ईद मनाये हम सभी गले मिले सब आज
सर्व धर्म सद्भाव के अकबर थे सरताज |
अकबर थे सरताज, सभी का मान बढाया
नवरत्नों के साथ, गर्व से राज चलाया
सभी तीज त्यौहार सुखद अनुभूति कराये
बढे ह्रदय सद्भाव सभी अब ईद मनाये |
(2)
नदियाँ सा बहता रहे, करे रक्त संचार
इडा पिंगला सुषम्ना संचारित आधार |
संचारित आधार रुधिर इनमे ही बहता
करे साधना योग वही बलिष्ठ भी रहता
करले लक्ष्मण ध्यान यही शरीर की निधियां
महाकुम्भ का स्नान कराती जैसे नदियाँ ||
(3)
नदी बनाती राह यूँ, संगम का रख चाव
गंगा यमुना सुरसती, भरे ह्रदय सद्भाव
भरे ह्रदय सद्भाव, उष्ण ताप भी सहती
करे नहीं आराम, सतत वह बहती रहती
कृषकों का सौभग्य नदी जल लहरे लाती
निखरे शहर स्वरूप राह भी नदी बनाती
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
कुण्डलिया पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री विजय निकोरे जी
छंद सराहने के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी | लय भंग को दुरस्त करने का सुझाव देने के लिए धन्यवाद
कुण्डलिया छंद पसंद करने के लिए शुक्रिया श्री गिरिराज भंडारी जी | लय में पराव की कमी बताने के लिए धन्यवाद
कुण्ड्लियाँ अच्छी लगीं। बधाई।
बहुत ही सुंदर कुण्डलियाँ है.....पढ़कर बहुत अच्छा लगा....सादर.
बहुत सुन्दर कुण्डलिया रची हैं आ० लक्ष्मण जी ,आ० गिरिराज जी की बात से सहमत हूँ कहीं कहीं लय भंग है और आप अवश्य दुरुस्त कर लेंगे मुझे विशवास है बहुत- बहुत बधाई आपको सादर
ईद एवं तीज की शुभ कामानाओ सहित हार्दिक आभार सर्व श्री डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी एवं डॉ विजय शंकर जी
आदरणीय लक्ष्मण भाई , कुण्डलियों की अच्छी रचना की है , बधाइयाँ ! प्रवाह में कुछ कमी ज़रूर लगी ||
लडीवाला जी
अच्छी प्रस्तुति है i बधाई हो i
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