For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Nilesh Shevgaonkar's Blog – March 2018 Archive (8)

ग़ज़ल नूर की - जिसका मैं मुन्तज़िर रहा पल में वो पल गुज़र गया,

२११२/ १२१२ // २११२/ १२१२ 

.

जिसका मैं मुन्तज़िर रहा पल में वो पल गुज़र गया,

और वो लम्हा बीत कर अपनी ही मौत मर गया.

.

मेरा सफ़र तवील है दूर हैं मंज़िलें मेरी

दुनिया फ़क़त सराय है रात हुई ठहर गया.

.

कोई छुअन थी मलमली कोई महक थी संदली

ख़ुद में जो उस को पा लिया मुझ में जो मैं था मर गया.

.

सारे तिलिस्म तोड़ कर अपनी अना को छोड़ कर

तेरे हवाले हो के मैं अपने ही पार उतर गया.   

.

पीठ थी रौशनी की ओर साये को देखते रहे

“नूर” से जब नज़र…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on March 29, 2018 at 10:04pm — 12 Comments

ग़ज़ल नूर की- दूर से इक शख्स जलती बस्तियाँ गिनता रहा

२१२२/ २१२२/ २१२२/ २१२ 

.

दूर से इक शख्स जलती बस्तियाँ गिनता रहा

रह गई थीं कुछ जो बाकी तीलियाँ गिनता रहा.

.

यादों के बिल से निकलती चींटियाँ गिनता रहा

था कोई दीवाना टूटी चूड़ियाँ गिनता रहा.

.

मुझ से मिलता-जुलता लड़का आईने से झाँक-कर

मेरे चेहरे पर उभरती झुर्रियाँ गिनता रहा.

.

होश मेरे गुम थे मैंने जब किया इज़हार-ए-इश्क़   

और वो नादान कच्ची इमलियाँ गिनता रहा.     

.

एक दिन पूछा किसी ने कौन है तेरा यहाँ  

दिल हुआ रुसवा…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on March 26, 2018 at 4:46pm — 40 Comments

ग़ज़ल नूर की -जलने लगे जो ख्व़ाब सब नैन धुआँ धुआँ रहे

अरकान: नामालूम 

लय: दिल ही तो है न संग-ओ-खिश्त ... या ...आप को भूल जाएं हम इतने तो बेवाफ़ा नहीं ...की तरह 

.

 

जलने लगे जो ख्व़ाब सब नैन धुआँ धुआँ रहे

दिल से तेरे निकल के हम जानें कहाँ कहाँ रहे.

.

रब से दुआ है ये मेरी दिल की सदा है आख़िरी

लब पे उसी का नाम हो जिस्म में गर ये जाँ रहे.   

.

लगते हों आलिशान हम कहने को क़ामयाब हों

खो के तुझे तेरी कसम अस्ल में रायगाँ रहे.

.

तेरी तलब में जाने जाँ ख़ाक हुए वगर्ना हम  …

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on March 24, 2018 at 9:37pm — 24 Comments

नज़्म: आत्मबोध

सुझाव / इस्लाह आमंत्रित 

.

जब क़लम उठाता हूँ यह सवाल उठता है

क्यूँ ग़ज़ल कही जाए कब ग़ज़ल कही जाए?

.

क्या अगर कोई तितली फूल पर जो मंडराए

टूट कर कोई पत्ता शाख़ से बिछड़ जाए

तोड़ कर सभी बन्धन पार कर हदों को जब

इक नदी उफ़न जाए, दौडकर समुन्दर की

बाँहों में समा जाए तब ग़ज़ल कही जाए?

.

इक  पुराने अल्बम से झाँक कर कोई चेहरा

तह के रक्खी यादों के ढेर को झंझोड़े और

इक किताब में बरसों से सहेजी पंखुड़ियाँ

यकबयक बिखर…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on March 16, 2018 at 8:30am — 11 Comments

ग़ज़ल नूर की -. माँ भारती की शान में,

२२१२/२२१२

.

माँ भारती की शान में,

वो रोज़ नव परिधान में.

.

क्यूँ राष्ट्रभक्ति खो गयी

समवेत गर्दभ गान में.

.

सब हो गए कितने पतित

सोचो कथित उत्थान में.

.

हर बैंक कर देंगे सफा

वो स्वच्छता अभियान में.

.

इन्सानियत बाक़ी कहाँ 

अब है बची इन्सान में.  

.

वो माफ़िनामे लिख गये

अपना यकीं बलिदान में.

.

कैसे मसीहा देख लूँ

उस इक निरे नादान में.

.

करते दहन है खूँ फ़िशां

कत्था लगा कर…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on March 14, 2018 at 8:12pm — 14 Comments

ग़ज़ल नूर की- ग़लत को गर ग़लत कहना ग़लत है

१२२२/१२२२/१२२

.

ग़लत को गर ग़लत कहना ग़लत है   

मेरा दावा है ये दुनिया ग़लत है.

.

अगर मर कर मिले जन्नत तो फिर सुन

तेरा इक पल यहाँ जीना ग़लत है.

.

हमारी बात का मतलब अलग था,

अगरचे आप ने समझा ग़लत है.

.

मुझे है तज़्रबा तुम से ज़ियादा

मेरी मानों तो ये रस्ता ग़लत है.

.

कहानी में तो मिल जाते हैं दोनों

हक़ीक़त में जुदा होना ग़लत है.

.

कहे नंगे को नंगा एक बच्चा

कहे दरबार वह बच्चा ग़लत है.  

.

ग़लत साबित मुझे…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on March 10, 2018 at 10:25pm — 16 Comments

ग़ज़ल-नूर की -ईमान छोड दूँ तो क़िरदार मार देगा,

२२१२ १२२ २२१२ १२ २

.

ईमान छोड दूँ तो क़िरदार मार देगा,

इस पार बच गया तो उस पार मार देगा.

.

आदत सी पड़ गयी है अब नफ़रतों की मुझ को

इतना न मुझ को चाहो ये प्यार मार देगा.

.

कितना बचाऊँ लेकिन है तज्रबा... मुकद्दर,

इक रोज़ मेरे सर पर दीवार मार देगा.

.

ये हक़ बयानी का इक औज़ार था मगर अब,

सच बोल दे कलम गर अख़बार मार देगा. 

.

कोचिंग की आशिक़ी में वह मुँह चिढ़ाता शनिचर,

लगता था जैसे हम को इतवार मार देगा.

.  

बोली बढ़ा घटा…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on March 8, 2018 at 9:00pm — 15 Comments

ग़ज़ल नूर की- ज़ालिम तुझ से डरे नहीं हैं..

22/ 22/ 22/ 22

ज़ालिम तुझ से डरे नहीं हैं,

हारे हैं .....पर मरे नहीं हैं.

.

और कुछ इक दिन ज़ुल्म चलेगा,

अभी पाप-घट भरे नहीं हैं. 

.

खोट है उस की नीयत में कुछ

पूरे हम भी खरे नहीं हैं.

.

कौन सी जन्नत कैसी क़यामात

ये सब मौत से परे नहीं हैं.

.

कहते हैं वो अपने मन की

पर मन की भी करे नहीं हैं.

.

गर्दभ होते ...घास तो चरते

साहिब.. घास भी चरे नहीं हैं.

.

बोल रहे हैं अपने कलम से

“नूर जी” चुप्पी धरे…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on March 6, 2018 at 9:33pm — 11 Comments

Monthly Archives

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 149 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय"
37 minutes ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 149 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
1 hour ago
SACHIN updated their profile
1 hour ago
Usha Awasthi commented on Usha Awasthi's blog post मन नहीं है
" आदरणीय सुशील सरन जी,आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया प्राप्त कर प्रसन्नता हुई।  हार्दिक धन्यवाद…"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कुछ हो मत हो नेता दिख -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"वाह आदरणीय जी बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई"
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Dr. Vijai Shanker's blog post सत्य और झूठ -- डॉ० विजय शंकर
"वाह आदरणीय जी सच और झूठ की बहुत सुंदर व्याख्या की है आपने ।हार्दिक बधाई सर"
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Chetan Prakash's blog post एक ताज़ा गज़ल
"वाह आदरणीय जी बहुत ही खूबसूरत सृजन हुआ है, शेर दर शेर मुबारक कबूल करें सर"
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Usha Awasthi's blog post मन नहीं है
"अन्तस भावों की सहज अभिव्यक्ति आदरणीया जी । हार्दिक बधाई"
10 hours ago
Usha Awasthi commented on Usha Awasthi's blog post मन नहीं है
"आदरणीय डा0 विजय शंकर जी,रचना अच्छी लगी, जानकर खुशी हुई। हार्दिक आभार आपका,सादर। "
18 hours ago
Dr. Vijai Shanker commented on Usha Awasthi's blog post मन नहीं है
"आदरणीय उषा अवस्थी जी , रचना अछी है। हाँ , यह भी कहा जाता है कि कभी कभी कुछ लिखना हम लोगों की विवशता…"
21 hours ago
Dr. Vijai Shanker commented on Dr. Vijai Shanker's blog post सत्य और झूठ -- डॉ० विजय शंकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आभार , सादर।"
21 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

मधुमालती छंद. . . .

मधुमालती छंद ....1डर कर कभी, रोना नहीं ।विश्वास को, खोना  नहीं ।तूफान   में, सोना  नहीं ।नफरत कभी ,…See More
yesterday

© 2023   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service