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तरही गजल/सतविन्द्र कुमार राणा

तरही गजल
बह्र:122 122 122 122
काफ़िया:अर
रदीफ़:देख लेना
---
गरीबों के दिल में है डर देख लेना
अमीरों की तिरछी नजर देख लेना।

नहीं तीरगी की हमें फ़िक्र कोई
नए हौंसलों की सहर देख लेना।

जरूरत नहीं है अभी बोलने की
खमोशी जो लाए ग़दर देख लेना।

मुहब्बत को मेरी भुला क्या सकेंगे?
*वो आएँगे थामे जिगर देख लेना।*

मेरा दर्द ही दर्द उनका बना है
मेरे अश्क उन गाल पर देख लेना।

सहारा बनोगे तभी फल वो देंगे
जरा खेत में भी शज़र देख लेना।

तुम्हें फैसलों से जो मिल जाए फुर्सत
व्यवस्था हुई है लचर देख लेना।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Mahendra Kumar on January 2, 2017 at 3:34pm
आदरणीय सतविन्द्र जी, बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल लिखी है आपने। मेरी तरफ से ढेरों बधाई स्वीकार कीजिए।
//व्यवस्था हुई जो लचर देख लेना।// क्या इस मिसरे में "जो" को "है" किया जा सकता है? देख लीजिएगा। सादर।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 1, 2017 at 9:59pm

तुम्हें फैसलों से जो मिल जाए फुर्सत
व्यवस्था हुई जो लचर देख लेना।-------------- वाह वाह लाख टके का शेर

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 1, 2017 at 8:02pm

जनाब सत्विन्द्र कुमार साहिब ,  अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ 

Comment by Samar kabeer on January 1, 2017 at 3:08pm
जनाब सतविन्दर कुमार जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
पांचवें शैर का सानी मिसरा तवज्जो चाहता है:-
'मेरे अश्क उस गाल पर देख लेना'
'मेरे अश्क'बहुवचन की तरफ इशारा करते हैं और 'गाल'एक वचन है ?
Comment by Mohammed Arif on January 1, 2017 at 2:31pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी नव वर्ष की बधाई व शुभकामनाएँ ! देशभक्ति से ओतप्रोत गीत के लिए बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mohammed Arif on January 1, 2017 at 2:20pm
आदरणीय सतविद्र कुमारजी नव वर्ष की बधाई व शुभकामनाएँ !ग़ज़ल अच्छी लगी । दो शब्दों में नुक्ते की ग़लती है ।
Comment by नाथ सोनांचली on January 1, 2017 at 12:58pm
भाई सतविन्द्र जी बहुत खूब, क्या गजल कही है भाईजान, पढके मजा आ गया। आपको इस गजल के हर शेर पर दाद हाजिर हैं
Comment by TEJ VEER SINGH on January 1, 2017 at 12:15pm

हार्दिक बधाई आदरणीय सतविंदर कुमार जी।बेहतरीन गज़ल।

तुम्हें फैसलों से जो मिल जाए फुर्सत
व्यवस्था हुई जो लचर देख लेना।

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