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गजल -- देखकर मासूम बच्चों की हँसी

ग़ैर तरही गजल

देखकर मासूम बच्चों की हँसी
आज कुछ मन की उदासी कम हुई

गीत गजलें छन्द मुक्तक फिर कभी
तुझसे मन उकता गया है शायरी

मुझमें शायद कुछ न कुछ तो है कमी
हर किसी को मुझ से जो नाराज़गी

कल मेरे दिल को बहुत सदमा लगा
मेरी गजलें उसने बेगानी कही

गुजरा बचपन जैसे कल की बात हो
तेज़ है रफ़्तार कितनी वक़्त की

रेत पर लिक्खी इबारत की तरह
कुछ ही पल टिकतें हैं मेरे ख़्वाब भी

आप इसको जो भी चाहे नाम दें
मुझ में है मुझ से सिवा इक अजनबी

उन निगाहों को नहीं भूला हूँ मैं
जिनसे की मैंने कभी थी मयकशी

जो मिला किस्मत में लिक्खा था 'दिनेश'
किस को मिलती ज़िन्दगी में हर खुशी

---- दिनेश कुमार १९/१२/२०१४

( मौलिक और अप्रकाशित )

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Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 26, 2015 at 4:54pm

गीत गजलें छन्द मुक्तक फिर कभी

तुझसे मन उकता गया है शायरी

मुझमें शायद कुछ न कुछ तो है कमी

हर किसी को मुझ से जो नाराज़गी

बहुत सुन्दर दिनेश जी आपको बधाई!

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 18, 2015 at 11:58am

अच्छे अश’आर हुए हैं दिनेश जी। दाद कुबूल करें।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 8, 2015 at 3:18pm

दिनेश जी ..कमाल की ग़ज़ल है ..इस ग़ज़ल ने बहुत प्रभावित किया ..जितनी तारीफ्क की जाय कम है ..इस रचना के लिए तहे दिल से बधायी स्वीकार करें ..सादर 

Comment by दिनेश कुमार on February 7, 2015 at 5:49pm
सभी आदरणीय साथियों का हार्दिक शुक्रिया । सहयोग और स्नेह बनाए रखिए ।
Comment by सर्वेश कुमार मिश्र on February 5, 2015 at 10:13am

अच्छा है...


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 3, 2015 at 10:20pm

आदरणीय दिनेश जी, इस ग़ज़ल के तकनिकी पहलुओं को देख मन प्रसन्न है, ई की मात्रा को काफिया बनाकर दो-दो हुस्ने मतला के साथ कही गयी यह गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल कहन और शिल्प पर एक बेहतरीन ग़ज़ल शाबित हो रही है, बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं.

Comment by Shyam Mathpal on January 29, 2015 at 8:41pm

आदरणीय दिनेश जी,

kafi sundar gazhal ke liye bahut badhi ho.

Comment by Anurag Singh "rishi" on January 24, 2015 at 2:50am
आदरणीय लाजवाब गज़ल हुई है
सादर
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 20, 2015 at 7:11am
आदरणीय दिनेश जी हर इक शे'र लाजवाब! वाह वाह वाह!
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2015 at 12:18pm

आ0. भाई दिनेश , लाजवाब ग़ज़ल कही है , हर शे र उम्दा हुये हैं , बधाइ स्वीकारें ।

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