महिला दिवस पर रचित दोहे -
मही रूप देवी धरे, धैर्य गुणों की खान
साहस की प्रतिमूर्ति भी, नारी को ही मान |
सृष्टि सृजनकर्ता यही,यही मही का अर्थ,
रणचण्डी भी बन सके, नारी सभी समर्थ ।
महिला से महके सदा,घर आँगन में फूल
वही सजाती घर सदा, मौसम के अनुकूल ।
जीवन के हर रूप में, नारी मन उपहार,
आलोकित जीवन करे, खुशियों के त्यौहार ।
घर की लक्ष्मी से सदा, सजता है घरबार,
घर आँगन इनसे खिले,इनसे सदा बहार ।
नारी का अपमान हो, सारे व्यर्थ विधान
मूक बने शासक जहाँ, बढे वही हैवान ।
नारी की ही कोख में,पूत रहे नो माह
नारी के सहयोग से,खुले जगत की राह ।
नारी करती नौकरी, उत्पीड़न को झेल,
समता के अधिकार में बाधक है यह खेल ।
दो मन है मन्दोदरी, करे पिया से प्यार
बचे नहीं सिंदूर तब,साजन का उद्धार ।
नारी तू अबला नहीं,अपनी ताकत जान
दोषी से कर सामना, पूरे कर अरमान ।
(मौलिक व अप्रकाशित)
- लक्ष्मण रामानुज लडीवाला
Comment
उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत आभार आपका श्री महेंद्र कुमार जी | सादर
दोहों सराहने के लिए क्रिया जनाब मोहम्मद आरिफ साहब |
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