अविनाशी प्रभु अंश ही, कृष्ण रहे बतलाय
मोह रहे न कर्म सधे, कर्म सधे फल पाय
कर्म सधे फल पाय, राह चलकर पथ पाते
हर पल चाहे लाभ, निभे क्या रिश्ते नाते
लक्ष्मण कहते संत, रहे मानव मितभाषी
आत्मा छोड़े देह, जो है अमर अविनाशी |
गंगा मात्र नदी नहीं, समझे इसका सार
गंगा माँ को मानते जीवन का आधार |
जीवन का आधार, इसी से भाग्य जगा है
कूड़ा कचरा डाल, मनुज ने किया दगा है
कह लक्ष्मण कविराय, रहोगे तन से चंगा
धोते सारे पाप, रखे क्यों मैली गंगा ||
गंगा तट को साफ़ करे, भली करेंगे नाथ,
स्वच्छ धरा सुंदर लगे, खुशबू बिखरे पाथ
खुशबू बिखरे पाथ, सुगम तब राहे बनती
लक्ष्मी का आवास, धान्य से घर को भरती
लक्ष्मण रहना स्वच्छ, तभी तन रहता चंगा
दुराचार यह कर्म, करे जो मैली गंगा ||
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
कुण्डलिया छंद पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री गिरिराज भंडारी जी
सुंदर प्रतिक्रिया कर उत्साहवर्धन करने के लिए आपका सादर हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमार जी
कुण्डलिया छंद का ज्ञान ओबीओ को विद्वजनों की देन है, उन्हें नमन करते हुए, आपका हार्दिक आभार श्री विजय निकोरे जी
आपकी स्सुंदर प्रतिक्रिया से सुकून मिला, आपका हार्दिक आभार श्री खुर्शीद खैराडी जी
आदरणीय लक्ष्मण भाई , तीनो कुंडलिया बहुत सुन्दर लगी , सन्देश प्रद ! बधाइयाँ ।
तीनो ही कुण्डलियाँ सुन्दर सन्देश प्रेषित कर रही हैं बहुत बढ़िया बहुत- बहुत बधाई आ० लक्ष्मण जी.
कुण्डलिया छंद में आप माहिर हैं। हार्दिक बधाई, आ० लक्ष्मण जी।
आदरणीय लडीवाला जी ,बहुत सुन्दर और समसामयिक रचना हुई है |सादर अभिनन्दन
आपकी सराहना पाकर मेरा लेखन धन्य हुआ, आपका हृदयतल से आभार आदरणीय श्री योग राज भाई जी |
सादर
छंद पसंद करने के लिए शुक्रिया श्री राम शिरोमणि पाठक जी
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