नन्हा गुलाब कर रहा विनंती
जीवन दान मुझे, तुम दे दो
खिलने दो मुझको भी पूरा
बस इतना सा वरदान तुम दे दो |
वो देखो उस नन्ही चिड़िया को
उसको उड़ते हुए देखना है मुझको
अभी तो है वह घोंसले में अपने
रहने दो अपनी क्यारी में मुझको |
वो देखो रंग-बी-रंगी तितली को
गुंजन कर रहा भँवरा भी सुन लो
क्यों तोड़ लेते हो हम सब को
जीवन हमको हमारा तुम दे दो |
नहीं लिखवाया अमरपट्टा कोई…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 30, 2020 at 4:49pm — 4 Comments
" काल सुबह कु तैयार हो जाना! हमलोगा को लेने बस आवेगी।"
" किधर कु जाना है? मुकादम जी!"
" अरे! उवा पिछली बेर गए थे न, मकान बनाने..."
" ओह! उधर कु तो मेरी लुगाई नही जावेगी।"
"कीयों?"
" बस ! मेरी मरजी... मेरी लुगाई है ... वो हरामी ठेकेदार और वाके आदमी... मेरी लुगाई पर..."
"अबे साले! तू क्या खुद को सलमान खान समझता है? तेरी लुगाई को संग लाना होगो वरना..." मुकादम ने जर्दा थूकते हुए अपने करीब खड़े अपने दोस्त से कहा," साला! हरामी! समझता नही यह, इसको…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 7, 2020 at 12:20pm — No Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 18, 2019 at 11:22pm — 3 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on March 12, 2019 at 9:52am — 5 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on March 1, 2019 at 8:14pm — 6 Comments
यह कैसी हवा ज़हरीली,
नफ़रत से भरी
विषकन्या क्या पुनः जीवित हो उठी है
आतंकी गलियारों में
वो वहाँ ख़ूनी होली खेली किसीने
संतुष्ट हुआ होगा क्या वह
अपने कर्तव्य को पूर्ण कर
घर जाकर क्या सुकूँ से सोया होगा!
ये कैसे धर्म ?
कैसा आचरण ?
कैसी शिक्षा ?कैसा प्रण?
मृत्यु अटल सत्य है
क़त्ल-ए-आम!
यह कैसा कृत्य है?
क्या औलाद ऐसी होती है?
जो माँ की छाती छलनी करती है
और वे माताएँ जिनकी
ऐसी…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 26, 2019 at 10:49pm — 4 Comments
9 फ़रवरी 2019
प्रिय डायरी
आज साईट पर कनक अम्मा की हालत देखकर मन भारी हो गया। तुम तो जानती ही हो, कनक अम्मा बाऊजी के समय से अपनी कम्पनी से जुड़ी है। बाऊजी को यह अन्ना दादा कहती थी। बाऊजी को तो तुमने भी देखा है, नहीँ तुम न थी उस वक़्त मेरे साथ तुम्हारी बड़ी बहन थी, मैं उससे अपनी बातें साझा किया करता था, जैसे मैं आज तुमसे करता हूँ। यह क्या मैं भटक गया... हाँ तो मैं कहाँ था। हाँ, कनक अम्मा की बात बता रहा था न मैं। आज वह रोज़ की तरह सीमेंट की तगाड़ी लेकर सीढ़ियों पर चढ़ रही थी कि वह फिसल…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 16, 2019 at 9:48am — 4 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 22, 2018 at 10:23am — 10 Comments
आज लहरों ने की बातें मुझसे
बोलीं
तुम सोचती हो तुम हो बहादुर
समय से तुम लडती हो
मूर्ख हो तुम
जो यह सोचकर दम भरती हो|
और वह इठला कर चली गयी
दूर
वहीं जहाँ से वह आयीं थी
किनारे तक
और वहाँ पड़े चट्टानों से
टकरा-टकरा कर रही थी
बातें उनसे,
कह रहे थे चट्टान उनसे
रुक जाओ
करीब आप मेरे ऊपर से
न यूँ बह जाओ
रुको कुछ घड़ी
की हम तपते हैं
और…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 26, 2018 at 12:00am — 9 Comments
"अरे सुखिया! सुन तो मन्ने एक बात सूझी हैं, तू कहे तो बताऊँ।"
"का बात सूझी है दद्दा! बताय ही द्यो। मैं तो परेसान हो गया हूँ, एक तो उ बैंक का मनजेर बाबू आज सुबह ही कह रहे थे कि जो करजवा हम लिये रही उ का ब्याज भरने को पड़ी...।"
"ह्म्म्म हम सुन लिए थे उ वा की बात, तभी तो हम आये हैं, तू एक काम कर, तू कल सरपंच से कछु उधार मांग ले, वो इंकार न करेगा, और उ पैसा से अपन का ब्याज की किश्त चुकाई दिए।"
"होउ , इ हे बात तो हमरी ख़ोपड़िया में आयी ही नही। हम कल ही सरपंच जी से बात करेंगे। पर…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 12, 2018 at 10:30am — 7 Comments
"ऑफ़ ओह! शीला मैं तो तंग आ गया हूँ, तुम्हारे हाथ में चौबीसों घण्टे मोबाइल को देखकर।" शीला अपनी धुन में थी, नित्यक्रम से निबट कर टी.वी. के आगे अपना मनपसन्द सीरियल देख रही थी और साथ में उसकी उँगलियॉ मोबाइल पर लगातार चल रही थी। शीला की सास, और ससुर जी भी वहीं बैठे हुए थे। वे तपाक से बोले," शेखर की माँ! मुझे तुम्हारी जवानी याद आ रही है...।" शीला के कान चौकन्ने हो गये, वह उनकी तरफ देख रही थी। ससुर जी उसके देखने का आशय समझ गये; उन्होंने कहा,"अरे उस ज़माने में यह मुआ मोबाइल -शोबाइल नहीं था, तुम्हारी…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 5, 2018 at 9:25pm — 11 Comments
कलम को चुप-चाप और उदास बैठे देख बारूद ने पूछा," क्या बात है बहन?"
"कुछ नहीँ! तुम फिर आ गए? चले क्यों नहीं जाते... कह तो दिया तुमसे अब मैं तुम्हे स्वीकार नहीं करूंगी।" गुस्से से कलम बड़बड़ाई।
" मेरे बिना तुम्हारा कोई अस्तित्व ही नहीं हैं, समझीं ! तुम्हें मेरा स्वीकार करना ही होगा।" अट्टहास लेते हुए बारूद ने अपनी अहमियत जतायी।
" नहीं कभी नहीँ ! तुम बदल गए हो अब वो बात नहीं रही, याद करो एक समय वो था जब बिस्मिल की कलम से तुमने यह लिखवाया था : सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 18, 2018 at 1:30pm — 5 Comments
"अपने पुत्र को समझाओ गांधारी। वासुदेव कृष्ण की माँग सर्वथा उचित है। 'पांडवो के लिये पाँच गाँव!' भला इससे कम और क्या हो सकता है?’’
"नहीं आर्यपुत्र, अब वह समझाने की सीमा में नहीं रहा। पानी सिर से ऊपर बहने लगा है।" गांधारी की आवाज सदैव की भांति स्थिर थी। 'मैंने आप से अनगिनित बार उसे समझाने के लिये कहा लेकिन आप के 'पुत्र-मोह' ने उसे कभी समझाना ही नहीं चाहा। परिणामतः हम जहां आ चुके है, वहां से लौटना संभव नहीँ।"
........... युद्ध की कालिमा छंट चुकी थी लेकिन सभी पुत्रों को खो चुके…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 20, 2018 at 5:17pm — 5 Comments
नारी का मन
न जाने कोई
जाने गर तो
न पहचाने कोई
एक पहेली बनती नारी
हास परिहास की शिकार है नारी
नव रसों में डूबी हुई
अनोखी पर सशक्त है नारी
कौन जाने कब हुआ जन्म
श्रुष्टि रचयिता में सहभागी है नारी
हर रिश्ते में बाँधा है इसको
माँ, बहन, चाची औ मासी
पूर्ण होता संसार है इससे
अर्धनारीश्वर का रूप धरा शिव ने
नारी का सम्मान बढ़ाया
युग बदला
बदली है नारी
परम्परा से आधुनिकता की राह पर
आज देखो चल पड़ी है नारी
कदम कदम पर…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 8, 2018 at 11:07am — 11 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 1, 2018 at 8:24am — 13 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on March 27, 2018 at 3:00pm — 4 Comments
कभी देखा है खुद को आईने में? तुम्हारी सहेली शीला को देखो,खुद को कितना मेन्टेन किया हुआ है उसने| और तुम! तुम्हारी शकल पर हमेंशा बारह बजते है| तंग आ गया हूँ तुम्हारी मनहूस शकल देखते देखते|" ऑफिस से घर आये शेखर के ऐसे विचार जानकार शीला खुद को न रोक पायी, उसने कुछ कहने को मुँह खोला ही था कि उसकी जेठानी ने कहा," अरे देवर जी! गर यह ऐसा न करेगी तो लोगों को पता कैसे चलेगा कि हमलोग इसको परेशान करते हैं| यह सब इसकी नौटंकी है, मुझे देखो दिन भर काम करती हूँ पर आपके भैया! मजाल है अब तक उन्होंने कुछ कहा…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on March 25, 2018 at 8:30am — 6 Comments
शिकार की तलाश में घूमते-घूमते अंगुलिमाल को एक साधु दिखा| उनको देखकर उसने कहा," तैयार हो जाओ तुम्हारी मृत्यु आयी है|"
साधु ने निडर होकर कहा," मेरी मौत! या तुम्हारी...?"
साधु का ऐसा उत्तर सुन कर अंगुलिमाल थोड़ा विचलित हुआ,उसने साधु से पूछा," तुमको मुझसे डर नहीं लगता? मेरे हाथ में हथ्यार देखकर भी नहीं?"
"न .... मैं क्यों डरूँ तुमसे, पर तुम हो कौन और यह माला कैसे पहनी है, इतनी सारी उँगलियाँ .......?"
"हाहाहाहाहा! हाँ यह उँगलियाँ ही हैं और मैं अंगुलिमाल…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 21, 2018 at 5:30pm — 5 Comments
रत्नाकर जंगलों में भटकता, और आने-जाने वालों को लूटता | यही तो उसका पेशा था| नारद-मुनी भेस बदलकर उसके सामने खड़े थे, बहुत दिनों बाद एक बड़ा आसामी हाथ लगा है: सोचकर रत्नाकर ने धमकाया ,"तुम्हारे पास जो कुछ भी हो ,सब मेरे हवाले कर दो वरना जान से हाथ धोना पड़ेगा|"
"ठीक है, सब तुमको दे दूंगा,पर यह पाप है,तुम जो भी कुछ कर रहे हो पाप है|"
"यह मेरा पेशा है,पाप और पुण्य को मैं नहीं जानता! तुम मुझे अपना सब कुछ देते हो कि नहीं? वरना यह लो....|"
नारद जी ने निडर होकर कहा," मुझे मारने के…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 19, 2018 at 10:43pm — 17 Comments
सुखविंदर जी को सोचमग्न अवस्था में देख उनकी पत्नी ने उनसे पूछा," क्या सोच रहे हो जी?"
"ख़ास कुछ नही...... बस कल अपने खेत पर जो सिपाही आया था उसी के बारे में सोच रहा हूँ.......।"
"सिपाही..... और अपने खेत में.........! कब और क्यों....?"
"कह रहा था कि अपना खेत उसको बेच दूँ.... ।"
"हैं.........! ये क्यों भला......?"
"वह सिपाही न था पर ......सिपाही के खाल में भेड़िया था........ उसका चेहरा ढका हुआ था... पर उसकी आवाज़ कुछ जानी... इतना ही कह पाये कि बाहर से चिल्लाने की आवाज़ आयी।…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 16, 2018 at 5:52pm — 3 Comments
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