For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

२२ २२ २२ २२ २२ २

आओगे जब भी तुम मेरे ख्वाबों में
उन लम्हो को रख लूँगी मैं यादों में

और नही कुछ चाहूँ तुमसे मेरी जां

दम टूटे मेरा बस तेरी बाहों में

मेरा जीवन इस गुलशन के फूलों जैसा

घिरा हुआ है मगर बहुत से काँटों में


तुमको में रूदाद सुनाऊं क्या अपनी
मेरा हर लम्हा बीता है आहों में

देख रही हो मुझको तुम जैसे "रौनक"
जी चाहे मैं डूब मरूँ इन आँखों में



मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1096

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 25, 2017 at 10:46am

वाह आदरणीया कल्पना दी, बहुत ही खूबसूरत गज़ल कही है| सादर बधाई स्वीकार करें|

Comment by sunanda jha on September 25, 2017 at 9:02am
आदरणीया बहुत प्यारी ग़ज़ल हुई है पर मुझे एक शुब्हा है जो गुणी जत्न दूर करेंगे ,आपकी ग़ज़ल के तीसरे शेर में तुकाबले रदीफ़ दोष आ रहा है तो इस मिसरे को ' मेरा जीवन इस गुलशन के फूलों जैसा ' यूँ करें तो ?
Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 25, 2017 at 8:53am

आदरणीया कल्पना जी दिल की आवाज़ शब्दों में ढली तो खूब सूरत ग़ज़ल बन गई , वाह वाह , बधाई  आपको 

Comment by santosh khirwadkar on September 25, 2017 at 8:23am
वाह्ह्ह आदरणीय ताई, सुंदर ग़ज़ल हुई!!!
बधाई /अभिनंदन!!
Comment by sunanda jha on September 25, 2017 at 8:02am
हार्दिक बधाई आदरणीया कल्पना जी बहुत प्यारी ग़ज़ल हुई ।'रौनक'बहुत प्यारा उपनाम ।
Comment by नाथ सोनांचली on September 25, 2017 at 4:56am
आदरणीया कल्पना भट्ट जी सादर अभिवादन, बहुत ही अच्छी ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 24, 2017 at 6:15pm

धन्यवाद आदरणीय सलीम रज़ा जी | जी मैं जां कर दूंगी | पुनः धन्यवाद |

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 24, 2017 at 5:51pm

धन्यवाद जनाब मोहम्मद आरिफ साहब आपको ग़ज़ल अच्छी लगी जानकार ख़ुशी हुई सार्थक हुआ मेरा प्रयास | जी मैं भी इंतज़ार कर रही हूँ मार्गदर्शन के लिए | सादर |

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 24, 2017 at 5:49pm

धन्यवाद आदरणीय अमित जी |

Comment by SALIM RAZA REWA on September 24, 2017 at 12:22pm
आ. कल्पना जी ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई,
और नही कुछ चाहूँ तुमसे मेरी जान,
जान की जगह " जां " होना चाहिए ,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service