल के हाल सुने दिलवाला (लघुकथा)

"अपनी पैरों से रौंदें, दूजी जो भा जाये!"



"घर की मुर्ग़ी दाल बराबर; नयी पीढ़ी को कौन समझाये!"



अपनापन त्याग कर ख़ुदग़र्ज़ी, मनमर्ज़ी, दोगलापन, पागलपन, बचकानापन दिखाती अपने मुल्क की नई पीढ़ी की सोच और पलायन-गतिविधियों पर दो बुजुर्गों ने अपनी-अपनी राय यूं ज़ाहिर की।



"... 'ओल्ड इज़ गोल्ड' कहावत को छोड़ो जी; ओल्ड इज़ सोल्ड! नई पीढ़ी है सो बोल्ड! उन्हें ज़मीनी स्टोरीज़ टोल्ड हों या अनटोल्ड! हम बुड्ढे तो हुए क्लीन-बोल्ड!" उनमें से एक ने दूसरे से कहा, लेकिन ख़ुद के…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 10, 2020 at 2:34pm — 4 Comments

हिताय और सुखाय (संस्मरण)

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 23, 2019 at 1:00pm — 7 Comments

फ़िर वही राग (क्षणिकायें)

दीये बनते, बिकते, जलते हैं

पेट पालते हैं

दीपक तले अंधेरा

फ़िर वही रात, वही सबेरा!

दीये पालते हैं, दीये पलते हैं

विरासत पलती है

दीपक तले अंधेरा

फ़िर वही बात, वही बखेड़ा!

विरासत पालती है, विरासत पलती है

उद्योग पलते हैं; राजनीति पलती है

लोकतंत्र पलता है

दीपक तले अंधेरा

फ़िर वही धपली, वही राग!

स्वच्छता पालती है, स्वच्छता पलती है

नारे-पोस्टर पलते हैं, भाषण पलते हैं

दीपक तले अंधेरा

फ़िर वही चाल, वही…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 25, 2019 at 6:46am — 5 Comments

दीये पलते हैं...! (लघुकथा)

दीपावली के चंद रोज़ पहले से ही त्योहार सा माहौल था उस कच्चे से घर में। सब अपने पालनहार बनाने में जुटे हुए थे; कोई मिट्टी रौंद रहा था, कोई पहिया चला-चला कर उसके केंद्र पर मिट्टी के लौंदों को त्योहार मुताबिक़ सुंदर आकार दे रहा था। वह उन्हें धूप में कतारबद्ध जमाती जा रही थी। लेकिन अपने-अपने काम में तल्लीन और सपनों में खोये अपनों को देख कर उसे अजीब सा सुकून मिल रहा था हर मर्तबा माफ़िक़। एक तरफ़ उसकी सास; दूसरी तरफ़ समय के पहिये संग कुम्हार का पैतृक पहिया चलाता उसका पति दीपक और उसके कंधों पर झूलता…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 22, 2019 at 10:40pm — 3 Comments

विकासोन्मुखी (लघुकथा)

"ख़ामोश!" एक बलात्कार पीड़िता और सरेआम उसकी हत्या करने वाले युवकों के बाद बारी-बारी से माइक पर उसने मशहूर नेताओं-अभिनेताओं और पुलिसकर्मियों की मिमिक्री करते हुए कहा, "कितने आदमी थे!"



"साहब, ती..ई...तीन थे!"



"वे तीन थे ... और ये सब तीस-चालीस...ऐं! लानत है... तुम लोगों की ख़ामोशी पर!"

"साला... एक मच्छर इस देश के आदमी को हिजड़ा बना देता है!"



"साहब... मच्छर! .. मच्छर बोले तो... पैसा, डर, पुलिस, नेता, क़ानून या स्वार्थ!..है न!"



"कोई…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 8, 2019 at 8:30am — 4 Comments

चक्र पर चल (छंदमुक्त काव्य)

विकसित से

हर पल जल

विकासशील

बेबस बेकल

होड़ प्रतिपल

छलके छल

भ्रष्टाचार-बल!

धरती घायल

सूखते स्रोत

उद्योग-दलदल!

उथल-पुथल

बिकता जल

दर-दर सबल

थकता निर्बल

धन से दंगल

नारे प्रबल

हर घर जल

सुनकर ढल

नेत्र सजल!

बड़ी मुश्किल

आग प्रबल

दूर दमकल

सीढ़ी दुर्बल

ज़िंदा ही जल!

जल में ही बल

जल है, तो कल

कर किलकिल

या फ़िर सँभल!

धाराओं का जल

बिन कलकल

नदियाँ बेकल

प्रदूषण-प्रतिफल!

प्रकृति ही…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 7, 2019 at 11:54am — 2 Comments

छुट्टियों में हिंदी (संस्मरण)

विद्यालयीन हिंदी विषय पाठ्यक्रमों में हिंदी साहित्य की विभिन्न गद्य या काव्य विधायें बच्चे क्यों पसंद नहीं करते/कर सकते? यह सवाल मेरे मन में अक्सर उठता है।

मैं मानता हूँ कि यदि विद्यालयीन पाठ्यक्रमों में हिंदी साहित्य विधाओं की छोटी रचनायें कहानियां आदि/अतुकांत कविताएं/ क्षणिकाएं/कटाक्षिकायें आदि सम्मिलित की जायें; योग्य हिंदी शिक्षकों द्वारा बढ़िया समझाई जायें, तो विद्यार्थी उन्हें अधिक पसंद करेंगे।

अभी विद्यालयों में हिंदी पाठ भलीभांति कहाँ समझाये जा रहे हैं? मुख्य कठिन विषयों…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 26, 2019 at 9:30am — No Comments

अथ अभिकल्पित-आचार-संहिता (आलेख)

बच्चों को शुरू से अध्यात्म, आराधना,  वंदना आदि का व्यावहारिक अभ्यास 'लर्न विद़ फ़न, लर्न विद़ कर्म' या 'देखो, करो और सीखो' पद्धति से कराया जा सकता है। प्रवचन, भाषण, गायन, पुस्तकीय पठन-पाठन मात्र से नहीं। इसके लिए तो हर सरकारी दस्तावेज़ जारी या उपलब्ध कराने, विवाह, गर्भधारणा और उपाधियां देने से पहले, नागरिकता, आधार कार्ड, राशनकार्ड, परिचय पत्र, बैंक अकाउंट, सिमकार्ड, मताधिकार, ड्राइविंग लाइसेंस आदि उपलब्ध कराने से पहले भारत में जन्मे हर भारतवासी को भारत की सर्वधर्म समभाव वाली, …
Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 19, 2019 at 11:31pm — 3 Comments

'कौन अनाड़ी, कौन खिलाड़ी?' (कविता)

हुन-हुना रे हुन-हुना

गुण गिना के गुनगुना

ज़ोर लगा के हय्शा

वोट-पथ पर नैया

अनाड़ी-खिलाड़ी खेवैया

मुश्किल में वोटर भैया

हुआ-हुआ जो बहुत हुआ

अपशब्दों का खेल हुआ

जुआ-जुआ सा हो गया

मतदाता खप-बिक गया

जनतंत्र पर क्या मंत्र हुआ

दुआ-दुआ करो, न बददुआ

संविधान का कर दो भला

कर भला , सो सबका भला

टाल सको, तो अब टाल बला

हुन-हुना रे हुन-हुना

गुण गिना के गुनगुना

ज़ोर लगा के हय्शा

वोट-पथ पर नैया

अनाड़ी-खिलाड़ी खेवैया…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 14, 2019 at 9:00am — 3 Comments

माँ और मैं (चोका)

माँ बहुरूपी

मौजूद इर्द-गिर्द

पहचाना मैं!

ममता बरसाती

नि:स्वार्थ वामा

प्रकृति महायोगी

रोगी-भोगी मैं!

है त्यागी, चिकित्सक

सहनशील

सामंजस्य-शिक्षिका

शिष्य, लोभी मैं!

व्यक्तित्व बहुमुखी

चरित्रवान

परोक्ष-अपरोक्ष

लाभान्वित मैं!

विवादित-शोषित

कोमलांगिनी

अग्निपथ गमन

स्वाभिमानी माँ

यामिनी या दामिनी

अभियुक्त मैं!

बहुजन सुखाय

आत्म-दुखाय

उर्वीजा देवी तुल्य

है पूज्यनीय

पाता माता में…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 10, 2019 at 3:00am — 1 Comment

हास-परिहास (कविता)

टेढ़ा-मेढ़ा हास्य-रस
बड़बोलापन, बस!
सुबुद्धि हुई कुबुद्धि
धन-सिद्धि हो, बस!

तेरा-मेरा हास्य-रस
जीवन जस का तस
बुद्धियांँ हो रहीं ठस!
बच्चे-युवा हैं बेबस!

भोंडा-ओछा हास्य-रस
टीवी टीआरपी तेजस!
हास्यास्पद लगती बहस
सेल्फ़ी रहस्य दे बरबस!

स्वच्छ, स्वस्थ हास्य-रस
स्वाभाविक बरसता बस!
बाल-बुज़ुर्ग-मुख के वश
या फ़िर दे कार्टून, सर्कस!

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 5, 2019 at 10:28pm — 2 Comments

द्वंद्व-प्रतिद्वंद्व (लघुकथा)

बहुमुखी प्रतिभाओं के धनी तीन रंगमंचीय कलाकार थिएटर में फुरसत में मज़ाकिया मूड में बैठे हुए थे।



"तुम दोनों धृतराष्ट्र की तरह स्वयं को अंधा मानकर अपनी आंखों में ये चौड़ी और मोटी काली पट्टियां बांध लो!" उनमें से एक ने शेष दो साथियों से कहा, "पहला अंधा सुबुद्धि और दूसरा अंधा कुबुद्धि कहलायेगा! ... ठीक है!"



दोनों ने अपनी आंखों में पट्टियां सख़्ती से बंधवाने के बाद उससे पूछा, " ... और तुम क्या बनोगे, ऐं?"



"मैं! .. मैं बनूंगा तुम्हारी और आम लोगों की 'दृष्टि'!…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 4, 2019 at 3:30am — 2 Comments

कस्तूरी यहाँँ, वहाँँ, कहाँ (लघुकथा)

स्थानीय पार्क में शाम की चहल-पहल। सभी उम्र के सभी वर्गो के लोग अपनी-अपनी रुचि और सामर्थ्य की गतिविधियों में संलग्न। मंदिर वाले पीपल के पेड़ के नीचे के चबूतरे पर अशासकीय शिक्षकों का वार्तालाप :

"हम टीचर्ज़ तो कोल्हू के बैल हैं! मज़दूर हैं! यहां आकर थोड़ा सा चैन मिल जाता है, बस!" उनमें से एक ने कहा।

"महीने में हमसे ज़्यादा तो ये अनपढ़ मज़दूर कमा लेते हैं! अपन तो इनसे भी गये गुजरे हैं!" दूसरे ने मंदिर के पास पोटली खोलकर भोजन करते कुछ श्रमिकों को देख कर कहा।

उन दोनों को कोल्ड-ड्रिंक्स…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 1, 2019 at 5:32pm — 3 Comments

ये पब्लिक है? (लघुकथा)

"सच कहूं! मुझे भी पता नहीं था कि मेरी अग्नि से मिट्टी के आधुनिक चूल्हे पर चढ़ी एक साथ चार हांडियों में मनचाही चीज़ें एक साथ पकाई जा सकती हैं!"



"तो तुम्हारा मतलब हमारे मुल्क की मिट्टी में आज़ादी के चूल्हे पर लोकतंत्र के चारों स्तंभों की हांडियां एक साथ चढ़ा कर मनचाही सत्ता चलाने से है ... है न?"



"तो तुम समझ ही गये कि इस नई सदी में तुम्हारे मुल्क में मेरी ही आग कारगर है; फ़िर तुम इसे चाहे जो नाम दो : धर्मांधता, तानाशाही, सामंतवाद, भ्रष्टाचार, भय या तथाकथित हिंदुत्व…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 28, 2019 at 9:36am — 2 Comments

लड़की (लघुकथा)

अम्मा को चारपाई पर लेटे देख बिटिया किशोरी भी उसके बगल में लेट गई और दोनों हाथों से उसे घेर कर कसकर सीने से लगाकर चुम्बनों से अपना स्नेह बरसाने लगी। इस नये से व्यवहार से अम्मा हैरान हो गई। उसने अपनी दोनों हथेलियों से बिटिया का चेहरा थामा और फ़िर उसकी नम आंखों को देख कर चौंक गई। कुछ कहती, उसके पहले ही बिटिया ने कहा :



"अम्मा तुम ज़मीन पे चटाई पे लेट जाओ!"



जैसे ही वह लेटी, किशोरी अपनी अम्मा के पैर वैसे ही दाबने लगी, जैसे अम्मा अपने मज़दूर पति के अक्सर दाबा करती…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 23, 2019 at 6:19pm — 4 Comments

"ओ आली, कौन अली; कौन महाबली?" (लघुकथा) :

छकपक ... छकपक ... करती आधुनिक रेलगाड़ी बेहद द्रुत गति से पुल पर से गुजर रही थी। नीचे शौच से फ़ारिग़ हो रहे तीन प्रौढ़ झुग्गीवासी बारी-बारी से लयबद्ध सुर में बोले :



पहला :



"रेल चली भई रेल चली; पेल चली उई पेल चली!"



दूसरा :



"खेल गई रे खेल गई; खेतन खों तो लील गई!"



फ़िर तीसरा बोला :



"ठेल चली; हा! ठेल चली; बहुतन खों तो भूल चली!"



दूर खड़े अधनंगे मासूम तालियां नहीं बजा रहे थे; एक-दूसरे की फटी बनियान पीछे से पकड़ कर छुक-छुक…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 22, 2019 at 3:32pm — 2 Comments

आम चुनाव और समसामायिक संवाद (लघुकथाएं) :

(1).चेतना :



ग़ुलामी ने आज़ादी से कहा, "मतदाता सो रहा है, उदासीन है या पार्टी-प्रत्याशी चयन संबंधी किसी उलझन में है, उसे यूं बार-बार मत चेताओ; हो सकता है वह अपने मुल्क में किसी ख़ास प्रभुत्व या किसी तथाकथित हिंदुत्व या किसी इमरजैंसी के ख़्वाब बुन रहा हो!"

आज़ादी ने उसे जवाब दिया, "नहीं! हमारे मुल्क का मतदाता न तो सो रहा है; न ही उदासीन है और न ही किसी उलझन में है! उसे चेताते रहना ज़रूरी है! हो सकता है कि वह तुष्टीकरण वाली सुविधाओं, योजनाओं, क़ानूनों से आज़ादी का मतलब भूल गया हो या…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 21, 2019 at 3:30pm — 2 Comments

तूलिकायें (लघुकथा) :

नयी सदी अपना एक चौथाई हिस्सा पूरा करने जा रही थी। तेज़ी से बदलती दुनिया के साथ मुल्क का लोकतंत्र भी मज़बूत होते हुए भी अच्छे-बुरे रंगों से सराबोर हो रहा था। काग़ज़ों और भाषणों में भले ही लोकतंत्र को परिपक्व कहा गया हो, लेकिन लोकतंत्र के महापर्व 'आम-चुनावों' के दौरान राजनीतिक बड़बोलेपन के दौर में यह भी कहा जा रहा था कि अमुक धर्म ख़तरे में है या अपना लोकतंत्र ही नहीं, मुल्क का नक्शा भी ख़तरे में है! कोई किसी बड़े नेता, साधु-संत, उद्योगपति, धर्म-गुरु या देशभक्त को चौड़ी छाती वाला इकलौता 'शेर' कह रहा था,…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 16, 2019 at 5:30pm — 5 Comments

Monthly Archives

2020

2019

2018

2017

2016

2015

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मनोज अहसास's blog post अहसास की ग़ज़ल:मनोज अहसास :इस्लाह के लिए
"आ. भाई मनोज जी, सादर अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा हुआ है। हार्दिक बधाई।  यह मिसरा लय में नहीं…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
22 hours ago
मनोज अहसास posted a blog post

अहसास की ग़ज़ल:मनोज अहसास :इस्लाह के लिए

2122   2122   2122  212तुम हमारे दौर के इक रहनुमा हो तो हँसों।नाच कठपुतली का जग में हो रहा देखो…See More
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-96 (विषय: अनुभव)
"स्पीड (लघुकथा): परीक्षा मूल्यांकन कार्य स्थल में परीक्षकों के बीच ब्रेक टाइम वार्तालाप : "अरे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-96 (विषय: अनुभव)
"आदरणीय अजय जी,विषय तो बहुत ही मार्मिक है।इसे और मार्मिकता से पिरोने की जरूरत है।भाषा की…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-96 (विषय: अनुभव)
"आदरणीय मोहन जी,एक अति महत्वपूर्ण विषय का प्रतिपादन हुआ है। हां,लघुकथा को सही रूप देने के लिए कुछ और…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-96 (विषय: अनुभव)
"आदरणीय भाई अरुण जी,सहभागिता एवं प्रयास हेतु बधाई। हां, ओबीओ पर ही एक बार लघुकथा की कक्षा में…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-96 (विषय: अनुभव)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आपका और  विषयांतर्गत आपके इस भावपूर्ण प्रेरक संस्मरण का। हार्दिक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-96 (विषय: अनुभव)
"आदाब। इस बार विषयांतर्गत विविधता लिये रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। रचना के अंदर…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-96 (विषय: अनुभव)
"नमस्कार। विषयांतर्गत संस्मरणात्मक बढ़िया भावपूर्ण रचना हेतु मुबारकबाद आदरणीय मोहन बेगोवाल साहिब।…"
yesterday
DR ARUN KUMAR SHASTRI replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-96 (विषय: अनुभव)
"* जिद्द *मेरी उम्र के अनुसार मेरे अनुभव जो मैंने अपनी वयानुसार देखे समझे व् व्यतीत किये अधिकाधिक १०…"
yesterday
Dr. Geeta Chaudhary commented on Dr. Geeta Chaudhary's blog post कविता: "एक वज़ह"
"आभार सर आपका..."
yesterday

© 2023   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service