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ख़त उसका भी आता होगा

22 22 22 22
मुद्दत से वह ठहरा होगा ।
रिश्ता शायद दिल का होगा ।।

सच कहना था गैर ज़रूरी ।
छुप छुप कर वह रोता होगा ।।

ढूढ़ रहा है तुझको आशिक।
नाम गली में पूछा होगा ।।

इल्म कहाँ था इतना उसको ।
अपना गाँव पराया होगा ।।

चेहरा देगा साफ़ गवाही।
जैसा वक्त बिताया होगा ।।

दाग मिलेगा गौर से देखो ।
चिलमन अगर उठाया होगा ।।

मैंने उसको याद किया है ।
खत उसका भी आता होगा ।।

यूँ ही कब निकले हैं आँसू ।
दर्द उसे भी होता होगा ।।

आँखें नम दिखतीं हैं सबकी ।
गीत हृदय से गाया होगा ।।

तेज हव के इन झोकों में ।
इश्क परिंदा उड़ता होगा ।।

टूट रहा हूँ रफ्ता रफ्ता ।
वह भी अब तक रूठा होगा ।।

मिटने वाली बेचैनी है।
चाँद निकलकर आता होगा ।।
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Naveen Mani Tripathi on March 31, 2017 at 1:51pm
आ0 शुक्ल जी सादर आभार ।
Comment by Ravi Shukla on March 31, 2017 at 10:51am

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी बढि़या ग़ज़ल कही आपने । ढेरों मुबारकबाद ।

Comment by Ravi Shukla on March 31, 2017 at 10:51am

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी बढि़या ग़ज़ल कही आपने । ढेरों मुबारकबाद ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on March 27, 2017 at 6:44pm
आ0 सुशील सरना साहब आभार ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on March 27, 2017 at 6:44pm
आ0 आरिफ साहब आभार ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on March 27, 2017 at 6:43pm
आ0 कबीर सर दिल से आभार मूल प्रति में आपकी कीमती सलाह लागू कर लिया । पर्दा लिख लिया ।
Comment by Mohammed Arif on March 27, 2017 at 5:41pm
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, बेहतरीन छोटी बह्र की प्यारी-सी ग़ज़ल । ढेरों मुबारकबाद । आपने कईं शब्दों में नुक्ता नहीं लगाया है । देखियेगा ।
Comment by Sushil Sarna on March 27, 2017 at 3:47pm

इस सुंदर और दिलकश ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय। 

Comment by Samar kabeer on March 27, 2017 at 2:59pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'चिल्मन अगर उठाया होगा'
इस मिसरे में 'चिल्मन'शब्द स्त्रीलिंग है, इसलिये 'उठाया होगा'नहीं कह सकते,'उठाई होगी'कहना होगा,'चिल्मन'की जगह पर्दा' कर सकते हैं ।

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