For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल - बेटों से कहीं ज्यादा मैं बेटी की तरफ हूं

सोने की चमक छोड़ के मिट्टी की तरफ हूं
बेटों से कहीं ज्यादा मैं बेटी की तरफ हूं

तुम लोग तो जालिम के तरफदार हो लेकिन
मैं आज भी इस देश में गांधी की तरफ हूं

जब साथ दिया मैंने किसी अहले सितम का
एहसास हुआ मुझको मैं गलती की तरफ हूं

आंखो को मेरी ख्वाब ना दौलत के दिखाओ
मैं भूख से बेचैन हूं रोटी की तरफ हूं

मैं डूबने दूंगा ना गरीबों का सफीना
तूफां के मुकाबिल हूं मैं मांझी की तरफ हूं

ये शहर का माहौल मुबारक हो आपको
मैं गांव का बाशिंदा हूं बस्ती की तरफ हूं

नुसरत मेरी ग़ज़लें भी मोहब्बत से भरी हैं
गौतम से मुझे प्यार है चिश्ती की तरफ हूं

कुमार नुसरत
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 832

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रामबली गुप्ता on September 17, 2017 at 11:09pm
वाह भाई नुसरत जी वाह, क्या ग़ज़ल कही है। हर शैर उम्दा हुआ है। आनन्द आया पढ़कर। अव्वल तो हार्दिक बधाई स्वीकारें। कथ्य और शिल्प के सम्बन्ध में गिरिराज भाई जी और नीलेश भाई जी से सहमत हूँ। एक पुनः विचार कर देखिएगा। सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 16, 2017 at 3:14pm
वाह वाह बहुत शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय..बधाई
Comment by Afroz 'sahr' on September 16, 2017 at 2:27pm
आदरणीय नुसरत जी ग़ज़लके लिए आपको बधाई!आदरणीय निलेश जी का सुझाव क़ाबिल ए ग़ौर है! में आदरणीय की बात से सहमत हूँ! सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 16, 2017 at 1:54pm

आ. कुमार जी आपकी ग़ज़ल पर समर कबीर साहब, आ. गिरिराज जी और आ. निलेश शेवगाँकर जी अपनी बात कह ही चुके हैं गौर कीजिएगा। मेरी तरफ से आपको बधाई

Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 16, 2017 at 1:46pm

आ. कुमार जी,
मच पर आपको पहली बार पढ़ा है... अच्छा लगा.. ग़ज़ल  भावपूर्ण है.
मतले में सानी में... में को मैं कर लें 
.
ये शहर का माहौल मुबारक हो आपको..यह मिसरा आख़िर में थोडा मोच खाया है...बहर चूक रहा है ..
अंतिम रुक्न 122 आना चाहिए 212 हो गया है ...
देख लीजियेगा 
सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 16, 2017 at 10:51am

आ. कुमार नुसरत भाई , खूब सूरत ग़ज़ल के लिये बधाइयाँ । एक बात कहना चाहता हूँ , आवश्यक नही कि आप सहमत हों , विचार अपने होते हैं ..
उअला और सानी पर विचार करने से  , मतले मे क्या ऐसा नही लगता ..कि ..  अनजाने मे ही सही , बेटी की तुलना मिट्टी से हो गयी है -
सोने की चमक छोड़ के मिट्टी की तरफ हूं
बेटों से कहीं ज्यादा में बेटी की तरफ हूं     --   सोचियेगा ... सुधार ज़रूरी नही है , जब तक मेरी बात से सहमत न हों ।

Comment by Er Kumar Nusrat on September 15, 2017 at 11:17pm
आप सभी का बहुत बहुत आभार
Comment by पंकजोम " प्रेम " on September 15, 2017 at 2:48pm
वाह उम्दा ग़ज़ल भाई जी वाह
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 14, 2017 at 7:39pm
हार्दिक बधाई ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 13, 2017 at 10:40pm

आदरणीय कुमार नुसरत जी बहुत प्यारी ग़ज़ल कही है आपने | हार्दिक बधाई आपको |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
10 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
20 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service