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लक्ष्मण रामानुज लडीवाला's Blog – August 2012 Archive (11)

नित्कर्म ही धर्म (दोहे)

मर्यादित आचरण ही,सद्चरित्र व्यवहार,
सद्चरित्र व्यवहार से,हो दर्शन करतार //

कर दर्शन करतार के, सदाचार सोपान,
सदाचार सोपान से, होगा बेडा पार //

होगा बेडा पार तब,परहित तेरे कर्म,
परहित तेरे कर्म हो, उसेही मनो धर्म //

पुरुषोत्तमश्री राम का, है मर्यादित चरित्र,
अनुशासित नित्कर्म, है आचरण पवित्र //

जीवन दर्शन तत्व को,कृष्ण ही समझाय
युक्ति संगत करम को, कर्मयोगी बतलाय //

-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 31, 2012 at 11:30am — 16 Comments

वक्त कीमती है --------

कर्म ने ही सुखद भाग्य बनाया 

गीता में कृष्ण ने यही बताया |

 

मदद ली जाती  है, इसकी समझ धरो 

भूलोंसे सीख का मन में उन्माद भरो |

 

प्रभु के दिए मौके को न जाने दिया करो 

उंगलियाँ यूँ ही  न सब पर उठाया करो | 

 

बीते वक्त की याद ने मन दुखी कराया 

उठों तभी सवेरा है, मन को समझाया…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 28, 2012 at 5:34pm — 2 Comments

यूँ ही उंगलियाँ न उठाओ

पोते-पोतियों से पढ़ना सीख रही है पुलिसवालों की बीबियाँ 
पुलिस वाले हैरान है,हो जाएँगी होशियार उनकी बीबियाँ | -1



पत्निया फिक्रमंद है,कही आँखे न लड़ाले ये कामवाली बाइयां,
चुपके चुपके पतियों से, पढ़ना सीख रही है कामवाली बाइयां |- 2…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 27, 2012 at 3:04pm — 2 Comments

कह मुकरियाँ

(आदरणीय  अम्बरीश जी रहा नहीं गया   कह मुकरियाँ  मैंने भी लिखी सादर देखे :..)

 
 
वारंट निकालों चाहे जितने 
हाथ पुलिस के वे  न आते 
गुण्डों का भी पोषण करते 
क्या सखी नेता ? नहीं…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 24, 2012 at 1:30pm — 9 Comments

मन से है ------ ( दोहे )

 
राष्ट्र गान के बोल पर, हो जाते सब मुग्ध 
निरा पशु वो आदमी, सुनकर होवे क्षुब्ध // 
 
त्याग औ बलिदान की,आजादी सौगात 
याद रहे कुर्बानियां, विनती यही दातार  //
  
पांडव अब…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 23, 2012 at 10:30am — 7 Comments

भारत माँ की लाज बचाने

हे भारत के लोगों जागों 

खेतिहर मजदूर,किसानो जागो
फिरसे  मोर्चा संभालो रे 
आंतकवादी घुसआये देश में, 
बाहर उन्हें निकालो रे  |
कलम के धनी लेखकों जागों …
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 14, 2012 at 2:30pm — 3 Comments

भ्रष्टाचार की जड़ें (कहानी)

रामानुज के छोटे भाई शिवशंकर अन्तरिक्ष संचार विभाग में कार्यरत थे |विभाग के उपमहा प्रबंधक धोकलराम पंवार ने शिवशंकर को आकाशपुर की स्टेशनरी फर्मो से निविदाए एवं साथ में बंद लिफाफे एकत्रित कर प्रस्तुत करने का कार्य करने का निर्देश दिया | डी.जी.एम् धोकलराम पंवार को उसने बताया कि उसकी सेवा निवृति होने में अब 15 माह का समय ही शेष बचा है, अतः यह कार्य किसी अन्यसे सम्पादित करावे | डी.जी.एम्. पंवार ने कहा कि सेवा निवृति से पूर्व,मै चाहता हूँ कि आप भी लाभ ले लो,फिर आपकी इमानदार छवि के चलते किसी को कोई…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 13, 2012 at 4:00pm — 9 Comments

एक ही विधान है

देने वाला दाता ही,  ताप है संताप है 
तुझे मिल रहा जो, कर्मो  का ही श्राप है 
 
मत समझ वे कमजोर, और तू बलवान है 
उनके बल पर ही बना, आज तू धनवान है …
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 6, 2012 at 12:30pm — 7 Comments

"टै" बोलने का इंतजार (लघुकथा)

बच्चे ने पूछा - दादी, आप भगवन को प्यारी कब होंगी ? बूढी दादी बोली-बेटा,भगवान् की पूजा करना ही अपने हाथ में है,बाकी सब भगवान पर है | बच्चे ने फिर पूछा- दादी आप "टै" कब बोंलेगी ? दादी कुछ देर विस्मय से बच्चे को गुहारती रही,फिर सोच कर बोंली- सौरभ बेटे "टै" बोलने से क्या होता है ? चल तू कहता है तो अभी ही बोल लेती हूँ -टै | इस पर सौरभ बोंला - दादी. रात को माँ पापा से कह रहा था कि आप नयी कार कब खरीदोंगे | मम्मी-पापा बात कररहे थे कि दादी के पास बहुत सारा धन है | पर जब वह "टै" बोल जायेगी तब ही…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 3, 2012 at 5:30pm — 13 Comments

मेरी माँ है सबसे प्यारी

मेरी माँ है सबसे प्यारी 

मोहपाश

दादा-दादी की दुलारी
मेरी माँ है सबसे प्यारी  
है बहुत…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 2, 2012 at 11:00am — 5 Comments

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