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पनघट भी ज़हरीला होगा

22 22 22 22

चाँद बहुत शर्मीला होगा ।
थोड़ा रंग रगीला होगा ।।

यादों में क्यों नींद उडी है।
कोई छैल छबीला होगा ।।

रेतों पर जो शब्द लिखे थे ।
डूब गया वह टीला होगा ।।

ख़ास अदा पर मिटने वालों ।
पथ आगे पथरीला होगा ।।

जिसने हुस्न बचाकर रक्खा ।
हाथ उसी का पीला होगा ।।

ज़ख़्मी जाने कितने दिल हैं ।
ख़ंजर बहुत नुकीला होगा ।।

मत उसको मासूम् समझना ।
दिलवर बहुत हठीला होगा ।।

बिछड़ेंगे जीवन के साथी।
गठबंधन गर ढीला होगा ।।

होश बचाकर नज़र मिलाना ।
चेहरा बड़ा नशीला होगा ।।

ऐ प्यासे मत प्यास बुझाना ।
यह पनघट जहरीला होगा ।।

22 22 22 22

-- नवीन मणि त्रिपाठी

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on March 28, 2017 at 10:00pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
5वें,सातवें,नवें और दसवें शैर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ का दोष है,देखियेगा ।

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